जीनोम एडिटेड प्लांट्स की गाइडलाइंस पर जेनेटिक्स एक्सपर्ट्स ने उठाये सवाल, संशोधन के बिना टेक्नोलॉजी का पूरा फायदा नहीं मिलेगा

प्लांट जेनेटिक्स के एक्सपर्ट वैज्ञानिकों का कहना है कि गाइडलाइंस स्पष्ट नहीं हैं। इनको मौजूदा स्वरूप में लागू किया गया तो फसलों और पौधों की नई किस्में विकसित करने की प्रक्रिया को कम करने का जो फायदा जीनोम एडिटिंग टेक्नोलॉजी से मिलना है वह नहीं मिल पाएगा, क्योंकि गाइडलाइंस में नई किस्में तैयार करने वाली प्रक्रिया पर स्थिति स्पष्ट नहीं है

जीनोम एडिटेड प्लांट्स की गाइडलाइंस पर जेनेटिक्स एक्सपर्ट्स ने उठाये सवाल, संशोधन के बिना टेक्नोलॉजी का पूरा फायदा नहीं मिलेगा

सरकार ने लंबे अंतराल के बाद जीनोम एडिटेड प्लांट्स को बॉयोसेफ्टी गाइडलाइंस से बाहर रखने के लिए इस तकनीक के जरिये प्लांट्स और फसलों की किस्में तैयार करने के लिए गाइडलाइन जारी कर दी है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के डिपार्टमेंट ऑफ बॉयोटेक्नोलॉजी द्वारा गाइडलाइंस जारी करने के साथ विवाद भी शुरू हो गया है। प्लांट जेनेटिक्स के एक्सपर्ट वैज्ञानिकों का कहना है कि गाइडलाइंस स्पष्ट नहीं हैं। इनको मौजूदा स्वरूप में लागू किया गया तो फसलों और पौधों की नई किस्में विकसित करने की प्रक्रिया को कम करने का जो फायदा जीनोम एडिटिंग टेक्नोलॉजी से मिलना है वह नहीं मिल पाएगा, क्योंकि गाइडलाइंस में नई किस्में तैयार करने वाली प्रक्रिया पर स्थिति स्पष्ट नहीं है। जिस तरह की निगरानी और डाटा की जरूरत इसमें बताई गई है, वे टेक्नोलॉजी के फायदे खत्म करने वाले हैं।

गाइडलाइंस में बदलाव के लिए जेनेटिक्स पर काम करने वाले बड़े वैज्ञानिकों ने डिपार्टमेंट ऑफ बॉयोटेक्नोलॉजी और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) को पत्र लिखे हैं। गाइडलाइंस के आधार पर स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसेस (एसओपी) तैयार कर रही कमेटी को भी ये मुद्दे हल करने के लिए कहा है। कमेटी के एक सदस्य का कहना है कि एसओपी में इस मसले को हल कर लिया जाएगा, लेकिन इस बात पर बड़े वैज्ञानिक एकमत नहीं हैं। इंस्टीट्यूशन बॉयो सेफ्टी कमेटी (आईबीएससी) के स्तर पर फैसला लेने की स्थिति को लेकर भी गाइडलाइंस ने सवाल खड़े किये हैं।

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक ही पौधे के जीन को एडिट कर तैयार किये जाने वाले पौधों (प्लांट्स) की प्रक्रिया एसडीएन1 (साइट डायरेक्टेड न्यूक्लीज) और एसडीएन2 को बॉयोसेफ्टी रूल्स से छूट देने का फैसला लिया था। इस संबंध में 30 मार्च, 2022 को पर्यावरण, वन एवं जलवायु मंत्रालय ने अधिसूचना जारी की थी। कैबिनेट के इस फैसले पर जारी अधिसूचना के बाद 17 मई, 2022 को गाइडलाइंस जारी की गई हैं। गाइडलाइंस जारी होने के बाद से ही विवाद शुरू हो गया है। विवाद तीन मुद्दों पर हैं- ऑफ टारगेटेड म्यूटेशन का डाटा, बैक क्रॉसिंग और जनरेशनल स्टेबिलिटी।

वैज्ञानिकों का कहना है कि ऑफ टारगेट म्यूटेशन किसी भी जीनोम एडिटेड प्रक्रिया में संभव है लेकिन इसका कोई उपयोग नहीं है। जेनेटिक्स वैज्ञानिकों का फोकस टारगेटेड म्यूटेशन पर है और इसी के आधार पर नई प्रजाति या किस्म विकसित करने का लक्ष्य है। जनरेशनल स्टेबिलिटी के नतीजे आने में लंबा वक्त लगता है। किसी प्रजाति को तैयार करने और उसे मंजूरी देने में जनरेशनल स्टेबलिटी को आधार बनाया जाएगा तो जीनोम एडिटिंग टेक्नोलॉजी और पारंपरिक ब्रीडिंग प्रक्रिया में फर्क नहीं रह जाएगा, क्योंकि कम समय में नई प्रजाति विकसित करना और सटीक रिजल्ट हासिल करना ही जीनोम एडिटिंग टेक्नोलॉजी की खासियत है। वैज्ञानिकों के अनुसार, अगर समय ही नहीं बचेगा तो हम असली फायदे से वंचित रह जाएंगे। यही मुद्दा बैक क्रॉसिंग को लेकर है। इन तीनों मुद्दों पर गाइडलाइंस में जिस तरह के नियमन और डाटा की अनिवार्यता लागू की गई है, वह पूरी तरह अव्यावहारिक है।

दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व वाइस चांसलर और पूर्व प्रोफेसर (जेनेटिक्स) दीपक पेंटल ने साउथ कैंपस स्थित सेंटर फॉर जेनेटिक मैनिपुलेशन ऑफ क्रॉप प्लांट्स (सीजीएमसीपी) की ओर से डिपार्टमेंट ऑफ बॉयोटेक्नोलॉजी के सेक्रेटरी डॉ. राजेश एस. गोखले और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के डायरेक्टर जनरल डॉ. त्रिलोचन महापात्र को 25 मई, 2022 को विस्तृत पत्र लिखकर गाइडलाइंस पर सवाल उठाए हैं। इसमें कहा गया है कि यह सरकार के फैसले के अनुरूप नहीं है। सरकार द्वारा 30 मार्च को जारी ऑफिस मेमोरेंडम (ओएम) में एसडीएन1 और एसडीएन2 के तहत आने वाले जीन एडिटेड प्लांट्स को रूल 1989 से छूट का जो फैसला लिया गया, यह गाइडलाइंस उस भावना के अनुरूप नहीं हैं। उन्होंने अपने पत्र में चार मुद्दों पर स्थिति साफ करने के लिए कहा है।

नेशनल ब्यूरो ऑफ प्लांट जेनेटिक रिसोर्सेज, आईसीएआर के पूर्व डायरेक्टर, प्रोफेसर के.सी. बंसल ने इस बारे में रूरल वॉयस के साथ बातचीत में कहा कि गाइडलाइन में कोई बड़ी दिक्कत नहीं है, जो भी सवाल उठे हैं उनको एसओपी में हल कर लिया जाएगा। उन्होंने कहा कि नई टेक्नोलॉजी कृषि क्षेत्र के लिए बहुत महत्वपूर्ण साबित होने वाली है। आईसीएआर के एक वरिष्ठ अधिकारी ने भी रूरल वॉयस को बताया कि एक कमेटी इन गाइडलाइंस का अध्ययन कर रही है और उम्मीद है कि जो सवाल उठे हैं उनको हल कर लिया जाएगा।

लेकिन कई वैज्ञानिक इस बात से सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि गाइडलाइंस में संशोधन जरूरी है। एसओपी गाइडलाइंस के आधार पर ही तैयार होगा। इसलिए बेहतर होगा कि संशोधित गाइडलाइंस जारी कर उपर बताये तीनों मुद्दों से जुड़े सवालों को हल किया जाए।

यह मामला करीब एक साल से लंबित था। पर्यावरण मंत्रालय के अधिकारियों ने इस बारे में राज्यों की राय मांगते हुए सितंबर 2021 में राज्यों को पत्र लिखा था, लेकिन अधिकांश संबंधित विभाग और वैज्ञानिक ऐसी प्रक्रिया के पक्ष में नहीं थे। इस संबंध में जारी अधिसूचना में कहा गया है कि डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय, डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च एंड एजुकेशन और कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने एसडीएन1 और एसडीएन2 जीनोम एडिटिंग से तैयार प्लांट्स के लिए बॉयोसेफ्टी रूल्स से छूट की सिफारिश की थी।

एसडीएन1 और एसडीएन2 तकनीक में एक ही पौधे के जीन्स का इस्तेमाल किया जाता है और इसमें कोई बाहरी जीन शामिल नहीं होता है, इसलिए यह जेनेटिकली इंजीनियर्ड या मोडिफाइड (जीएम) तकनीक से अलग है। इसी को आधार बनाकर इस तकनीक को बॉयोसेफ्टी रूल्स से छूट देने की बात की जा रही थी। अधिसूचना के मुताबिक जीनोम एडिटेड प्लांट्स को जेनेटिकली इंजीनियर्ड आर्गनिज्म या सेल्स रुल्स, 1989 से छूट देने की सिफारिश उक्त मंत्रालयों और विभागों ने की थी। इसलिए केंद्र सरकार ने एसडीएन1 और एसडीएन2 श्रेणियों के तहत आने वाले प्लांट्स को रूल 7 से 11 तक छूट देने का फैसला लिया है। इन प्लांट्स से तैयार होने वाली किस्मों पर फसलों की नई प्रजातियों के लिए लागू होने वाले नियम-कानून लागू होंगे।

इस मुद्दे पर रूरल वॉयस ने 29 सितंबर, 2021 को एक विस्तृत खबर की थी जिसका लिंक यहां दिया गया है

https://www.ruralvoice.in/national/consent-from-states-for-trials-of-genome-edited-plants-may-create-hurdles-in-benefiting-from-new-technology.html

जीनोम एडिटिंग की इस तकनीक में एक ही प्लांट के परिवार के जींस को एडिट किया जाता है और उसी फैमिली के प्लांट की अधिक उत्पादकता, बीमारी से लड़ने में सक्षम, तापमान में परिवर्तन के बावजूद उत्पादन में सक्षम गुणों वाली नई किस्म तैयार करना संभव है। साथ ही इसके जरिये बेहतर टारगेटेड अप्रोच का फायदा लिया जा सकता है। इस तकनीक का फायदा यह है कि इसके जरिये नई वेरायटी विकसित करने की प्रक्रिया बहुत छोटी हो जाती है जिसे वैज्ञानिक एक्सीलरेट कहते हैं। यानी किसी भी फसल की किस्म को बहुत कम समय में तैयार किया जा सकेगा। जीनोम एडिटेड टेक्नोलॉजी पर अमेरिका और ब्रिटेन में भी बॉयोसेफ्टी रेगुलेशन लागू नहीं हैं।

जीनोम एडिटेड टेक्नोलॉजी को बॉयोसेफ्टी रूल्स से छूट मिलने से अब नई प्रजातियों का विकास तेजी से हो सकेगा। साथ ही इसका फायदा यह है कि देश में मौजूद बॉयो रिसोर्सेज का इस्तेमाल जनहित के लिए किया जा सकेगा। इस तकनीक की खूबसूरती यह है कि बेहतर उत्पादकता के जीन तो पौधे में डाले ही जा सकते हैं, साथ ही यह देश की खाद्य सुरक्षा और पोषण सुरक्षा में भी बड़ी भूमिका निभाने में सक्षम है, क्योंकि इसके जरिये एक ही पौधे की विभिन्न वेरायटी में उपलब्ध पोषक तत्वों को एक साथ लाया जा सकेगा। वहीं इस तकनीक के जरिये पौधों को जलवायु परिवर्तन और तापमान में होने वाले बदलाव से भी लड़ने में सक्षम बनाना संभव है। मोहाली स्थित नेशनल एग्रीकल्चर बॉयोटेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट (नाबी) में केले की एक प्रजाति तैयार की गई है।

इस तकनीक ने नई प्रजातियां विकसित करने की प्रक्रिया को बहुत छोटा कर दिया है। साथ ही यह सटीक परिणाम लाने में सक्षम है। जीन एडिटिंग की इस नई तकनीक को क्रिसपर/कास9 नाम दिया गया है। इसके लिए फ्रांस की वैज्ञानिक डॉ. एमानुअल कारेंपेंटीअर और अमेरिका की वैज्ञानिक डॉ. जेनिफर डुआंडा को 2020 का केमिस्ट्री का नोबल पुरस्कार दिया गया था। इस तकनीक का उपयोग जीन एडिटिंग के जरिये नई प्रजातियां विकसित करने में किया जा रहा है। अमेरिका और जापान में इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर कई वेरायटी रिलीज की जा चुकी हैं।

मार्च 2021 में कृषि शोध से जुड़े संस्थानों ने एक पॉलिसी ब्रीफ भी तैयार किया था। इन संस्थानों में ट्रस्ट फॉर एडवांसमेंट इन एग्रीकल्चरल साइंसेज (तास), नेशनल एकेडमी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज (नास), आईसीएआर, बॉयोटेक कंसोर्सियम इंडिया लिमिटेड, टाटा इंस्टीट्यूट फॉर जेनेटिक्स एंड सोसाइटी, नेशनल एग्री-फूट बॉयोटेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट, बॉयोटेक्नोलॉजी इंडस्ट्री रिसर्च असिस्टेंस काउंसिल शामिल हैं। इस विषय पर इन संस्थानों ने एक डायलॉग किया था और इस तकनीक को देश में कृषि क्षेत्र के लिए जरूरी बताया था।

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