आर्थिक सर्वेक्षण: जीडीपी ग्रोथ 6.5 से 7 फीसदी रहने का अनुमान, कृषि नीतियों पर पुनर्विचार का सुझाव

आर्थिक सर्वेक्षण में कृषि क्षेत्र की बुनियादी चुनौतियों की पहचान करते हुए तत्काल व्यापक सुधारों पर जोर दिया गया है

आर्थिक सर्वेक्षण: जीडीपी ग्रोथ 6.5 से 7 फीसदी रहने का अनुमान, कृषि नीतियों पर पुनर्विचार का सुझाव

चालू वित्त वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर थोड़ी धीमी पड़ सकती है। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सोमवार को संसद में अर्थव्यवस्था का रिपोर्ट कार्ड यानी आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 पेश किया। आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, चालू वित्त वर्ष 2024-25 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर 6.5 से 7 प्रतिशत रहने का अनुमान है। यह पिछले वित्त वर्ष की 8.2 प्रतिशत जीडीपी वृद्धि दर और चालू वित्त वर्ष के लिए आरबीआई के 7.2 फीसदी वृद्धि दर के अनुमान से भी कम है। पिछले 5 वर्षों के दौरान कृषि एवं संबद्ध क्षेत्र की औसत वार्षिक वृद्धि दर स्थिर कीमतों पर 4.18 फीसदी रही है।

आर्थिक सर्वेक्षण में कृषि क्षेत्र की बुनियादी चुनौतियों की पहचान करते हुए तत्काल व्यापक सुधारों पर जोर दिया गया है क्योंकि इससे देश का समग्र आर्थिक विकास प्रभावित हो सकता है। आम बजट से एक दिन पहले पेश हुए आर्थिक सर्वेक्षण में मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल की प्राथमिकताओं और 2024 तक विकसित भारत बनाने के दृष्टिकोण को रेखांकित किया गया है। इसमें निजी निवेश को बढ़ावा देने, छोटे व्यवसायों और कृषि को मजबूत करने, जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिए वित्तीय संसाधन जुटाने और आय की असमानता से निपटने पर जोर दिया गया है। 

कृषि पर राष्ट्रीय चर्चा की जरूरत 

आर्थिक सर्वेक्षण की प्रस्तावना में मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंथा नागेश्वरन ने देश की मौजूदा कृषि नीतियों पर पुनर्विचार करने और कृषि क्षेत्र पर अखिल भारतीय चर्चा का सुझाव भी दिया है। आर्थिक सर्वेक्षण में इस बात पर जोर दिया गया कि भारत ने अभी तक आर्थिक विकास और रोजगार सृजन के लिए कृषि क्षेत्र की क्षमता का पूरा लाभ नहीं उठाया है। इसके लिए कृषि क्षेत्र में छिपी बेरोजगारी को कम करने, फसल विविधिकरण को बढ़ावा देने और दक्षता बढ़ाने की पैरवी की गई है। साथ ही नीतियों के क्रियान्वयन में सुधार की बात कही गई है।  

संरचनात्मक बदलावों पर जोर

सर्वेक्षण में कहा गया है कि भारतीय कृषि में गंभीर संरचनात्मक बदलावों की आवश्यकता है क्योंकि आने वाले समय में जलवायु परिवर्तन और जल संकट का खतरा मंडरा रहा है। सर्वेक्षण में कृषि क्षेत्र की कई प्रमुख चुनौतियों की पहचान की गई है, जिसमें खाद्य महंगाई को संभालने के साथ-साथ ग्रोथ को बनाए रखना, प्राइस डिस्कवरी की व्यवस्था में सुधार और छोटी व बिखरी कृषि जोत की समस्या शामिल है। इन चुनौतियों का सामना करने के लिए व्यापक सुधारों की सिफारिश की गई है जिनमें कृषि प्रौद्योगिकी को उन्नत बनाना, एग्रीकल्चर मार्केटिंग के अवसरों को बढ़ाना, कृषि नवाचारों को अपनाना, इनपुट अपव्यय को कम करना और कृषि-उद्योग संबंधों में सुधार करना शामिल है।

किसान हितैषी नीतियों का सुझाव

आर्थिक सर्वेक्षण में किसानों को उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करने और खाद्य कीमतों को नियंत्रित रखने के बीच संतुलन बनाने का सुझाव दिया गया है। इस दोहरे लक्ष्य के लिए बहुत सावधानी से नीतिगत कदम उठाने की आवश्यकता है। बाजार किसानों के हित में काम करें इसके लिए किसान-हितैषी नीतिगत ढांचे की जरूरत भी आर्थिक सर्वेक्षण में बताई गई है।  

इन्फ्लेशन टारगेटिंग की नीति पर पुनर्विचार 

आर्थिक सर्वेक्षण में वस्तुओं की कीमतें बढ़ने का पहला संकेत मिलते ही प्रतिबंध लगाने से बचने, केवल असाधारण परिस्थितियों में ही प्रतिबंध लगाने, इन्फ्लेशन टारगेटिंग की नीति पर फिर से विचार करने, सिंचित क्षेत्र बढ़ाने और जलवायु के हिसाब से कृषि पद्धतियां अपनाने का सुझाव दिया गया है। वहीं, भारत को कृषि से उद्योग व सेवाओं की तरफ बढ़ने के पुराने विकास मॉडल पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।  

कृषि क्षेत्र पर फोकस बढ़ा

सर्वेक्षण में निजी क्षेत्र द्वारा धीमी निवेश वृद्धि के साथ-साथ अनिश्चित मौसम पैटर्न को अर्थव्यवस्था की चुनौती माना गया है। सर्वेक्षण के अनुसार, अगर संरचनात्मक सुधार लागू किए जाते हैं तो निरंतर आधार पर 7 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर संभव है। इसके लिए आर्थिक सर्वेक्षण में कृषि क्षेत्र पर फोकस बढ़ाने की बात की गई है। सर्वेक्षण में कहा गया है कि देश में कृषि क्षेत्र रोजगार के सबसे अधिक मौके देता है। साथ ही देश के निर्यात में भी इसकी अहम भूमिका है। ऐसे में कृषि क्षेत्र पर और ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है।

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