कृषि के लिए बड़े बदलावों और कदमों वाले बजट की जरूरत
कोविड-19 महामारी के संकट के बाद देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक सामान्य वित्त वर्ष की मजबूत संभावना बन रही है। इस स्थिति में वित्त वर्ष 2021-22 का बजट सरकार के एजेंडा को आगे बढ़ाने में सबसे अहम योगदान कर सकता है क्योंकि इस बजट के जरिये सरकार जो दिशा और लक्ष्य तय करेगी उसे हासिल करने का उसके पास वक्त होगा।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण आगामी 1 फरवरी को जो बजट पेश करेंगी वह सरकार के लिए ‘मेक ओर ब्रेक’ बजट होना चाहिए क्योंकि मौजूदा केंद्र सरकार का करीब एक तिहाई कार्यकाल पूरा हो चुका है और कोविड-19 महामारी के संकट के बाद देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक सामान्य वित्त वर्ष की मजबूत संभावना बन रही है। इस स्थिति में वित्त वर्ष 2021-22 का बजट सरकार के एजेंडा को आगे बढ़ाने में सबसे अहम योगदान कर सकता है क्योंकि इस बजट के जरिये सरकार जो दिशा और लक्ष्य तय करेगी उसे हासिल करने का उसके पास वक्त होगा। इस स्थिति के मद्देनजर ही सरकार को कृषि और सहयोगी क्षेत्र के लिए इसस बजट में बड़े बदलावों वाले बोल्ड बजटीय प्रावधान पेश करने चाहिए। इसमें किसानों की आय को लेकर लक्षित कदमों के साथ की करों के मोर्चे पर बुनियादी बदलाव के प्रावधान होने चाहिए जो कृषि को एक बिजनेस की तरह देखे जिसमें अनुदान की बजाय कृषि को एक बिजनेस के रूप में देखते हुए बेहतर व्यावसायिक हितों को लक्षित किया जाए। कृषि क्षेत्र के लिए बजट में सरकार के वित्तीय संसाधनों का सबसे बड़ा हिस्सा प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि और उर्वरक सब्सिडी के रूप में दिया जा रहा है। इसके बेहतर और लक्षित उपयोग पर जोर देने की इस बजट में जरूरत है।
मौजूदा राजनीति परिदृष्य में पश्चिम बंगाल और अन्य राज्यों में होने वाले विधान सभा चुनावों और तीन कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसान आंदोलन के चलते इस बात के कयास हैं कि सरकार प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि में बढ़ोतरी कर सकती है। इसे मौजूदा छह हजार रूपये सालाना से बढ़ाकर नौ हजार रूपये सालाना करने जैसे कयास लगाये जा रहे हैं। हो सकता है कि इससे कुछ राजनीतिक फायदा हो लेकिन दीर्घकालिक रूप में यह योजना मौजूदा स्वरूप में किसानों और कृषि क्षेत्र के लिए हितकर नहीं है। तमाम कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि यूनिवर्सल इनकम के रूप में सभी किसानों की सीधे नकदी हस्तांतरण से फायदा नहीं हो सकता है इसे लक्षित बनाने से फायदा होगा। सरकार कृषि बजट में आधे से अधिक राशि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के तहत खर्च कर रही है। इसलिए इसका बेहतर उपयोग जरूरी है। किसानों को बेहतर उत्पादन के लिए प्रोत्साहन और फसलों के विविधिकरण के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य और डायरेक्ट कैश ट्रांसफर दोनों की एक समग्र नीति काम कर सकती है। बेहतर होगा कि जहां जिन फसलों के लिए एमएसपी घोषित किया गया है उनकी अधिकतम खरीद सुनिश्चित की जाए और प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के तहत दी जाने वाली वित्तीय राशि गैर एमएसपी फसलों के लिए दी जाए। उसके चलते किसानों को इन फसलों के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है। रुरल वॉयस के साथ एक बातचीत में नीति आयोग के सदस्य प्रोफेसर रमेश चंद ने यह बात भी कही कि डायरेक्ट बेनेफिट जैसे प्रोत्साहन और एमएसपी दोनों योजनाओं को संयुक्त रूप से चलाने की जरूरत है।
एक अन्य कदम के तहत बजट में सरकार को किसानों के कलेक्टिव फार्मर्स प्रोड्यूसर आर्गनाइजेशन (एफपीओ) को आर्थिक रूप से अधिक आकर्षक बनाने की जरूरत है। सरकार का लक्ष्य भी है कि अधिक से अधिक एफपीओ बनाये जाएं जिसके तहत किसान उत्पादन लागत को कम करने के साथ ही बेहतर मार्केटिंग से अधिक आय अर्जित कर सकें। यह एफपीओ अब कंपनी के रूप में और सहकारिता के तहत दोनों तरह से बनाये जा सकते हैं। इसलिए सरकार को एफपीओ को इनकम टैक्स से मुक्त करना चाहिए। कंपनी के तहत एक साथ जुड़ने वाले किसानों को कारपोरेट टैक्स के दायरे में लाने का मतलब है कि उनके उपर कर लगाया जा रहा है। यह प्रावधान किसानों को एफपीओ के रूप में जुड़ने से हतोत्साहित कर सकता है। इसलिए इस बारे में स्थिति स्पष्ट करते हुए एफपीओ को कर दायरे से बाहर कर देना चाहिए।
एक अन्य कदम के रूप में कृषि उत्पादन लागत को कम करने के प्रावधान इस बजट में लाये जाने चाहिए। किसानों की आय बढ़ाने के तीन उपाय हैं, उत्पादन लागत कम की जाए, उत्पादकता बढ़ाई जाए और उनके उत्पादों का बेहतर मूल्य किसानों को मिले। इसमें उत्पादन लागत कम करने का सीधा उपाय सरकार के हाथ में है और वह आसान भी है। गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) के तहत कृषि इनपुट पर जो कर दरें हैं उनको कम किया जाना चाहिए। औद्योगिक उत्पादन और सर्विसेज में कंपनियां और कारोबारी इनपुट टैक्स क्रेडिट का फायदा ले लेते हैं लेकिन किसानों के मामले में यह संभव नहीं है क्योंकि उनके स्तर पर इसके लिए कोई प्रक्रिया नहीं है। इसलिए उर्वरक, पेस्टीसाइड, टैक्टर और अन्य मशीनरी पर जीएसटी को छह फीसदी की दर पर लाया जाना चाहिए। इसी तरह के प्रावधान कृषि में उपयोग होने वाली टेक्नोलॉजी के लिए भी किये जाएं क्योंकि कृषि में इसका उपयोग तेजी से बढ़ रहा है और कृषि उत्पादन, उत्पादकता और गुणवत्ता में वृद्धि के लिए टेक्नोलॉजी की जरूरत है।
सरकार का ज्यादा फोकस फसलों पर रहा है। लेकिन सरकार को अपने इस फोकस में बदलाव करते हुए पशुपालन, डेयरी और फिशरीज पर बजटीय प्रावधान को बढ़ाना चाहिए क्योंकि कृषि जीडीपी में इनकी हिस्सेदारी बढ़ रही है और किसानों की आय के लिए यह क्षेत्र बड़े स्रोत के रूप में उभर रहे हैं। इसलिए इन क्षेत्रों को भी बजटीय प्रावधानों उसी अनुपात में महत्व देने की जरूरत है।
इसके साथ ही कृषि और उससे जुड़े क्षेत्रों के लिए शोध पर दिये जा रहे बजटीय आवंटन में भारी बढ़ोतरी की जरूरत है। दशकों से हम कृषि जीडीपी का एक फीसदी शोध के लिए लक्षित करने की बातें कर रहे हैं लेकिन यह अभी भी उससे काफी कम है। पर्यावरण की समस्या और जलवायु परिवर्तन के चलते जो चुनौतियां सामने आ रही हैं उसके तहत भारत में एग्रीकल्चरल रिसर्च पर बहुत अधिक काम करने की जरूरत है। अभी भी देश में इसके लिए लगभग सारी निर्भरता सार्वजनिक क्षेत्र पर ही है। इसलिए सरकार को बजट में इस मसले पर अधिक जोर देना चाहिए। साथ ही यह भी प्रयास करना चाहिए कि निजी क्षेत्र केवल व्यवसायिक फायदे के लिए ही कृषि से न जुड़े बल्कि उसकी कृषि शोध में भी भागीदारी बढ़े।