अगेती सब्जियों की खेती के लिए लो कॉस्ट पॉलीहाउस तकनीक है फायदेमंद
फरवरी-मार्च में बोई जाने वाली मौसमी सब्जियों की उपज मई-जून के महीने में एक ही समय में तैयार हो जाती है। इस उपज के बाजार में एक साथ आने से किसानों को अच्छा लाभ नहीं मिलता है। यदि किसान जनवरी के महीने में लो कॉस्ट पॉलीहाउस में सब्जियों की स्वस्थ पौध तैयार करते हैं तो वह मौसमी सब्जियों की अगेती उपज लेकर अधिक लाभ कमा सकते हैं
उत्तर भारत में किसान दिसंबर के दूसरे पखवाड़े से फरवरी के पहले पखवाड़े तक पारंपरिक तरीके से ग्रीष्मकालीन कद्दू सहित बैंगन, मिर्च और टमाटर के उत्पादन के लिए नर्सरी की पौध तैयार नहीं कर पाते है । इस दौरान रात का तापमान 06 से 07 डिग्री सेल्सियस के नीचे रहता है,इस कारण सब्जी के बीज अंकुरित नहीं हो पाते हैं। इसलिए फरवरी के दूसरे पखवाड़े के बाद किसान खेती की तैयारी करते हैं और मौसमी सब्जियों की बुवाई और रोपाई करते हैं।ये बोई गई मौसमी सब्जी फसलों की उपज एक साथ मई-जून के महीने में तैयार हो जाती है , और किसानों की एक साथ उपज को बाजार में आने से उनको अच्छा मुनाफा नहीं मिलता है। यदि किसान अगेती या गैर मौसमी सब्जियों की खेती कर अधिक मुनाफा कमाना चाहता है तो जनवरी के महीने में लो कॉस्ट पॉलीहाउस यानि लो टनल में सब्जियों की स्वस्थ पौध तैयार कर सब्जियों की अगेती उपज ले सकता हैं और किसान इस सब्जी की उपज को समय से पहले बाजार में बेचकर अधिक मुनाफा कमा सकते हैं।
लो कॉस्ट पॉली हाउस में नर्सरी पौधे उगाने की तकनीक
भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान आईवीआरआई वाराणसी के सब्जी फसलों के प्रमुख कृषि वैज्ञानिक डॉ एस.एन. एस. चौरसिया ने बताया कि लो टनाल पॉली हाउस बनाने के लिए 2 मिमी मोटी बांस के खपच्च या लोहे की छड़, जिसे आसानी से मोड़ा जा सकता है और इसके लिए 20 से 30 माइक्रोन मोटी और दो मीटर चौड़ी सफेद पारदर्शी पॉलीथीन की जरूरत होती है। उन्होंने कहा कि इस तकनीक से खेतों में सबसे पहले 1 मीटर चौड़ी, 15 सेंटीमीटर उंची और जरूरत के अनुसार लंबी क्यारियां बनाते हैं । इन क्यारियों में बैगन, मिर्च और टमाटर के बीज 1.5 से 2 सेंटीमीटर की गहराई पर लाइनों में बोये जाते हैं।
डॉ. चौरसिया ने बताया कि एक हेक्टेयर खेत में 350 ग्राम से 400 ग्राम संकर बीज और 1.5 किलोग्राम सामान्य बीज की जरूरत होती है। नर्सरी के लिए जमीन को भुरभुरा करते है और प्रति वर्गमीटर कम्पोस्ट या वर्मी कम्पोस्ट डेढ से दो किलो, 10 ग्राम टाईकोडरमा एवं एनपीके 50 ग्राम की दर से बोने पहले नर्सरी बेड़ में मिलाते है। इसके बाद नर्सरी बेड को समतल कर लाइनों में बीजों की बुवाई करते हैं। इसके बाद लाइनों को मिट्टी और खाद से ढक दें और हो सके तो अंकुरण तक पुआल और घास से ढक दें, उसके उपरान्त लोहे की छड़ों को 2-3 फीट ऊंचा उठा ले ,और घुमाकर दोनों तरफ से जमीन में धसा दिया जाता है।इसके बाद उपर से पारदर्शी पालथीन से ढक दिया जाता हैं। उन्होंने कहा कि अगर कद्दू वर्ग की सब्जियों की खेती करना चाहते हैं तो पाली बैग में गोबर की खाद और मिट्टी को 1:1:1 के अनुपात में भरें। इस बैग में लौकी, करेला, तरबूज, खरबूजा, कद्दू, ककड़ी और अन्य कद्दू के बीज बोकर इस लोकास्ट पॉली हाउस के अंदर रखे जाते हैं। हर दिन या एक दिन बाद हजारा से पौधों पर पानी का छिड़काव करना चाहिए। इस तरह चार से पांच सप्ताह के बाद पौधे खेत में रोपण के लिए तैयार हो जाते हैं।
सब्जी पौधों का बिजनेस कर लाभ कमा सकते हैं किसान
बिहार के पूर्वी चंम्पाऱण में कृषि विज्ञान केंद्र के प्रमुख और वेजिटेबल साइंसिस्ट डॉ अभिषेक प्रताप सिंह का कहना है कि लो कॉस्ट पॉलीहाउस तकनीक से सब्जी पौध तैयार कर किसान आसपास के किसानों को बेचकर अच्छा लाभ कमा सकते हैं। उन्होंने बताया कि नर्सरी बेड पर बैगन, मिर्च और टमाटर का एक पौधा तैयार करने में उन्हें 60 पैसे का खर्च आता है और उसे एक रुपए 10 पैसे या एक रुपया 20 पैसे की दर से बेचकर दर से बेचकर लाभ कमा सकते हैं। अगर कोई किसान सीजन में चार से पांच लाख पौधे तैयार कर किसानों को बेचता है तो दो महीने में दो से ढाई लाख रुपये कमा सकते हैं । उन्होंने बताया कि अगर कोई पॉली बैग या प्रो ट्रे में कद्दूवर्गीय संब्जियों की बुवाई कर लो कॉस्ट पॉली हाउस में तैयार करता है तो इस पर एक रुपये का खर्च आता है और यह आसानी से तीन से चार रुपये में बिक जाते है । जिसे बेचकर किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं । डॉ सिंह ने बाताया कि उनके कृषि विज्ञान केन्द्र से दर्जनो गांवो के किसान इस तकनीक फायदा लेकर लाभ कमा रहे हैं।
कम लागत में फायदेमंद वाली तकनीक
डॉ एस.एन. एस चौरसिया ने बताया कि इस तकनीक से सब्जी की पौध सफलतापूर्वक तैयार की जा सकती है। इस विधि में बीजों का अंकुरण शत प्रतिशत होने के साथ कीट बीमारी और पाला का खतरा नही रहता है, और पौधों का विकास तेजी से होता है । उन्होंने कहा कि, इस मौसम पॉलीटनल से चार से पांच डिग्री तापमान बढ़ने से बीजों के अंकुरण और पौधों की वृद्धि के लिए अनकुल होता है
डॉ अभिषेक ने कहा कि किसानों के लिए कम लागत में सब्जियों नर्सरी पौध उगाने की बेहतर तकनीक है. इस तकनीक से किसान स्वस्थ नर्सरी तैयार कर फरवरी की दूसरे फरवरी की दूसरे पखवाड़े लेकर मार्च के पहले पखवाड़े तक रोपाई कर सकते है, और अगेती अच्छी गुणवत्ता वाली सब्जी उपज लेकर बाजार से अधिक लाभ कमा सकते हैं ।अगर कोई किसान बिजनेस करना चाहता है तो वह अपने क्षेत्र के किसानों की आवश्यकता के अनुसार सब्जी की पौध तैयार कर बेचकर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। उन्होंने कहा कि अगर कोई किसान इस तकनीक को अपनाना चाहे तो सरकार की तरफ से बागवानी विभाग 50-60 फीसदी तक अनुदान भी मिलता है। इस अनुदान का लाभ लेने के लिए किसान अपने जिला के उद्यान अधिकारी से सम्पर्क करके इस अनुदान लाभ ले सकते हैं।
किसान लो कॉस्ट पॉलीहाउस में रखे ध्यान खास ध्यान
डॉ एस. एन चौरसिया के अनुसार इस तकनीक में नर्सरी पौध 30 से 40 दिनों में तैयार हो जाती है। बीजों की बुवाई के बाद समय समय पर हाजरा से सिंचाई करना चाहिए, अगर पालीथीन के उपर धुल या डस्ट जम गई हो पौधों को पर्याप्त रोशनी और हवा मिल नहीं पाती है पॉलीथीन की धुलाई भी ज़रूरी है । नर्सरी में पौध उगाने बाद दिन में धूप के समय पॉलीथीन को हटा देते हैं,जिससे पौधों का धूप के सम्पर्क आने से हार्ड हो जाता है। इससे पौधों की रोपाई के समय मृत्यु दर कम होती है।