कांग्रेस के चिंतन शिविर में एमएसपी की कानूनी गारंटी और किसान ऋण राहत आयोग का प्रस्ताव
प्रस्ताव में कहा गया है कि फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य का निर्धारण सी-2 लागत और उसके ऊपर 50 फीसदी मुनाफे को जोड़कर किया जाना चाहिए। यानी किसान के लिए पूंजी की लागत और जमीन का किराया भी जोड़ा जाए। प्रस्ताव में कहा गया है कि किसानों को एमएसपी की कानूनी गारंटी दी जानी चाहिए
उदयपुर में कांग्रेस के तीन दिवसीय चिंतन शिविर के आखिरी दिन किसानों और कृषि क्षेत्र के मुद्दे पर प्रस्ताव पेश किया गया। इसमें किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी देने के साथ ही एमएसपी को सी-2 लागत पर 50 फीसदी मुनाफे के साथ तय करने की बात कही गई है। प्रस्ताव में किसानों के कर्जों के निपटारे और कर्ज के प्रावधानों को उनके अनुकूल बनाने के लिए राष्ट्रीय किसान ऋण राहत आयोग बनाने की बात भी कही गई है। कर्ज ना लौटा पाने की स्थिति में किसान के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई और उसकी जमीन कुर्क करने पर पाबंदी लगाने की बात है। कृषि से जुड़े मुद्दों पर प्रस्ताव तैयार करने का जिम्मा हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा को दिया गया था। उन्होंने किसान संगठनों और कृषि क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों के साथ लंबे विचार-विमर्श के बात यह प्रस्ताव तैयार किया है।
इस प्रस्ताव में कहा गया है कि फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का निर्धारण सी-2 लागत और उसके ऊपर 50 फीसदी मुनाफे को जोड़कर किया जाना चाहिए। यानी किसान के लिए पूंजी की लागत और जमीन का किराया भी जोड़ा जाए। प्रस्ताव में कहा गया है कि किसानों को एमएसपी की कानूनी गारंटी दी जानी चाहिए।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की आलोचना करते हुए इस प्रस्ताव में कहा गया है कि इससे निजी बीमा कंपनियों को 6 वर्षों में 34,304 करोड़ रुपए का मुनाफा हुआ, लेकिन किसानों को कोई लाभ नहीं मिला। इसमें मांग की गई है कि खेती के पूरे क्षेत्र का बीमा किया जाए और नो प्रॉफिट नो लॉस के सिद्धांत पर बीमा योजनाओं का संचालन सार्वजनिक क्षेत्र की बीमा कंपनियां करें।
एक अलग कृषि बजट संसद में प्रस्तुत करने की बात है जिसमें किसान कल्याण से जुड़ी सभी योजनाओं का लेखा-जोखा रहे। मौसम की मार, प्राकृतिक आपदा, बाजारी मूल्य में उतार-चढ़ाव को देखते हुए किसानों को राहत देने के लिए राष्ट्रीय किसान कल्याण कोष बनाने की भी बात है। प्रस्ताव में ट्रैक्टर और खेती के अन्य उपकरणों को जीएसटी से बाहर करने की भी बात कही गई है।
इसमें कहा गया है कि छोटे और सीमांत किसानों तथा भूमिहीन गरीबों को मुख्यधारा में शामिल करने के लिए ऐसे परिवारों को हर महीने 6000 रुपए दिए जाएं। प्रत्येक 10 किलोमीटर की दूरी पर एक कृषि उपज मंडी हो, इसके लिए इन मंडियों की संख्या मौजूदा 7600 से बढ़ाकर 42000 की जाए। अभी मनरेगा में सबको 100 दिनों का काम नहीं मिल पाता है, इसे अनिवार्य करने की बात है।