गैर-कृषि कॉलेज व विश्वविद्यालयों में कृषि स्नातक कोर्स शुरू करने के खिलाफ याचिका दायर
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि कृषि शिक्षा एक तकनीकी क्षेत्र है, जिसके लिए अनुसंधान की जरूरत होती है। बिना अनुसंधान के तैयार किए गए कृषि स्नातक सिर्फ औपचारिक डिग्री वाले होंगे, जो वास्तव में किसानों की मदद नहीं कर पाएंगे और इससे कृषि अनुसंधान भी प्रभावित होगा।
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय (हाईकोर्ट) में शनिवार को राज्य के गैर- कृषि विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में बी.एससी. (कृषि) पाठ्यक्रम शुरू करने के खिलाफ एक जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता नीरज कुमार राठौर और रंजीत किसानवंशी ने इन कॉलेजों व विश्वविद्यालयों को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) से मान्यता न होने और प्रवेश प्रक्रिया में प्री-एग्रीकल्चर टेस्ट (पीएटी) को शामिल न करने पर सवाल उठाए हैं।
दोनों याचिकाकर्ता इंदौर कृषि महाविद्यालय के पूर्व छात्र हैं। उनका कहना है कि उच्च शिक्षा विभाग के आदेश से कृषि अनुसंधान और कृषि शिक्षा को नुकसान होगा। याचिकाकर्ताओं ने 20 जून 2024 को मध्य प्रदेश के उच्च शिक्षा विभाग द्वारा जारी आदेश को रद्द करने की मांग की है। इस आदेश में 2024-25 शैक्षणिक सत्र से प्रदेश के सरकारी विश्वविद्यालयों और स्वशासी कॉलेजों में बी.एससी (कृषि) पाठ्यक्रम शुरू करने को कहा गया है। कृषि छात्र इस आदेश के जारी होने के बाद से ही विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं।
सुनवाई के दौरान, याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता अभिनव पी. धनोडकर ने तर्क दिया कि मौजूदा प्रवेश प्रक्रिया कृषि शिक्षा की गुणवत्ता को कमजोर करती है और इससे भविष्य में छात्रों के रोजगार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। सुनवाई के बाद उच्च न्यायालय की इंदौर खंडपीठ ने मध्य प्रदेश राज्य, उच्च शिक्षा विभाग, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय और आईसीएआर को नोटिस जारी करते हुए चार सप्ताह के भीतर विस्तृत जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया।
मध्य प्रदेश सरकार के उच्च शिक्षा विभाग ने 20 जून को एक आदेश जारी किया था, जिसमें राज्य के सरकारी विश्वविद्यालयों और स्वशासी कॉलेजों को इस शैक्षणिक सत्र से कृषि स्नातक पाठ्यक्रम शुरू करने को कहा गया है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि कृषि शिक्षा एक तकनीकी क्षेत्र है, जिसके लिए अनुसंधान की जरूरत होती है, और अनुसंधान के लिए जमीन की भी आवश्यकता होती है। उनका कहना है कि बिना अनुसंधान और बिना जमीन के तैयार किए गए कृषि स्नातक सिर्फ औपचारिक डिग्री वाले होंगे, जो वास्तव में किसानों की मदद नहीं कर पाएंगे और इससे कृषि अनुसंधान भी प्रभावित होगा।