12 लाख करोड़ डॉलर सालाना है वैश्विक कृषि-खाद्य प्रणाली की छिपी हुई लागतः एफएओ रिपोर्ट
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) के एक अध्ययन में 156 देशों के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चला कि वैश्विक कृषि-खाद्य प्रणाली में छिपी हुई लागत (हिडन कॉस्ट) सालाना लगभग 12 ट्रिलियन डॉलर तक होती है। इसका लगभग 70 प्रतिशत (8.1 ट्रिलियन डॉलर) अहितकर आहार से उत्पन्न होता है जिससे हृदय रोग, स्ट्रोक और मधुमेह जैसी गंभीर गैर-संचारी बीमारियां (NCD) होती हैं।
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) के एक अध्ययन में 156 देशों के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चला कि वैश्विक कृषि-खाद्य प्रणाली में छिपी हुई लागत (हिडन कॉस्ट) सालाना लगभग 12 ट्रिलियन डॉलर तक होती है। इसका लगभग 70 प्रतिशत (8.1 ट्रिलियन डॉलर) अहितकर आहार से उत्पन्न होता है जिससे हृदय रोग, स्ट्रोक और मधुमेह जैसी गंभीर गैर-संचारी बीमारियां (NCD) होती हैं। यह लागत पर्यावरण को नुकसान और सामाजिक असमानताओं से होने वाले नुकसान से कहीं अधिक हैं।
स्टेट ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर 2024 (SOFA) रिपोर्ट में भोजन के उत्पादन, वितरण और उपभोग से जुड़े उन सभी लागतों और लाभों का खुलासा किया गया है जो बाजार मूल्य में नहीं दिखते। इन्हें ‘छिपी हुई लागत और लाभ’ कहा जाता है। अध्ययन में बताया गया है कि वैश्विक छिपी हुई लागतों में सबसे बड़ा योगदान स्वास्थ्य से संबंधित लागत का है। इसके बाद पर्यावरण से जुड़ी छिपी लागत आती है, जो अपर मिडिल और उच्च आय वाले देशों की औद्योगिक कृषि-खाद्य प्रणालियों में देखने को मिलती है।
स्वास्थ्य पर प्रभाव का विश्लेषण करते हुए रिपोर्ट में 13 जोखिमों की पहचान की गई है। इनमें साबुत अनाज और फल-सब्जियों का अपर्याप्त सेवन, अत्यधिक सोडियम का सेवन, लाल और प्रसंस्कृत मांस का अधिक सेवन शामिल है।
कृषि-खाद्य प्रणाली के अनुसार छिपी हुई लागत भिन्न
ऐतिहासिक रूप से देखें तो कृषि-खाद्य प्रणाली पारंपरिक से औद्योगिक रूप में परिवर्तित हुई है। सबकी छिपी लागत अलग-अलग हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि किस प्रकार की कृषि-खाद्य प्रणाली में छिपी हुई लागत किस रूप में प्रकट होती है। इसमें कृषि-खाद्य प्रणाली को छह अलग समूहों में बांटा गया है: दीर्घकालिक संकट वाली, पारंपरिक, लगातार विस्तार वाली, विविधीकृत, औपचारिक रूप लेने वाली और औद्योगिक। इसका मकसद हर चुनौती और अवसर को गहराई से समझना है।
उदाहरण के लिए, अधिकांश कृषि-खाद्य प्रणालियों में साबुत अनाज (होल ग्रेन) की कमी प्रमुख आहार जोखिम का कारण है। दीर्घकालिक संकट वाली प्रणालियों (लंबे समय तक चलने वाले संघर्ष, अस्थिरता और व्यापक खाद्य असुरक्षा) और पारंपरिक प्रणालियों (कम उत्पादकता, सीमित तकनीक अपनाने) में मुख्य चिंता फलों और सब्जियों का कम सेवन है।
सोडियम यानी नमक का अधिक सेवन चिंता का एक अहम विषय है। जब कृषि-खाद्य प्रणाली पारंपरिक से औपचारिक बनने की ओर बढ़ती है तो नमक का सेवन भी बढ़ता है, और फिर औद्योगिक प्रणालियों में घटने लगता है। इसके विपरीत, प्रसंस्कृत और लाल मांस का सेवन पारंपरिक से औद्योगिक प्रणालियों में बदलाव के दौरान लगातार बढ़ता है। वहां यह शीर्ष तीन आहार जोखिमों में से एक बन जाता है।
गैर-टिकाऊ कृषि पद्धतियों का पर्यावरणीय प्रभाव
गैर-टिकाऊ कृषि पद्धतियों का पर्यावरणीय प्रभाव भी छिपी लागत का बड़ा हिस्सा है। ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, नाइट्रोजन, भूमि-उपयोग में परिवर्तन और जल प्रदूषण से जुड़ी लागत उन देशों में विशेष रूप से अधिक है, जहां कृषि-खाद्य प्रणाली में विविधता आ रही है तथा जहां तेज आर्थिक विकास के साथ खपत और उत्पादन के पैटर्न भी बदल रहे हैं। यह लागत 720 अरब डॉलर तक पहुंच गई है। लंबे समय से संकट से जूझ रहे देशों को अपने सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 20 प्रतिशत के बराबर लागत का सामना करना पड़ता है।
गरीबी और कुपोषण समेत सामाजिक लागत का प्रभाव पारंपरिक कृषि-खाद्य प्रणालियों और लंबे समय से संकटग्रस्त देशों में सबसे अधिक हैं। गरीबी की सामाजिक लागत जीडीपी के 8 और कुपोषण की 18 प्रतिशत के आसपास है। इससे पता चलता है कि बेहतर आजीविका और इंटीग्रेटेड मानवीय विकास और शांति प्रयासों की तत्काल कितनी आवश्यकता है।