जलवायु परिवर्तन: तापमान 2 डिग्री सेल्सियस बढ़ने पर कम हो सकती है फसलों की विविधता

एक नए अध्ययन के अनुसार जलवायु परिवर्तन वैश्विक स्तर पर कृषि योग्य भूमि का क्षेत्रफल कम कर सकता है, जिससे खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है। जानिए कैसे बढ़ता तापमान कृषि को प्रभावित करता है।

जलवायु परिवर्तन: तापमान 2 डिग्री सेल्सियस बढ़ने पर कम हो सकती है फसलों की विविधता

एक नए शोध के अनुसार यदि वैश्विक तापमान 2 डिग्री सेल्सियस बढ़ता है, तो दुनिया की आधी से अधिक कृषि भूमि पर उगाई जाने वाली फसलों की संख्या, यानी फसल विविधता में कमी आ सकती है। यह अध्ययन नेचर पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। यह दर्शाता है कि जलवायु परिवर्तन 30 प्रमुख फसलों के लिए उपयुक्त भूमि को कैसे बदल सकता है। इसका आकलन प्री-इंडस्ट्रियल समय की तुलना में चार अलग-अलग तापमान परिदृश्यों (1.5 से 4 डिग्री सेल्सियस तक) के तहत किया गया है।

शोध से पता चला कि 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि पर भी आधी से अधिक फसलों की खेती के क्षेत्रफल भूमि में शुद्ध रूप से कमी आएगी। सबसे अधिक प्रभावित होने वाली फसलों में गेहूं, जौ, सोयाबीन, मसूर और आलू शामिल हैं। दो डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान वृद्धि होने पर कृषि भूमि में गिरावट और अधिक स्पष्ट हो जाएगी। कुछ मामलों में 50% से अधिक की कमी देखी जा सकती है। यदि तापमान 3 डिग्री सेल्सियस बढ़ता है तो सभी 30 फसलों की कृषि योग्य भूमि कम हो जाएगी।

वेब पोर्टल कार्बन ब्रीफ के साथ बातचीत में वेस्ट इंडीज विश्वविद्यालय के एप्लाइड क्लाइमेट वैज्ञानिक डॉ. डेल रैंकिन इस अध्ययन में व्यापक रूप से फसलों पर फोकस किए जाने को "सराहनीय" बताते हैं। प्रेडिक्टस क्लाइमेट सॉल्यूशंस के चीफ प्रोडक्ट ऑफिसर डॉ. जोस क्लाविजो मिशेलांगेली इस बात पर जोर देते हैं कि विभिन्न फसलों के लिए शोध का विस्तार करना जलवायु परिवर्तन के वैश्विक कृषि पर पड़ने वाले पूर्ण प्रभाव को समझने के लिए आवश्यक है।

चित्र: न्यूनतम वैश्विक तापमान में वृद्धि, जो वर्तमान फसल उत्पादन को जोखिम में डाल सकती है।

तापमान में वृद्धि का असमान क्षेत्रीय प्रभाव
शोध से यह भी पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव सभी क्षेत्रों पर समान रूप से नहीं पड़ेगा। भूमध्य रेखा के पास स्थित क्षेत्र, जैसे उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिण एशिया में फसल विविधता में सबसे अधिक गिरावट देखी जा सकती है। यदि तापमान 2 डिग्री सेल्सियस से अधिक बढ़ता है, तो इन क्षेत्रों में 70% से अधिक कृषि भूमि प्रभावित हो सकती है।

इसके विपरीत भूमध्य रेखा से दूर स्थित क्षेत्र, जैसे उत्तरी अमेरिका, यूरोप, मध्य एशिया और लैटिन अमेरिका में 3 डिग्री सेल्सियस तक की वार्मिंग में भी फसल विविधता में वृद्धि या स्थिरता देख सकते हैं। यह बदलाव वैश्विक खाद्य उत्पादन और सुरक्षा के लिए चुनौतियां और अवसर दोनों प्रस्तुत करता है।

जलवायु परिवर्तन अनुकूलन और खाद्य सुरक्षा
शोधकर्ताओं का मानना है कि बढ़ते तापमान से हाई-लैटीट्यूड क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन अनुकूलन के अवसर मिल सकते हैं। इससे कृषि विविधीकरण के साथ उत्पादकता में वृद्धि हो सकती है। हालांकि विशेषज्ञ यह चेतावनी भी देते हैं कि समशीतोष्ण (टेम्परेट) क्षेत्रों पर कृषि उत्पादन की अधिक निर्भरता खतरनाक हो सकती है।

डॉ. डेल रैंकिन बताते हैं कि कृषि विस्तार को समशीतोष्ण क्षेत्रों तक सीमित करने से उष्णकटिबंधीय फसलों में रुचि कम हो सकती है, जिससे वैश्विक खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ने की आशंका होगी। वे समशीतोष्ण क्षेत्रों में चरम मौसम की घटनाओं को लेकर चेतावनी देते हैं कि यदि ये क्षेत्र खाद्य उत्पादन के केंद्र बनते हैं, तो जलवायु-जनित आपदाएं वैश्विक खाद्य संकट को जन्म दे सकती हैं।

यह अध्ययन वैश्विक तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने की आवश्यकता को रेखांकित करता है, ताकि विशेष रूप से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में खाद्य उत्पादन में गंभीर व्यवधानों से बचा जा सके। शोध की प्रमुख लेखिका सारा हेइकोनेन, जो फिनलैंड की आल्टो विश्वविद्यालय में डॉक्टोरल शोधकर्ता हैं, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता पर जोर देती हैं। वे कहती हैं कि इन क्षेत्रों में कृषि को होने वाले नुकसान से वैश्विक खाद्य नेटवर्क प्रभावित होंगे। ऐसे में अनुकूलन प्रयासों को बढ़ाना आवश्यक हो जाता है।

जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि पर मंडरा रहे संकट को देखते हुए शोधकर्ता शमन (मिटिगेशन) रणनीति, विविध कृषि प्रणालियों और अनुकूलन प्रयासों को मजबूत करने की तात्कालिक आवश्यकता पर बल देते हैं, ताकि भावी पीढ़ियों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

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