अमेरिकी सांसदों ने कहा गेहूं सब्सिडी पर भारत के खिलाफ कदम उठाए बाइडेन प्रशासन
अमेरिका के गेहूं उत्पादकों का संगठन ‘व्हीट एसोसिएट्स’ इस मसले पर लंबे समय से भारत के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहा है। उसने अमेरिकी सांसदों के इस कदम का स्वागत किया है। अभी तक भारत की तरफ से इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है
भारत में गेहूं किसानों को सब्सिडी के मसले पर अमेरिका डब्लूटीओ में जा सकता है। अमेरिका के कुछ सांसदों ने जो बाइडेन प्रशासन से डब्लूटीओ में भारत के खिलाफ इस मसले पर शिकायत दर्ज कराने का आग्रह किया है। उनका कहना है कि भारत सरकार गेहूं के कुल उत्पादन की वैल्यू के आधा से ज्यादा की सब्सिडी देती है। दरअसल, अमेरिका के गेहूं उत्पादकों का संगठन ‘व्हीट एसोसिएट्स’ इस मसले पर लंबे समय से भारत के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहा है। उसने अमेरिकी सांसदों के इस कदम का स्वागत किया है। अभी तक भारत की तरफ से इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।
बाइडेन प्रशासन को अमेरिकी कांग्रेस के 28 सांसदों ने चिट्ठी लिखी है। इसमें कहा गया है कि भारत सरकार अपने किसानों को बहुत अधिक सब्सिडी देती है, जो अमेरिकी गेहूं उत्पादक किसानों के लिए नुकसानदायक है। सांसदों के अनुसार, “भारत अंतरराष्ट्रीय व्यापार नीति का उल्लंघन कर रहा है। डब्लूटीओ के नियमों के मुताबिक कोई भी देश उत्पादन की वैल्यू के अधिकतम 10 फीसदी ही तक सब्सिडी दे सकता है। अमेरिका भारत को अपनी समर्थन मूल्य व्यवस्था बदलने के लिए लगातार दबाव बना रहा है, लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ है। इसे रोकने के लिए जल्द से जल्द कार्रवाई की जाए।”
अमेरिकी सांसदों ने यह पत्र 13 जनवरी को लिखा है। इससे करीब एक महीने पहले 18 सीनेट (ऊपरी सदन) सदस्यों ने भी ऐसा ही पत्र लिखा था और बाइडेन प्रशासन से गेहूं और चावल उत्पादन में समर्थन मूल्य की व्यवस्था के खिलाफ डब्लूटीओ में शिकायत दर्ज कराने का आग्रह किया था।
नेशनल एसोसिएशन ऑफ व्हीट ग्रोअर्स इन अमेरिका के सीईओ चैंडलर गाउले ने कहा है कि डब्लूटीओ का सदस्य होने के नाते जरूरी है कि भारत उसके नियमों का पालन करे। अपने घरेलू उत्पादकों को गैर-जरूरी लाभ पहुंचाकर वह विश्व व्यापार को नुकसान न पहुंचाए।
अमेरिकी सरकार के कृषि विभाग का आकलन है कि भारत 30 जून, 2022 को खत्म होने वाले मार्केटिंग वर्ष में करीब 50 लाख टन गेहूं बेचेगा, जिससे विश्व बाजार में दूसरे देशों को नुकसान होगा। टेक्सास एएंडएम यूनिवर्सिटी की एक स्टडी रिपोर्ट के हवाले से दावा किया गया है कि भारत के सब्सिडी देने से अमेरिकी किसानों को हर साल 50 करोड़ डॉलर से अधिक का नुकसान उठाना पड़ता है।