एग्री डिप्लोमेसी पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत
कूटनीति यानी डिप्लोमेसी का साथ कृषि को कभी कभार ही मिलता है। असल में पेशेवर विदेश मामलों पर काम करने वाले हमारे डिप्लोमेट अपनी दक्षता का पूरा इस्तेमाल राजनीतिक चुनौतियों और अंतरराष्ट्रीय संबंधों को बेहतर बनाये रखने के प्रबंधन पर करते हैं
कूटनीति यानी डिप्लोमेसी का साथ कृषि को कभी कभार ही मिलता है। असल में पेशेवर विदेश मामलों पर काम करने वाले हमारे डिप्लोमेट अपनी दक्षता का पूरा इस्तेमाल राजनीतिक चुनौतियों और अंतरराष्ट्रीय संबंधों को बेहतर बनाये रखने के प्रबंधन पर करते हैं। हां यह भी एक बदलाव है कि पिछले कुछ बरसों में इकोनॉमिक डिप्लोमेसी यानी आर्थिक मसलों पर केंद्रित कूटनीति ने अच्छी खासी अहमियत हासिल की है। लेकिन इसके केंद्र में मैन्यूफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर की ओर ही विदेशियों का ध्यान खींचने पर रहा है। देश के कृषि क्षेत्र को लेकर विदेश नीति और कूटनीति का क्या फायदा हो सकता है इसको लेकर कोई अहमियत शायद ही दी जाती है। विदेश मामलों पर और कूटनीति पर टिप्पणी करने वाले और उस पर लिखने वाले लोगों ने भी कृषि क्षेत्र को लेकर होने वाले घटनाक्रम को अक्सर नजरअंदाज ही किया है। भारत जैसे कृषि आधारित सामाजिक और आर्थिक स्थिति वाले देश के मामले में यह चौंकाने वाली बात है। यह बात तब है जब देश की 60 फीसदी से अधिक आबादी कृषि और सहयोगी क्षेत्रों से आजीविका कमाती है और इस पर निर्भर है।
तमाम विशेषज्ञों का मानना कि सरकार के आत्मनिर्भर भारत के उद्देश्य को हासिल करने में सक्षम और आत्मनिर्भर कृषि क्षेत्र की अहम भूमिका है। यह केवल कृषि उत्पादों के निर्यात से अर्जित होने वाले विदेशी मुद्रा भंडर तक ही सीमित नहीं है बल्कि किसानों और ग्रामीण उत्पादकों को अंतरराष्ट्रीय बाजार मुहैया कराकर उनकी आय में इजाफा करने के लिए भी अहम है। जो सरकार और नीति निर्धारकों के लिए आज सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है।
विश्व व्यापार संगठन (डल्यूटीओ) के विदेश व्यापार आंकड़ों के मुताबिक विश्व के कुल कृषि व्यापार में भारत के कृषि निर्यात की हिस्सेदारी 2.27 फीसदी और आयात में हिस्सेदारी 1.90 फीसदी है। हालांकि साल 2020 में इसके पहले साल के मुकाबले कृषि उत्पादों के निर्यात में 23 फीसदी का इजाफा हुआ। वहीं कृषि जीडीपी के अनुपात में कृषि निर्यात भी 2019 के 9.4 फीसदी के मुकाबले बढ़कर 2020 में 9.9 फीसदी पर पहुंच गया। वहां आधिकारिक आंकड़ों में कृषइ उत्पदों का आयात इस दौरान 5.7 फीसदी से घटकर 4.9 फीसदी पर आ गया। जो इस बात का सुबूत है कि कृषि उत्पादों के आयात पर देश की निर्भरता घट रही है।
इस क्षेत्र के जानकारों का कहना है कि पिछले 15 साल में कृषि उत्पादों के निर्याता खासी बढ़ोतरी हुई है। लेकिन इसके बावजूद कई कृषि उत्पादों के उत्पादन में भारत के दुनिया में सबसे बड़े उत्पादक के रूप में शुमार होने के बावजूद कृषि उत्पादों के निर्यात में हम दुनिया के सबसे बड़े निर्यातक का स्थान नहीं रखते हैं। गेहूं के निर्यात के मामले में हम दुनिया में 34वें स्थान पर हैं। इसी तरह दुनिया में तीसरे सबसे बड़े सब्जी उत्पादक होने के बावजूद निर्यात में हम 14वें स्थान पर हैं और फलों के उत्पादन में दूसरे स्थान पर होने के बावजूद इनके निर्यातकों में हम 23वें स्थान पर आते हैं।
इसकी एक सबसे वजह हमारे किसानों के बीच जानकारी का अभाव है और इसी तरह विदेशियों को हमारे कृषि उत्पादन के बारे में जानकारी की कमी होना है। भारत में दुनिया के 180 देशों के डिप्लोमेटिक मिशन हैं। इनमें अधिकांश डिप्लोमेट राजनीति और आर्थिक कूटनीति पर पना ध्यान केंद्रित रखते हैं। लेकिन एक बड़ी तादाद ऐसे डिप्लोमेट और अधिकारियों की भी है जो कृषि के जुड़े मामले देखते हैं। सरकार के बहुत सारी एजेंसियां और विभाग कृषि से जुड़े मामलों को लेकर उनके साथ विभिन्न स्तरों पर चर्चा और विचार-विमर्श भी करते हैं लेकिन देश के किसानों और इन डिप्लोमेट के बीच सीधे कोई संवाद नहीं है और ही कोई ऐसा माध्यम है जो उनको आपस में जोड़ता हो। दोनों एक दूसरे की जानकारी के लिए सरकारी एजेंसियों के भरोसे ही रहते हैं।
यहां पर रुरलवॉयस डॉट इन नाम के इस न्यूज प्लेटफार्म की भूमिका शुरू होती है। विदेशी मिशन और वहां की कृषि क्षेत्र की दुनिया और भारतीय कृषि क्षेत्र और किसानों को एक दूसरे से जोड़ने वाले पुल का काम रुरल वायस करेगा। जो दोनों पक्षों की सूचना, नालेज और जरूरी घटनाक्रम और तथ्यों को एक दूसरे तक सटीक रूप में पहुंचाएगा। यह इनके बीच मजबूत सहयोग और एक दूसरे साथ काम करने की स्थितियों को बेहतर करने की भूमिका निभा सकेगा। इन देशों में कृषि उत्पादन, व्यापार, आयात-निर्यात की नीतियां, सरकारों द्वारा किये जाने वाले फैसले, टेक्नोलॉजी पर लगातार खबरों और आर्टिकल्स व कमेंट प्रकाशित होने का मतलह है कि जहां दूसरे देशों को देश की कृषि अर्थव्यवस्था के साथ जुड़ने में आसानी होगी वहीं भारत के किसानों के लिए भी सूचना पर आधारित फैसले लेने से नये मौकों के दरवाजे खुलेंगे। इस नालेज आधारित एक्सचेंज के जरिये जहां हमारे किसानों को बेहतर तकनीक का उपयोग कर उत्पादों की गुणवत्ता बढाने और नये बाजार तलाशने के विकल्प मिलेंगे वहीं दूसरे देशों को भी भारत में किस तरह की भूमिका उनके कृषि क्षेत्र और किसानों व कंपनियों के लिए उपलब्ध है इसे समझने में आसानी होगी। इसलिये यह कहने में कोई दोराय नहीं है कि एग्री डिप्लोमेसी को मुख्यधारा में लाकर सरकार भारतीय किसानों और कृषि क्षेत्र को आर्थिक रूप से मजबूत कर सकती है। लेकिन इसके लिए इसकी अहमियत को समझना जरूरी है।
.(लेखक RuralVoice.in के कंसल्टिंग एडीटर हैं)