रूस से कच्चे तेल के साथ उर्वरक भी डिस्काउंट पर खरीद सकता है भारत
भारत रूस और उसके सहयोगी बेलारूस से सस्ता उर्वरक आयात करने की कोशिश कर रहा है। पश्चिमी देशों ने रूस के साथ-साथ बेलारूस पर भी प्रतिबंध है लगाया है, क्योंकि यूक्रेन पर हमले में वह रूस का साथ दे रहा है
रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध के बीच कच्चे तेल के साथ उर्वरकों के मामले में भी भारत के लिए कुछ उम्मीद जगी है। रूस ने भारत को डिस्काउंट पर कच्चा तेल बेचने की पेशकश की है, जिसे भारत स्वीकार कर सकता है। भारत रूस और बेलारूस से डिस्काउंट पर उर्वरक खरीदने की भी कोशिश कर रहा है।
भारत अपनी जरूरत का करीब 85 फ़ीसदी कच्चा तेल आयात करता है। लेकिन भारत के आयात में रूस की हिस्सेदारी सिर्फ 2 से 3 फ़ीसदी तक रही है। ऐसे समय जब अमेरिका और पश्चिमी देशों ने रूस पर प्रतिबंध लगा दिया है और साथ ही कच्चे तेल की कीमतें कई साल के उच्चतम स्तर पर चल रही हैं, तो भारत के लिए डिस्काउंट पर तेल खरीदना राहत की बात हो सकती है। एक और राहत की बात यह है कि अमेरिका ने कहा है भारत के रूस से कच्चा तेल खरीदने पर उसे कोई एतराज नहीं है। दरअसल पश्चिमी देशों ने रूस पर जो प्रतिबंध लगाया है उसमें कच्चे तेल को शामिल नहीं किया गया है।
उर्वरकों पर प्रतिबंध को लेकर अभी स्थिति साफ नहीं है, पर माना जा रहा है कि भारत इसमें भी रूस से डिस्काउंट का लाभ ले सकता है। भारत रूस और उसके सहयोगी बेलारूस से सस्ता उर्वरक आयात करने की कोशिश कर रहा है। पश्चिमी देशों ने रूस के साथ-साथ बेलारूस पर भी प्रतिबंध है लगाया है, क्योंकि यूक्रेन पर हमले में वह रूस का साथ दे रहा है।
रूस और बेलारूस उर्वरकों के बड़े निर्यातक हैं। 2019-20 में रासायनिक उर्वरकों की ग्लोबल सप्लाई में 14 से 16 फ़ीसदी हिस्सा रूस का था। खासतौर से म्यूरेट ऑफ पोटाश (एमओपी) के मामले में भारत की रूस और बेलारूस पर निर्भरता काफी अधिक है। 2021 में देश के कुल एमओपी आयात का 40 फीसदी बेलारूस से और 5.95 फीसदी रूस से आया था। प्रतिबंधों के चलते अंतरराष्ट्रीय बाजार में उर्वरकों के दाम भी काफी बढ़ गए हैं। यूरिया की कीमत 1000 डॉलर प्रति टन के आसपास हो गई है। ऐसे में अगर रूस और बेलारूस से डिस्काउंट पर उर्वरक मिल जाता है तो सरकार पर उर्वरक सब्सिडी बढ़ाने का दबाव कुछ कम हो सकता है। भारत जर्मनी, कनाडा और जॉर्डन जैसे दूसरे देशों से भी उर्वरक आयात करने पर विचार कर रहा है, लेकिन बेलारूस और रूस से आयात होने वाली बड़ी मात्रा का विकल्प खोजना बहुत आसान नहीं है।
भारत के लिए फिलहाल दो समस्याएं दिख रही हैं। एक तो यह कि शिपिंग कंपनियां टैंकर देने के लिए और बीमा कंपनियां बीमा करने के लिए तैयार नहीं हैं। रूस ने कच्चे तेल के मामले में तो कहा है कि वह जिसकी जिम्मेदारी लेगा, लेकिन उर्वरकों के मामले में अभी स्थिति साफ नहीं है। दूसरी समस्या भुगतान को लेकर है। अभी तक अमेरिकी डॉलर में भुगतान हो रहा था लेकिन अमेरिका ने रूस के साथ डॉलर में कारोबार पर भी रोक लगा दी है। इसलिए विकल्प के तौर पर रुपया और रूबल में कारोबार करने की संभावनाओं पर विचार किया जा रहा है।