प्राकृतिक खेती पर खूब जोर, लेकिन बजट कम और वास्तविक खर्च उससे भी कम
वर्ष 2025-26 के लिए राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन के लिए 616 करोड़ रुपये का बजट दिया गया है। कहने को यह पिछले साल के बजट से अधिक है लेकिन गत वर्षों के प्रदर्शन को देखते हुए यह खर्च होने की संभावना कम है।
पिछले कुछ वर्षों से प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की खूब बातें हो रही हैं। केंद्र सरकार प्राकृतिक खेती पर काफी जोर दे रही है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों के बजट के आंकड़े देश में प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन देने के मामले में खास उत्साहजनक नजर नहीं आते।
सुभाष पालेकर की जीरो बजट नैचुरल फार्मिंग (ZBNF) से प्रेरणा लेते हुए वर्ष 2019-20 के बजट में वित्त मंत्री ने जीरो बजट खेती को अपनाने पर जोर दिया था। तब परंपरागत कृषि विकास योजना के तहत एक सब-स्कीम भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति (BPKP) के जरिए किसानों को रासायनिक खेती की बजाय प्राकृतिक खेती को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करने का प्रयास किया गया। हालांकि, परंपरागत कृषि विकास योजना के लिए वर्ष 2019-20 में मात्र 325 करोड़ रुपये का बजट रखा गया था, जिसमें से 284 करोड़ रुपये ही खर्च हो पाये।
प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की योजना का बजट (करोड़ रु. में) | |||
वर्ष | बजट अनुमान | संशोधित अनुमान | वास्तविक खर्च |
2019-20 | 325 | 299 | 284 |
2020-21 | 500 | 350 | 381 |
2021-22 | 450 | 100 | 89 |
2022-23 | 0 | 0 | 0 |
2023-24 | 459 | 100 | 30 |
2024-25 | 366 | 100 | |
2025-26 | 616 | ||
नोट: 2019 से 23 तक परंपरांगत कृषि विकास योजना, 2023 से राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन, स्रोत: केंद्रीय बजट, भारत सरकार |
अगले वर्ष 2020-21 में भी कमोबेश यही स्थिति थी। तब परंपरागत कृषि विकास योजना के लिए 500 करोड़ रुपये के बजट का ऐलान हुआ था जिसमें से वास्तविक खर्च 381 करोड़ रुपये ही हो पाया। वर्ष 2021-22 में परंपरागत कृषि विकास योजना का बजट घटाकर 450 करोड़ रुपये कर दिया गया, लेकिन इतने कम बजट में भी वास्तविक खर्च मात्र 89 करोड़ रुपये हुआ था। इसके बाद केंद्र सरकार ने इस योजना को ही बंद कर दिया था। ऐसी कई योजनाओं को राष्ट्रीय कृषि विकास योजना में समाहित कर दिया गया था।
वर्ष 2022-23 के बजट भाषण में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने गंगा नदी के किनारे 5 किलोमीटर चौड़े क्षेत्र में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की घोषणा की थी। वर्ष 2023-24 के बजट में ऐलान किया गया कि अगले तीन वर्षों में एक करोड़ किसानों को प्राकृतिक खेती अपनाने में सहयोग किया जाएगा। इसके लिए 10 हजार बायो-इनपुट रिसोर्स सेंटर बनने थे। इतने बड़े लक्ष्य के बावजूद राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन के लिए 2023-24 के बजट में मात्र 459 करोड़ रुपये के खर्च का प्रावधान किया गया, जिसे संशोधित अनुमानों में घटाकर 100 करोड़ रुपये कर दिया गया। लेकिन वास्तविक खर्च केवल 30 करोड़ रुपये हुआ।
वर्ष 2024-25 के बजट में किसानों को प्राकृतिक खेती से जोड़ने के मिशन का बजट घटाकर 365 करोड़ रुपये कर दिया गया। 2024-25 संशोधित बजट में इसे और भी घटाकर मात्र 100 करोड़ रुपये कर दिया।
अब 2025-26 के बजट में राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन के लिए 616 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। कहने को यह पिछले साल के बजट से अधिक है लेकिन गत वर्षों के प्रदर्शन को देखते हुए यह खर्च होने की संभावना कम है। वास्तविक खर्च बजट अनुमानों से काफी कम रह सकता है।
साल-दर-साल बजट आवंटन के मुकाबले कम खर्च, प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की योजना की चुनौतियों को रेखांकित करता है। जबकि केंद्र सरकार ने मिशन मोड में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन शुरू किया है। अगले दो वर्षों में, राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन से 1 करोड़ किसानों को जोड़ना और करीब 7.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में प्राकृतिक खेती करवाना एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य है।