भाजपा विधायकों के असंतोष ने मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह को इस्तीफा देने पर मजबूर किया

मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने भाजपा के भीतर बढ़ते असंतोष और विधायकों की नेतृत्व परिवर्तन की मांग के बीच इस्तीफा दिया है। उनके इस कदम से राज्य में जारी राजनीतिक संकट और गहरा गया है। उन्होंने इस्तीफा ऐसे समय दिया जब विधानसभा सत्र शुरू होने में सिर्फ एक दिन बचा है।

भाजपा विधायकों के असंतोष ने मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह को इस्तीफा देने पर मजबूर किया

मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने भाजपा के भीतर बढ़ते असंतोष और विधायकों की नेतृत्व परिवर्तन की मांग के बीच इस्तीफा दिया है। उनके इस कदम से राज्य में जारी राजनीतिक संकट और गहरा गया है। उन्होंने इस्तीफा ऐसे समय दिया जब विधानसभा सत्र शुरू होने में सिर्फ एक दिन बचा है। बीरेन सिंह ने दिल्ली से इंफाल लौटते ही इस्तीफा दिया। दिल्ली में उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ एक महत्वपूर्ण बैठक की थी। इस बैठक में भाजपा के पूर्वोत्तर को कोऑर्डिनेटर संबित पात्रा भी शामिल थे। 

राज्य सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाए जाने के आसार हैं। यह मणिपुर में 3 मई 2023 को भड़की जातीय हिंसा के बाद भाजपा सरकार के खिलाफ लाया जाने वाला पहला अविश्वास प्रस्ताव होगा।  प्रदेश में जारी हिंसा ने भाजपा के भीतर मतभेदों को उजागर कर दिया है। कई विधायकों ने खुलकर बीरेन सिंह के नेतृत्व को चुनौती दी है और केंद्र सरकार की नीतियों की आलोचना की।

भाजपा के भीतर बढ़ता असंतोष
बीरेन सिंह 2017 से मणिपुर के मुख्यमंत्री थे। उन्हें अपने पहले कार्यकाल में भी विरोध का सामना करना पड़ा था। लेकिन उन्होंने न सिफ अपनी स्थिति बनाए रखी बल्कि 2019 में दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने में भी कामयाब रहे। हालांकि दूसरे कार्यकाल के दौरान पार्टी के भीतर असंतोष बढ़ता गया, खासकर 2023 में जातीय हिंसा भड़कने के बाद।

संकट तब और गहरा गया जब दस कुकी विधायकों ने बीरेन सिंह को हटाने की मांग की। इसके बाद भाजपा के कई अन्य विधायकों और सहयोगी दलों ने भी नेतृत्व परिवर्तन की जरूरत पर जोर दिया। कई मंत्रियों और विधायकों ने कानून व्यवस्था की स्थिति को संभालने में मुख्यमंत्री की विफलता पर खुलकर नाराजगी जताई, और उन्हें हिंसा प्रभावित राज्य में शांति बहाल करने में नाकाम बताया।

हाल ही नेशनल पीपुल्स पार्टी (NPP) ने बीरेन सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया, जिससे उनकी स्थिति और कमजोर हो गई। अब सभी की निगाहें भाजपा नेतृत्व पर टिकी हैं कि वह इस संकट से निपटने के लिए आगे क्या कदम उठाएगा।

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