रेगिस्तान में अनार की बहार लाने वाले इस किसान ने एक सीजन में बेचा 70 लाख का अनार
राजस्थान के रेगिस्तान में खेती करना अपने आप में मुश्किल काम है। पानी की कमी, मौसम की अनिश्चितता जैसी मुश्किलों से जूझते हुए रेगिस्तान में अनार की खेती को मुमकिन कर दिखाया है फलोदी जिले के डेचू गांव के किसान चंद्रप्रकाश माली ने। यह गांव जोधपुर और जैसलमेर के लगभग बीच में है। इस गांव के और भी किसान अनार की खेती करते हैं। अनार की खेती के लिए चंद्रप्रकाश माली को रूरल वॉयस नेकॉफ अवार्ड 2023 से भी सम्मानित किया गया है। बेस्ट फार्मिंग प्रैक्टिसेज कैटेगरी में उन्हें यह अवार्ड दिया गया है।
राजस्थान के रेगिस्तान में खेती करना अपने आप में मुश्किल काम है। पानी की कमी, मौसम की अनिश्चितता जैसी मुश्किलों से जूझते हुए रेगिस्तान में अनार की खेती को मुमकिन कर दिखाया है फलोदी जिले के डेचू गांव के किसान चंद्रप्रकाश माली ने। यह गांव जोधपुर और जैसलमेर के लगभग बीच में है। इस गांव के और भी किसान अनार की खेती करते हैं। अनार की खेती के लिए चंद्रप्रकाश माली को रूरल वॉयस नेकॉफ अवार्ड 2023 से भी सम्मानित किया गया है। बेस्ट फार्मिंग प्रैक्टिसेज कैटेगरी में उन्हें यह अवार्ड दिया गया है।
रूरल वॉयस से बातचीत में चंद्रप्रकाश माली ने बताया कि चालू सीजन में उन्होंने अब तक 70 लाख रुपये का अनार बेचा है। करीब 30 फीसदी अनार और बचा हुआ है जिसकी तुड़ाई अगले साल मार्च तक होती रहेगी। चंद्रप्रकाश माली अपनी 123 बीघा जमीन में से 80 बीघा में अनार की ही खेती करते हैं। रेत के टीलों से घिरे बगीचे में इन्होंने अनार के नौ हजार से ज्यादा पेड़ लगा रखे हैं। अनार की खेती शुरू करने से पहले वे सरसों, चना, जीरा, इसबगोल और मूंगफली की खेती करते रहे हैं जो अब भी कर रहे हैं।
नीति आयोग के सदस्य प्रो. रमेश चंद से रूरल वॉयस नेकॉफ अवार्ड ग्रहण करते चंद्रप्रकाश माली।
अनार की खेती शुरू करने की प्रेरणा कैसे मिली, यह पूछने पर उन्होंने बताया कि मेरा एक दोस्त अनार की खेती करता है जिसे देखने मैं गया था। उससे जरूरी जानकारी लेने के बाद मैंने राज्य सरकार के हॉर्टिकल्चर डिपार्टमेंट से संपर्क किया। हॉर्टिकल्चर डिपार्टमेंट ने सब्सिडी पर मुझे अनार के पौधे मुहैया कराए। एक पौधे की लागत 40 रुपये थी जिस पर मुझे 16 रुपये की सब्सिडी मिली। वर्ष 2017 में मैंने अनार के 12,000 पौधे लगाए थे। इसमें से 3,000 पौधे विभिन्न वजहों से खराब हो गए। अब मेरे खेत में 9,000 पौधे बचे हैं। मैंने तीन साल तक इन पौधों की देखभाल के लिए कड़ी मेहनत की। अनार के पौधे तीन साल बाद ही फल देना शुरू करते हैं और 20 साल तक फल देते रहते हैं।
उन्होंने बताया कि वर्ष 2020 में पहली बार अनार की तुड़ाई हुई। 2021 में पाला पड़ने की वजह से ज्यादातर फसल खराब हो गई। 2022 में भी शीतलहर ने नुकसान पहुंचाया। 2023 में फसल अच्छी रही है और अब तक 70 लाख रुपये की अनार वे बेच चुके हैं। करीब 200 टन का उत्पादन हो चुका है। उन्होंने कहा कि एक-डेढ़ महीने पहले तक भाव अच्छा मिला लेकिन अभी भाव काफी घट गया है। अगर भाव में तेजी बनी रहती तो कमाई और ज्यादा होती। उन्होंने बताया कि अनार की खेती की लागत काफी ज्यादा है। ऐसे में अगर भाव न मिले तो नुकसान झेलना मुश्किल होता है। मेरी लागत 20 लाख रुपये सालाना है। उनके मुताबिक, अगर मौसम अनुकूल रहा और भाव ठीक मिला तो प्रति बीघा 1 लाख रुपये की कमाई अनार की खेती से हो जाती है।
रेत के टीलों के बीच चंद्रप्रकाश माली का अनार का बगीचा।
चंद्रप्रकाश माली के मुताबिक, रेगिस्तान में अनार उगाने में मौसम संबंधी समस्याओं (आंधी-तूफान, शीतलहर) और पानी की कमी का काफी सामना करना पड़ता है। पानी की समस्या से निपटने के लिए उन्होंने स्प्रिंकलर सिंचाई तकनीक को अपनाया है।
उन्होंने बताया कि तकनीक की जानकारी देने, उनका इस्तेमाल करने और फसल को कीटों से बचाने में जोधपुर स्थित साउथ एशिया बायोटेक्नोलॉजी सेंटर के संस्थापक भगीरथ चौधरी और उनकी टीम का पूरा सहयोग मिला है। उनकी टीम समय-समय पर मेरे फार्म का दौरा करती रहती है और जरूरी जानकारी और सलाह देती रहती है।