रूरल वॉयस विशेषः बिना जलाए खेत में नष्ट करें फसल अवशेष, मिट्टी की उर्वर क्षमता भी बढ़ेगी
फसल अवशेष को खाद में बदलने के लिए एक एकड़ में लगभग 10 लीटर डिकंपोजर घोल की आवश्यकता होती है। 200 लीटर पानी में 10 लीटर घोल मिलाकर खेत में छिड़काव करने के बाद रोटावेटर से मिट्टी में मिला दें। ध्यान रखें कि अवशेष को मिट्टी में दबाना जरूरी है। फिर हल्का पानी डालें। लगभग 25 दिनों में अवशेष पूरी तरह गल जाएगा
आजकल अधिकतर किसान हार्वेस्टर से फसल की कटाई करते हैं, जिससे फसल के अवशेष खेत में ही रह जाते हैं। अनेक किसान इन अवशेषों को खेतों में ही जला देते हैं। लेकिन किसानों को ये नहीं मालूम, कि वे फसल अवशेष के साथ खेत के पोषक तत्वों को भी जला कर ख़त्म कर रहे हैं। अवशेष जलाने से मिट्टी में पाए जाने वाले मित्र कीट भी नष्ट हो जाते हैं जिससे जमीन की उर्वरा शक्ति घट जाती है। पराली की समस्या से निपटने के लिए कई तरीके खोजे गये हैं जिससे। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई पूसा) में एग्रीकल्चर इंजीनियरिग हेड क्रॉप रेसिड्यू मैनेजमेंट के नोडल आफिसर डॉ. इन्द्रमणि मिश्रा ने रूरल वॉयस के साथ चर्चा में बायोमास मैनेजमेंट टेक्नॉलोजी के बारे में जानकारी दी। इसे आप ऊपर दिए गए वीडियो लिंक पर क्लिक करके देख सकते हैं।
डॉ इन्द्रमणि ने बताया कि धान की कटाई के बाद दूसरी फ़सल बोने के बीच ज्यादा वक्त नहीं होता, इसलिए किसान आनन-फानन में पराली जला देते हैं। पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसान जो अवशेष जलाते है ,उससे दिल्ली और उसके आस-पास के इलाक़ों में प्रदूषण का संकट गहरा जाता है। इसके अलावा मिट्टी को भी नुकसान होता है क्योंकि जीवाणु और मित्र कीट नष्ट हो जाते हैं। इससे जमीन की उर्वरा शक्ति भी घट जाती है।
डॉ इन्द्रमणि ने बताया कि बायोमास मैनेजमेंट टेक्ऩोलॉजी के तहत बायोमास का प्रबंधन दो तरह से किया जा सकता है। पहला है इन-सीटू प्रबंधन जो खेत में ही होता है। इसके लिए वेस्ट डिकंपोजर सबसे प्रभावी उपाय है। इसके छिड़काव के बाद फसल अवशेष खाद में परिवर्तित हो जाते हैं। इसके अलावा कई नए कृषि यंत्रों की खोज हुई है जिनके इस्तेमाल से आप ना केवल फ़सल अवशेषों की समस्या से बच सकेंगे, बल्कि जमीन को अच्छी खाद भी मिलेगी। सुपर एसएमएस या स्ट्रॉ चॉपर से फसल अवशेषों को बारीक टुकड़ों में काटकर जमीन पर फैला दें। अवशेषों को मल्चर मशीन से मिट्टी में मिला देने से वह सड़कर अच्छी खाद बन जाती है। जीरो ड्रिल, रोटावेटर, रीपर-बाइंडर और स्थानीय रूप से उपयोगी और सस्ते उपकरणों का इस्तेमाल करके फसल अवशेष का प्रबंधन किया जा सकता है।
दूसरा तरीका एक्स-सीटू है, यानी फसल अवशेष को खेत से बाहर ले जाकर कम्पोस्ट खाद बनाना, पशुओं के लिए चारा बनाना। बेलर से इसकी गांठ बना कर इलेक्ट्रिक पावर जेनरेटर यूनिट को सप्लाई कर आय कमा सकते हैं।
डॉ इंद्रमणि मिश्रा ने बताया कि कम्बाईन हार्वेस्टर मशीन में सुपर एस्ट्रा मशीन जोड़ी गयी और इसको सरकार की तरफ अनिवार्य किया गया है। इससे फसल कटाई दौरान अवशेष छोटा किया जा सके और गेहूं की हैप्पीसीडर और जीरो टिलेज से बुवाई करने में किसी तरह की परेशानी ना हो। उन्होंने बताया कि उनके संस्थान ने पूसा डिकंपोजर नाम से एक बायो एंजाइम विकसित किया है। ये किसानों को कैप्सूल के रूप में दिए जाते हैं। इन कैप्सूलों से बना घोल धान की पराली को गला देता है। इससे जैविक खाद का उत्पादन होता है जो मिट्टी की उर्वरक क्षमता को बढ़ाता है।
उन्होंने बताया कि फसल अवशेष को खाद में बदलने के लिए एक एकड़ में लगभग 10 लीटर घोल की आवश्यकता होती है। 200 लीटर पानी में 10 लीटर घोल मिलाकर खेत में छिड़काव करने के बाद रोटावेटर से मिट्टी में मिला दें। ध्यान रखें कि अवशेष को मिट्टी में दबाना जरूरी है। फिर हल्का पानी डालें। करीब 15 दिन बाद पराली गलने लगेगी। लगभग 25 दिनों में अवशेष पूरी तरह गल जाएगा।
फसल अवशेष प्रबंधन तकनीक को अपनाने वाले दिल्ली हिंरकी गांव के किसान उमेश सिंह ने बताया कि उन्होंने 48 एकड़ में धान की कटाई के बाद पूसा डिकंपोजर इस्तेमाल किया। धान की पराली मिट्टी में दबा दी और फिर हल्का पानी डाला। लगभग 25 दिनों में अवशेष गल गया। इसके बाद गेहूं की बुवाई बड़ी आसानी हो गई और फसल भी बेहतर हुई।