मल्टी-स्टेट कोऑपरेटिव सोसायटी संशोधन बिल लोकसभा से पास
इस विधेयक में सहकारी समितियों का स्वतंत्र चुनाव करवाने और चुनाव सुधार लागू करने के लिए निर्वाचन प्राधिकरण का प्रावधान किया गया है। यह निर्वाचन आयोग के लगभग बराबर शक्तिशाली होगा और इसमें सरकारी दखल नहीं होगा। इसके अलावा, अगर निदेशक मंडल की एक-तिहाई संख्या खाली हो जाती है तो फिर चुनाव करवाने की व्यवस्था की गई है। साथ ही बोर्ड की बैठकों में अनुशासन, सहकारी समितियों के कार्यकलाप सुचारू रूप से चलाने के भी प्रावधान इसमें किए गए हैं।
मल्टी-स्टेट कोऑपरेटिव सोसायटी (संशोधन) विधेयक, 2022 लोकसभा से पास हो गया है। अब इस पर राज्यसभा में चर्चा होगी और वहां से पास होने के बाद राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने पर यह नया कानून बन जाएगा। इसके जरिये सहकारिता क्षेत्र को मजबूती मिलेगी और सहकारी समितियों की पारदर्शिता, जवाबदेही और मुनाफा बढ़ाने में मदद मिलेगी।
केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने विधेयक पर लोकसभा में मंगलवार को हुई चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि इस विधेयक में सहकारी समितियों का स्वतंत्र चुनाव करवाने और चुनाव सुधार लागू करने के लिए निर्वाचन प्राधिकरण का प्रावधान किया गया है। यह निर्वाचन आयोग के लगभग बराबर शक्तिशाली होगा और इसमें सरकारी दखल नहीं होगा। इसके अलावा, अगर निदेशक मंडल की एक-तिहाई संख्या खाली हो जाती है तो फिर चुनाव करवाने की व्यवस्था की गई है। साथ ही बोर्ड की बैठकों में अनुशासन, सहकारी समितियों के कार्यकलाप सुचारू रूप से चलाने के भी प्रावधान इसमें किए गए हैं।
शाह ने लोकसभा को बताया कि इस विधेयक में सहकारी समितियों के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्यों को तीन महीने में बोर्ड बैठक बुलाना अनिवार्य किया गया है। साथ ही सहकारी समिति के शासन में पारदर्शिता लाने के लिए इक्विटी शेयरधारक को बहुमत का प्रावधान रखा गया है। उन्होंने कहा कि सहकारी समितियों के बोर्ड में एक अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति और एक महिला सदस्य को अनिवार्य रूप से रखने का प्रावधान किया गया है ताकि समितियों में इन वर्गों का प्रतिनिधित्व बढ़े।
उन्होंने कहा कि विभिन्न संवैधानिक अपेक्षाओं का अनुपालन नहीं करने पर बोर्ड के सदस्यों को अयोग्य घोषित किया जा सकता है। इसके अलावा कर्मचारियों की भर्ती प्रक्रिया में किसी भी बोर्ड सदस्य के पारिवारिक सदस्यों (जिनसे खून का रिश्ता हो) या नजदीकी रिश्तेदारों को नौकरी नहीं दी जा सकेगी। इस विधेयक में सूचना के अधिकार को भी शामिल किया गया है।
उन्होंने कहा कि सदन द्वारा यह बिल पारित करने के साथ ही देश के सहकारिता आंदोलन में एक नए युग की शुरूआत होगी। सहकारिता क्षेत्र को मजबूती देने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की जानकारी देते हुए अमित शाह ने कहा कि इस वर्ष दीपावली से पहले नई राष्ट्रीय सहकारी नीति सामने आ जाएगी जो अगले 25 सालों का सहकारिता का मानचित्र देश के सामने रखेगी।
सुरेश प्रभु की अध्यक्षता वाली 49 सदस्यीय समिति ने पिछले महीने नई राष्ट्रीय सहकारिता नीति का मसौदा सहकारिता मंत्री को सौंपा था जिसमें कई महत्वपूर्ण सिफारिशें की गई हैं। सहकारिता की मौजूदा नीति 2002 में बनाई गई थी लेकिन बदलते आर्थिक परिवेश में इस नीति में संशोधन की आवश्यकता महसूस की जा रही थी। इसे देखते हुए सरकार ने सितंबर 2022 में नई नीति का मसौदा तैयार करने के लिए इस समिति का गठन किया था।
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने पैक्स को पुनर्जीवित करने, उन्हें व्यावहारिक और बहुआयामी बनाने के लिए कई प्रयास किए हैं। 63,000 पैक्स को 2500 करोड़ रुपये की लागत से कम्प्यूटराइज्ड किया जा रहा है। इससे पैक्स जिला सहकारी बैंकों, राज्य सहकारी बैंकों और नाबार्ड के साथ जुड़ जाएंगे और उनके ऑडिट की प्रक्रिया पूरी तरह ऑनलाइन हो जाएगी। ये कई प्रकार के नए व्यवसाय कर सकेंगे। अब पैक्स एफपीओ का भी काम कर सकेंगे। 1100 पैक्स एफपीओ के रूप में रजिस्टर्ड हो चुके हैं। पैक्स एलपीजी वितरण, जनऔषधि केंद्र चलाने और पानी समिति बनकर जल वितरण का काम भी कर सकेंगे। इसे भंडारण क्षमता के साथ भी जोड़ा जा रहा है। ये भंडारण का भी काम करेंगे।
सरकार ने सहकारिता को मजबूत करने के लिए तीन नई बहुराज्यीय सोसायटी बनाने का निर्णय लिया। पहली सोसायटी किसान की उपज को निर्यात करने के प्लेटफार्म के रूप में काम करेगी। दूसरी सोसायटी बीजों के उत्पादन के साथ छोटे किसानों को जोड़ेगी और इससे 1 एकड़ भूमि वाले किसान भी बीज उत्पादन के साथ जुड़ सकेंगे। तीसरी सोसायटी ऑर्गेनिक खेती के उत्पादों की देश और दुनिया में मार्केटिंग कर किसानों को उनकी उपज का उचित दाम दिलाएगी।