देश में कुपोषण की समस्या को दूर करने के लिए बायोफोर्टिफाइड किस्में बेहतर विकल्प
धान, गेहूं औऱ मक्का का रकबा बढ़ा लेकिन स्वास्थ्य के लिए जरूरी पोषक तत्वों वाली फसलें गौण होती चली गईं । वहीं फसलों का विविधिकरण भी कम हो गया। लोगों को भोजन में सभी पोषक तत्व मिलें इसके लिए कृषि वैज्ञानिकों ने बायोफोर्टिफाइड फसलों की किस्में विकसित की हैं । बायोफोर्टिफाइड फसलें बेहतर पोषक तत्वों वाली किस्मों से उच्च-उपज वाली फसलों की किस्मों का संकरण कराके तैयार की जाती है, जिन्हें बायोफोर्टिफाइड किस्में कहा जाता है
बढ़ती जनसंख्या और घटती जोत की चुनौती के बाद भी अगर खाद्यान्न की उत्पादकता काफी बढ़ोतरी हूई है तो ये अनुसंधान और नीतियों का ही परिणाम हैं । इसके चलते ही हमारा खाद्यान्न उत्पादन 1950-51 में 5 करोड़ 10 लाख टन से बढ़कर आज 30 करोड़ 54 लाख टन का तक पहुंच गया है। हम खाद्यान्न में आत्मनिर्भर ही नहीं बल्कि दुनिया मे एक बड़े निर्यातक भी बन गये । इस बड़े बदलाव को लोगों के भोजन में कैलोरी उपलब्ध कराने और भुखमरी कम करने का श्रेय दिया जाता है। देश में न सिर्फ धान, गेहूं औऱ मक्का का रकबा बढ़ा धान, गेहूं औऱ मक्का का रकबा बढ़ा लेकिन स्वास्थ्य के लिए जरूरी पोषक तत्वों वाली फसलें गौण होती चली गईं । वहीं फसलों का विविधिकरण भी कम हो गया। लोगों को भोजन में सभी पोषक तत्व मिलें इसके लिए कृषि वैज्ञानिकों ने बायोफोर्टिफाइड फसलों की किस्में विकसित की हैं । बायोफोर्टिफाइड फसलें बेहतर पोषक तत्वों वाली किस्मों से उच्च-उपज वाली फसलों की किस्मों का संकरण कराके तैयार की जाती है, जिन्हें बायोफोर्टिफाइड किस्में कहा जाता है।
1960 के दशक में में जिंक सांद्रता 27.1 मिलीग्राम / किग्रा और और आयरन की 59.8 मिलीग्राम /किग्रा थी । मगर 2000 के दशक में यह गिरकर क्रमश: 20.6 मिलीग्राम/किग्रा और 43.1 मिलीग्राम/किलोग्राम हो गई । वहीं जहां गेहूं की किस्मों में जिंक की सांद्रता 33.3 मिलीग्राम / किग्रा और और आयरन 57.6 मिलीग्राम / किग्रा थी वो 2010 मे गिर कर क्रमश: 23.5 मिलीग्राम/किलोग्रामऔर 46.4 मिलीग्राम/ किग्रा हो गई । इसका नतीजा यह है कि आज के समय में 14 फीसदी आबादी अभी भी कुपोषण का शिकार है । सब यह जानते है कि लोगों के स्वास्थय के लिए जरुरी विभिन्न पोषक तत्व फलों सब्जियों और आनाजों के आहार से शरीर में जाते हैं । लेकिन कृषि में शोध केवल कुछ आनाज फसलों तक ही सीमीत हो गया ।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) और कृषि विश्वविद्यालयों के तहत विभिन्न संस्थानों के शोधकर्ताओं ने पाया कि भारत में चावल और गेहूं की खेती में जिंक और आयरन के अनाज घनत्व में कमी देखी गई है। देश में हर चार व्यक्तियों में से लगभग एक व्यक्ति विटामिन और और अन्य पोषक तत्वों की कमी से पीड़ित है जिसके परिणामस्वरूप, मानसिक कमजोरी, खराब स्वास्थ्य, कम उत्पादकता और यहां तक कि मृत्यु भी हो सकती है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग 4.3 करोड़ लोग पोषक तत्वो की कमी के कारण अपनी पूरी मानव क्षमता का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं। तो लोगों को जरुरी पोषक तत्वों उपलब्ध कराने का क्या उपाय है ?
बाजार में कृत्रिम रुप से तैयार किए गये पोषक तत्वों का लोग सेवन तो कर सकते है लेकिन मंहगे होने के कारण सभी लोगों को यह उपलब्ध कराना मुश्किल है । सभी लोगों को भोजन में सभी पोषक तत्व मिले इसके लिए कृषि वैज्ञानिकों ने बायोफोर्टिफाइड फसले की किस्में विकसित की है । बायोफोर्टिफाइड फसलें सूक्ष्म पोषक तत्वों वाली फसल किस्मों से उच्च-उपज वाले फसल किस्मों का संकरण कराके तैयार की जाती है, जिसे जैव संवर्धित यानि बायोफोर्टिफाइड किस्में कहा जाता है । आईएआरआई, पूसा के जेनेटिक्स विभाग के प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉ. फिरोज हसन का कहना है कि इस तकनीक में जिन फसलों में आयरन,प्रोटीन, जिंक, विटामिन ए, और विटामिन सी जैसे पोषक तत्वों की कमी रहती है उन फसलों में उगाते समय पादप प्रजनन तकनीक द्वारा सुक्ष्म पोषक तत्वों को जोड़ दिया जाता है और नई किस्में विकसित कर दी जाती है जो बायोफोर्टिफाइड किस्में कहलाती हैं।
पोषण और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी को दूर करने में इस तकनीक को नई क्रांति के रूप में देखा जा रहा है। डॉ. फिरोज का कहना है कि अपने देश में 16 फसलों की 85 किस्में आज के समय मे बायोफोर्टिफाइड किस्में विकसित हो चुकी है जिनमे गेहूं, चावल, मक्का, बाजरा, रागी , सावा, सरसों, मूंगफली, रतालू,अनार.आलू ,फूलगोभी,मसूर ,शकरकंद, अलसी औऱ गाजर की किस्मे शामिल है । इन किस्मों में 15 सूक्ष्म पोषक तत्वों को बढ़ाया गया है। इन किसमो में प्रोटीन जिंक आयरन, कैल्शियम. विटामिन,ए विटामिन सी ,अमोनिया, लाइसिन और ट्रिप्टोफैन जैसे सूक्ष्म पोषक तत्व बढाए गए हैं । पिछले साल प्रधानमंत्री ने 8 फसलों की 17 बायोफोर्टिफाइड किस्में राष्ट्र को समर्पित कीं थी । चावल-सीआर धान 315 जिंक से भरपूर होता है। गेहूं- HI 1633 प्रोटीन, आयरन और जिंक से भरपूर होता है । मक्का-हाइब्रिड किस्में 1, 2 और 3 लाइसिन और ट्रिप्टोफैन से भरपूर होती हैं। ' मधुबन गाजर' मे -कैरोटीन और आयरन की उच्च मात्रा होती है।
आईएआरआई जेनेटिक्स विभाग के प्रिंसिपल साइंटिस्ट एस.पी सिंह का कहना है कि मोटे अनाज जैसे बाजरा, रागी , सावा, में आयरन, जिंक और कैल्शियम की मात्रा को बढ़ाया गया है। उनका कहना था कि आईसीएआर ने इसको बढ़ावा देने के लिए न्यूट्रिशन सेंसिटिव एग्रीकल्चर रिसर्च एंड इनोवेशन (एनएआरआई) कार्यक्रम शुरू किया है जो पोषण, पोषक-स्मार्ट गांव और स्थानीय रूप से उपलब्ध स्वास्थ्य सेवाओं और विविध सेवाओं को पोषण सुरक्षा बढ़ाने के लिए जोड़ता है । डॉ. सिंह के अनुसार बायोफोर्टिफाइड फसल के किस्मों का उत्पादन बढ़ाया जाएगा और सरकार कुपोषण को कम करने के लिए उन्हें मध्याह्न भोजन, आंगनबाडी आदि सरकारी कार्यक्रमों से जोड़ा जाना चाहिए ।
आज के समय में देश में लगभग एक लाख हेक्टयर में बायोफोर्टिफाइड किस्मों की खेती की जा रही है। अब सरकार को चाहिए की बायोफोर्टिफाइड फसलों के क्षेत्रफल को बढ़ाने के लिए रणनीति बनाएं जिससे किसान अधिक से अधिक इन किस्मों की खेती करे । सरकार को पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप को बढ़ावा देना चाहिए । किसानों में इसकी प्रति जागरूकता के लिए फील्ड डेऔर संगोष्ठी का आयोजन कर इसके माध्यम से इसके महत्व को प्रचारित करे ।किसानों को समान्य उपज की तुलना में बायोफोर्टिफाइड फसलों से अधिक मूल्य मिले चाहिए, जिससे किसान इसकी खेती करने में ज्यादा रुचि दिखाए। बायोफोर्टिफिकेशन वाली फसलें सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी को दूर करने का समाधान है जिससे देश को कुपोषण की समस्या से निजात मिल सके ।