मटका विधि से घरेलू कचरे से बनाएं जैविक खाद
शहर के अधिकतर लोग अपने घर से निकलने वाले कूड़े को लेकर परेशान रहते है,कि इस समस्या का निपटारा कैसे हो ? इसके बारे में अधिकतर लोग चर्चा करते हैं, लेकिन वाराणसी के रहने वाले सूर्य प्रताप सिंह समस्याओं की बात नहीं करते बल्कि इस गंभीर समस्या से छुटकारा पाने के लिए उन्होने इच्छा शक्ति जुटाई इससे निपटने के लिए उपाय भी खोज लिया है। जिससे गांव और शहर स्वच्छ रहेगा साथ ही आपको मिलेगी शुद्ध जैविक खाद
गांव हो या शहर घरेलू कचरे यानी किचन वेस्ट को लेकर लोग बहुत परेशान रहते हैं। लोगों को तो यह नहीं सूझता कि इस कचरे का क्या किया जाए । थक हार कर शहर के किनारे इकट्ठा करने के लिए एक डम्प यार्ड बना दिया जाता है। और यह समस्या खत्म होने के बजाय और विकराल होती जाती है और शहर में कचरे का यह ढेर पहाड़ बन जाता है। जिससे लोगों में बीमारी और शहर में प्रदूषण और गंदगी जैसी हजार समस्याए फैल जाती है । शहर के अधिकतर लोग अपने घर से निकलने वाले कूड़े को लेकर परेशान रहते है,कि इस समस्या का निपटारा कैसे हो ? इसके बारे में अधिकतर लोग चर्चा करते हैं, लेकिन वाराणसी के रहने वाले सूर्य प्रताप सिंह समस्याओं की बात नहीं करते बल्कि इस गंभीर समस्या से छुटकारा पाने के लिए उन्होने इच्छाशक्ति जुटाई इससे निपटने के लिए उपाय भी खोज लिया है। जिससे गांव और शहर स्वच्छ रहेगा साथ ही आपको मिलेगी शुद्ध जैविक खाद ।
सूर्य प्रताप मटका विधि के माध्यम से अपने घरेलू कचरे का जैविक खाद बनाते हैं जिसका उपयोग अपनी फसलो में पोषक तत्व के रुप डालकर स्वच्छ अनाज, सब्जियां और फल उगाते हैं, अगर घर से निकलने वाले वेस्ट मेटेरियल की बात की जाए, इनमें मुख्य रूप से सब्जियां और फलों के छिलके कचरे के रूप में सड़कों या कूड़ेदान में फेंक दिए जाते हैं। सूर्य प्रताप इसी का इस्तेमाल मटका बनाने के लिए करते है ,जो शुद्ध रुप से जैविक खाद बन जाता है। इसका खेतों में इस्तेमाल करने से फसलों की बढवार अच्छी और उपज अधिक मिलती है।
मटका विधि से खाद बनाने के लिए तीन मिट्टी के मटके की जरूरत होती है पहले तीनों मटको को एक क्रम में रखते हैं। और इन मटको में प्रतिदिन निकलने वाले घरेलू कचरे को भरते हैं । इस तरह एक मटके को भरने में 10 दिन का समय लगता है और तीनों मटको को भरने में लगभग 40 से 45 दिन का समय लगता है और 35 से 40 दिन में पहले मटके का घरेलू कचरा जैविक खाद के रूप में परिवर्तित हो जाता है और पहले मटके में तैयार खाद को किसी बारीक छलनी से छान ले और फिर पौधों में डालते हैं ।
इसके अलावा अगर शहर या गांव मे डेयरी पालन कर रहे है तो गोबर का मटका विधि से अच्छी तरह का जैविक खाद बनाया जा सकता है इसके लिए एक मटके में 15 लीटर गौ मूत्र, 15 लीटर पान 15 किलों गाय का गोबर और 250 ग्राम गुड़ की जरूरत होती है । इसके लिए सबसे पहले मटके के अंदर 15 लीटर पानी डालते हैं ,इसके बाद मटके में 250 ग्राम गुड़ डालकर अच्छी तरह से मिलाते हैं । जिससे की अच्छी तरह से घुल जाय । इस प्रक्रिया के बाद मटके के अंदर गाय के गोबर को डालकर और गौ मूत्र डालते है, फिर इसे डंडे की सहायता से 4 -5 मिनट तक घुमाते हैं । जब अच्छी प्रकार से सभी तत्व मिल जाते है मटके को 8 से 9 दिन के लिए छाया में ऱख देते हैं। । इस तरह से अच्छी प्रकार का मटका खाद तैयार हो जाता है ।
मटका खाद को मटके से निकाल कर ड्रम में रख दे। इसके बाद इस मटका खाद को 150 लीटर पानी में मिलाकर अच्छी तरह से घुमाए । जब खेतों में फसल की बुवाई करनी हो तो आप इस खाद का इस्तेमाल खेतों में बुवाई के दो दिन पहले करें, और इसका दूसरा छिड़काव बुवाई के एक महीने के बाद करना चाहिए, और जब फसल में फूल आने लगे तो तीसरा छिड़काव करना चाहिए । एक मटके में आधा एकड़ जमीन के लिए खाद बन जाती है। 200 लीटर पानी में 30 लीटर मटका खाद मिलाकर छिड़काव करना चाहिए । जब मिट्टी में बहुत ज्यादा नमी हो तब ही इसका इस्तेमाल करना बेहद फायदेमंद होता है ।
सूर्य प्रताप सिंह मटका विधि से बने खाद को फसलो में डालकर स्वच्छ अनाज, सब्जियां और फल उगाते हैं, अगर घर से निकलने वाले वेस्ट मेटेरियल की बात की जाए, इनमें मुख्य रूप से सब्जिया और फलों के छिलके कचरे के रूप में सड़कों या कूड़ेदान में फेंक दिए जाते हैं। सुर्य प्रताप इसी का इस्तेमाल मटका खाद बनाने के लिए करते है , जो शुद्ध रुप से जैविक खाद बन जाता है। इसका खेतो में इस्तेमाल करने से फसलों की बढ़वार अच्छी और उपज अधिक मिलती है।
मटका खाद 100 प्रतिशत शुद्ध जैविक खाद होती है । इसका खेतों में उपयोग बहुत लाभकारी है । इसके इस्तेमाल से पौधों में ऊर्जा बहुत ज्यादा मात्रा में मिलती है जिससे पौधे अच्छे तरह से बढ़वार करते है । इसमें किसी भी प्रकार का खर्च नहीं होता.। यह घर में उपलब्ध चीज़ों के द्वारा ही बनाई जाती है और इसे बनाना भी बहुत आसान है। इसके प्रयोग से फसल का उत्पादन भी बढ़ता है और इसके द्वारा लाभदायक जीवाणुओं की संख्या भी ज्यादा होती है, जिससे खेत की उपजाऊ क्षमता में बढोतरी होती है।