आईआईटी गुवाहाटी के शोधकर्ताओं की उपलब्धि, बगास से तैयार किया चीनी का विकल्प
गन्ने की पेराई के बाद निकलने वाले बगास से चीनी का विकल्प जाइलिटोल तैयार किया जा सकता है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी गुवाहाटी के शोधकर्ताओं ने अल्ट्रासाउंड की मदद से फर्मेंटेशन का एक नया तरीका विकसित किया है। उनका दावा है कि इस तरीके से तैयार किया गया जाइलिटोल चीनी का सुरक्षित विकल्प है
डायबिटीज के मरीजों और कृषि उद्योग से जुड़े लोगों के लिए यह एक मीठी खबर है। गन्ने की पेराई के बाद निकलने वाले बगास से चीनी का विकल्प जाइलिटोल तैयार किया जा सकता है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी गुवाहाटी के शोधकर्ताओं ने अल्ट्रासाउंड की मदद से फर्मेंटेशन का एक नया तरीका विकसित किया है। उनका दावा है कि इस तरीके से तैयार किया गया जाइलिटोल चीनी का सुरक्षित विकल्प है।
सिंथेसिस के पारंपरिक रासायनिक तरीके की कुछ सीमाएं होती हैं। रिसर्चस का दावा है कि नए तरीके में वह बाधाएं नहीं आती हैं। इसके अलावा पारंपरिक तरीके की तुलना में फर्मेंटेशन में समय भी कम लगता है।
डायबिटीज मरीजों के लिए फायदेमंद
जाइलिटोल एक तरह का शुगर अल्कोहल है जिसे प्राकृतिक उत्पादों से प्राप्त किया जाता है। इसका प्रभाव डायबिटीज रोधी और मोटापा रोधी होता है। यह दातों में कैविटी बनने से रोकता है।
सफेद चीनी के बदले मिठास के अन्य विकल्पों का इस्तेमाल पिछले एक दशक में लगातार बढ़ा है। इसका मुख्य कारण सफेद चीनी (सुक्रोज) के दुष्प्रभावों के बारे में जागरूकता बढ़ना है। यह ना सिर्फ डायबिटीज मरीजों के लिए नुकसानदायक है बल्कि सामान्य तौर पर सेहत को भी नुकसान पहुंचाता है।
शोधकर्ताओं की रिपोर्ट बायोरिसर्च टेक्नोलॉजी और अल्ट्रासोनिक्स सोनोकेमेस्ट्री पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई है। शोधकर्ताओं की टीम का नेतृत्व आईआईटी गुवाहाटी के प्रो. वीएस मोहोलकर (केमिकल इंजीनियरिंग विभाग) ने किया। उनके साथ डॉ. बी.जेड. तिजाजु और डॉ कुलदीप राय भी थे, जिन्होंने शोध पत्र लिखा।
टेक्नोलॉजी के फायदे
शोध के महत्व के बारे में विस्तार से बताते हुए प्रो. मोहोलकर ने एक बयान में कहा, फर्मेंटेशन प्रक्रिया के दौरान अल्ट्रासाउंड के इस्तेमाल से ना सिर्फ समय की बचत हुई (48 घंटे की जगह 15 घंटे लगे), बल्कि इससे उत्पादकता भी लगभग 20 फीसदी बढ़ गई। शोधकर्ताओं ने फर्मेंटेशन के दौरान सिर्फ डेढ़ घंटे तक अल्ट्रासाउंड का इस्तेमाल किया। उन्होंने कहा कि चीनी उद्योग के लिए जाइलिटोल का उत्पादन एक फॉरवर्ड इंटीग्रेशन हो सकता है।
सामान्य तौर पर जाइलिटोल उत्पादन की प्रक्रिया जटिल होती है। इसमें लकड़ी से निकलने वाले रसायन डी-जाइलोज का निकल कैटालिस्ट के साथ ट्रीटमेंट किया जाता है। यह काफी ऊंचे तापमान और दबाव पर किया जाता है इसलिए काफी ऊर्जा खर्च होती है। इस प्रक्रिया में सिर्फ आठ से 15 फीसदी जाइलोज ही जाइलिटोल में परिवर्तित हो पाता है। इसलिए उसकी कीमत भी उपभोक्ताओं के लिए अधिक होती है।
फर्मेंटेशन एक तरह की बायोकेमिकल प्रक्रिया है। दूध से दही बनाना भी फर्मेंटेशन है लेकिन आमतौर पर इसमें काफी समय लगता है। आईआईटी के शोधकर्ताओं ने फर्मेंटेशन की नई प्रक्रिया का इस्तेमाल किया है जिसमें अल्ट्रासाउंड वेव्स के जरिए जाइलिटोल का सिंथेसिस कम समय में किया जा सकता है।
शोधकर्ताओं ने सबसे पहले बगास में मौजूद हेमीसैलूलोज को जाइलोज और अरेबिनोज जैसे पांच कार्बन वाले शुगर में बदला। इसके लिए उन्होंने बगास को छोटे-छोटे टुकड़ों में काट दिया और उसे डायलूट एसिड में डाल दिया। उस घोल को कंसंट्रेट करके उसने कैंडिडा ट्रॉपिकालिस नाम का ईस्ट मिलाया गया।
सामान्य तरीके से जाइलोज को जाइलिटोल में फर्मेंटेशन करने में 48 घंटे लगते हैं। अल्ट्रासाउंड वेव्स के इस्तेमाल से यह प्रक्रिया तेज हो जाती है। सूक्ष्मजीवी कोशिकाओं की मौजूदगी वाले घोल में जब कम शक्तिशाली अल्ट्रासोनिक वेव डाले जाते हैं तो उन जीवाणुओं के खाने, भोजन पचाने और उत्सर्जन करने की प्रक्रिया तेज हो जाती है।
अगली चुनौती इस टेक्नोलॉजी को कमर्शियल स्तर पर ले जाने की है। प्रो. मोहोलकर ने कहा, फर्मेंटेशन में अल्ट्रासाउंड का इस्तेमाल करने के लिए बड़ी संख्या में अल्ट्रासाउंड मशीनों की जरूरत पड़ेगी। उन मशीनों को बनाने के लिए ट्रांसड्यूसर और आरएफ एमप्लीफायर की आवश्यकता भी बड़े पैमाने पर होगी। यह एक बड़ी चुनौती है।
(एम. सोमशेखर, हैदराबाद के स्वतंत्र पत्रकार हैं। वह डेवपलमेंट से संबंधित मुद्दों, साइंस, टेक्नोलॉजी, कृषि, बिजनेस और स्टार्ट-अप पर विशेषज्ञता रखते हैं )