एमएसपी के गणित को नाकाम करता धान व गेहूं किसानों का वोट
कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की चुनाव जीतने की होड़ ने देश के किसानों को दो वर्गों में बांट दिया है। एक वह जो मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में हैं और दूसरे बाकी राज्यों में। चुनाव वाले राज्यों में दोनों दल किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के डेढ़ गुना तक के दाम पर धान और गेहूं खरीदने का वादा कर रहे हैं जबकि दूसरे राज्यों में उनकी सरकारें किसानों को एमएसपी भी ठीक से सुनिश्चित नहीं कर पा रही है। वैसे भी देश में 23 फसलों के लिए एमएसपी निर्धारित होता है लेकिन सबसे अधिक खरीद गेहूं और चावल की ही होती है। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ गेहूं और धान की सरकारी खऱीद में सबसे बड़े हिस्सेदारों में शुमार होते हैं। ऐसे में भारी भरकम कीमत पर वहां गेहूं और धान की खरीद किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है लेकिन वहीं दूसरी ओर क्या इन दलों की सरकार वाले अन्य राज्यों के किसान इस कीमत के हकदार नहीं है
कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की चुनाव जीतने की होड़ ने देश के किसानों को दो वर्गों में बांट दिया है। एक वह जो मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में हैं और दूसरे बाकी राज्यों में। चुनाव वाले राज्यों में दोनों दल किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से डेढ़ गुना तक के दाम पर धान और गेहूं खरीदने का वादा कर रहे हैं, जबकि दूसरे राज्यों में उनकी सरकारें किसानों को एमएसपी भी ठीक से सुनिश्चित नहीं कर पा रही है। वैसे भी देश में 23 फसलों के लिए एमएसपी निर्धारित होता है लेकिन सबसे अधिक खरीद गेहूं और चावल की ही होती है। दिलचस्प बात यह है कि मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ गेहूं और धान की सरकारी खरीद में सबसे बड़े हिस्सेदारों में शुमार हैं। ऐसे में वहां भारी भरकम कीमत पर गेहूं और धान की खरीद किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है, वहीं दूसरी ओर क्या इन दलों की सरकार वाले अन्य राज्यों के किसान इस कीमत के हकदार नहीं हैं।
केंद्र सरकार ने खरीफ मार्केटिंग सीजन (2023-24) के लिए धान की सामान्य किस्म का एमएसपी 2183 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। वहीं आगामी रबी मार्केटिंग सीजन (2024-25) के लिए गेहूं का एमएसपी 2275 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। इन कीमतों के मुकाबले अपने चुनाव घोषणा-पत्र में कांग्रेस ने वादा किया है कि वह छत्तीसगढ़ में धान के लिए किसानों को 3200 रुपये प्रति क्विंटल की कीमत देगी और इस कीमत पर प्रति एकड़ 20 क्विंटल धान खरीदा जाएगा। इसके मुकाबले भाजपा ने अपने चुनाव घोषणा-पत्र में वादा किया है कि वह राज्य में कृषि उन्नति स्कीम के तहत 3100 रुपये प्रति क्विंटल की कीमत पर 21 क्विंटल धान प्रति एकड़ खऱीदेगी।
छत्तीसगढ़ देश में सरकारी खरीद में सबसे अधिक धान देने वाले चुनिंदा राज्यों में है। यहां खरीफ मार्केटिंग सीजन 2022-23 में 87.53 लाख टन धान की सरकारी खरीद हुई थी। खास बात यह है कि साल 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने धान की खरीद 2500 रुपये प्रति क्विंटल पर करने का वादा किया था। उसका कांग्रेस को भारी चुनावी फायदा हुआ और वह वहां भारी बहुमत से सत्ता पर काबिज हो गई। गौरतलब बात है कि 2017-18 सीजन में वहां 47.87 लाख टन धान की सरकारी खरीद हुई थी, जो 2022-23 में 40 लाख टन की बढ़ोतरी के साथ 87.53 लाख टन पर पहुंच गई। भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ऊंचे दाम पर 15 क्विंटल प्रति एकड़ के हिसाब से धान की सरकारी खरीद करती रही है, जिसे अब 3200 रुपये प्रति क्विंटल पर 20 क्विंटल प्रति एकड़ के हिसाब से खरीदने का वादा किया गया है।
मध्य प्रदेश में भाजपा ने धान की सरकारी खरीद 3100 रुपये प्रति क्विंटल और गेहूं की खरीद 2700 रुपये प्रति क्विंटल पर खरीदने का वादा किया है। यहां कांग्रेस ने गेहूं 2600 रुपये प्रति क्विंटल और धान 2500 रुपये प्रति क्विंटल पर खऱीदने का वादा किया है। मध्य प्रदेश से पिछले रबी सीजन में 70.97 लाख टन गेहूं की सरकारी खरीद हुई, जबकि यहां धान की सरकारी खरीद पिछले साल 46.30 लाख टन रही थी। साल 2021-22 में मध्य प्रदेश में गेहूं की सरकारी खरीद 128 लाख टन रही थी।
अब बात राजस्थान की। यहां पर भाजपा ने अपने चुनाव घोषणा-पत्र में गेहूं की सरकारी खरीद 2700 रुपये प्रति क्विंटल पर करने का वादा किया है और बाजरा व ज्वार की खरीद एमएसपी पर करने का वादा किया है। खरीफ मार्केटिंग सीजन 2023-24 में ज्वार का एमएसपी 3225 रुपये प्रति क्विंटल और बाजरा का एमएसपी 2500 रुपये प्रति क्विंटल है। राजस्थान में पिछले साल 4.38 लाख टन गेहूं की सरकारी खरीद हुई थी लेकिन 2021-22 में यहां 23.40 लाख टन गेहूं की सरकारी खरीद हुई थी। एक अन्य चुनावी राज्य तेलंगाना में पिछले साल धान की सरकारी खरीद 131.86 लाख टन रही थी। यहां पर सिंचाई सुविधाओं के बढ़ने से धान के उत्पादन और सरकारी खरीद में भारी बढ़ोतरी हुई है। यह अब पंजाब के बाद देश में दूसरा सबसे अधिक धान की सरकारी खरीद वाला राज्य है। पंजाब में पिछले साल 182.11 लाख टन धान की सरकारी खरीद हुई थी।
अब अगर भाजपा शासित कुछ दूसरे राज्यों की बात करें तो उत्तर प्रदेश में पिछले सीजन में धान की सरकारी खरीद 65.5 लाख टन रही थी और गेहूं की सरकारी खरीद मात्र 2.20 लाख टन पर अटक गई थी, जबकि यह गेहूं का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। वहीं हरियाणा में धान की सरकारी खरीद 59.36 लाख टन और गेहूं की 63.17 लाख टन रही थी। यहां 2021-22 में गेहूं की सरकारी खरीद 84.93 लाख टन रही थी। भाजपा शासित उत्तराखंड में पिछले साल धान की सरकारी खरीद 8.96 लाख टन रही थी।
अब इस पूरे मसले को दूसरे नजरिये से देखें। देश भर के किसान संगठन न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी की मांग कर रहे हैं। एमएसपी को फसलों की सी-2 लागत पर 50 फीसदी मुनाफा जोड़कर तय करने की उनकी बड़ी मांग है। सरकार ने खरीफ और रबी की फसलों के लिए जो एमएसपी तय किये हैं उसके मुताबिक वह लागत से 50 फीसदी से 102 फीसदी तक ज्यादा हैं। ऐसे में 2275 रुपये के एमएसपी वाले गेहूं को 2600 और 2700 रुपये प्रति क्विंटल पर खरीदने का वादा कांग्रेस और भाजपा ने किया है। वहीं 2183 रुपये प्रति क्विटंल वाले धान को 3100 रुपये और 3200 रुपये प्रति क्विटंल की कीमत पर खरीदने का वादा किया गया है।
सत्ता में आने पर ये दल अगर इस वादे को पूरा करते हैं तो मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के किसानों को तो फायदा होगा लेकिन उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और उत्तराखंड समेत इन फसलों को पैदा करने वाले दूसरे राज्यों के किसानों का क्या दोष है जो उनको यह कीमत नहीं मिलेगी, जबकि उत्तर प्रदेश, हरियाणा और उत्तराखंड में तो भाजपा की ही सरकार है। यहां यह बात भी गौर करने लायक है कि साल 2014 में केंद्र में भाजपा सरकार आने से पहले मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकारें गेहूं और धान पर एमएसपी के अलावा बोनस देती थी जिसे केंद्र सरकार ने बंद करने का फरमान जारी करते हुए कहा था कि अगर इसे बंद नहीं किया जाता है तो वह धान व गेहूं की खरीद नहीं करेगी। मगर छत्तीसगढ़ में 2018 के कांग्रेस के वादे और उसके चुनावी नतीजे ने भाजपा की राय बदल दी है। छत्तीसगढ़ और तेलंगाना की सरकार को केंद्रीय पूल में धान की खरीद को लेकर राजनीतिक लड़ाई भी लड़नी पड़ी है।
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में 17 नवंबर को मतदान पूर्ण हो रहा है और राजस्थान में 25 नवंबर व तेलंगाना में 30 नवंबर को मतदान है। अब यह तो 3 दिसंबर को ही पता लगेगा कि भाजपा व कांग्रेस में से किसानों ने किसके वादे पर भरोसा किया। जहां तक दूसरे राज्यों की बात है तो शायद वहां के किसान वोट के मामले में उतने प्रभावी नहीं हैं कि उनको एमएसपी से अधिक दाम देने की जरूरत इन दलों को लगे।