सुप्रीम कोर्ट ने जीएम फसलों पर रोक की मांग वाली याचिका पर आदेश सुरक्षित रखा
उच्चतम न्यायालय ने आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों (जीएमओ) को पर्यावरण में जारी करने पर रोक लगाने की मांग करने वाली याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रखा है
उच्चतम न्यायालय ने आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों (जीएमओ) को पर्यावरण में जारी करने पर रोक लगाने की मांग करने वाली याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रखा है। जस्टिस बीवी नागरत्ना और संजय करोल की पीठ ने सभी पक्षों को 22 जनवरी तक लिखित दलीलें दाखिल करने का निर्देश दिया है। पीठ ने गुरुवार को अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमानी, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और वकील प्रशांत भूषण, वकील संजय पारिख की दलीलें सुनी। इससे पहले शीर्ष अदालत ने कहा था कि आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों का मुद्दा बहुत तकनीकी और वैज्ञानिक है। देश के लिए क्या अच्छा है इसके आधार पर जीएम सरसों के पर्यावरणीय रिलीज पर फैसला लिया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार से पूछा था कि आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) फसलों की जैव सुरक्षा पर अदालत द्वारा नियुक्त तकनीकी विशेषज्ञ समिति (टीईसी) की रिपोर्ट पर जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (जीईएसी) द्वारा ध्यान क्यों नहीं दिया गया।
केंद्र सरकार की तरफ से पेश हुए अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा था कि जीईएसी खुद एक संविधानिक निकाय है और जीईएसी को इन रिपोर्ट को देखने की जरूरत नहीं है, लेकिन पर्यावरणीय रिलीज के लिए आगे बढ़ने से पहले हर प्रासंगिक वैज्ञानिक निष्कर्ष पर विचार किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट में एक्टिविस्ट अरुणा रोड्रिग्स और एनजीओ 'जीन कैंपेन' की अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है। याचिकाकर्ताओं की ओर से स्वतंत्र विशेषज्ञ द्वारा सार्वजनिक डोमेन में एक व्यापक, पारदर्शी और कठोर जैव सुरक्षा प्रोटोकॉल लंबित होने तक पर्यावरण में किसी भी आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों (जीएमओ) को जारी करने पर रोक लगाने की मांग की गई है।
रूरल वॉयस के साथ बात करते हुए एक वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि भारत में जीएम फसलों की पर्यावरण सुरक्षा के लिए दुनिया के सबसे सख्त प्रोटोकॉल का पालन किया जा रहा है। जहां तक टेक्नीकल एक्सपर्ट कमेटी (टीईसी) की सिफारिशों की बात है तो हमें देखना चाहिए कि यह सिफारिशें कब आई थी और उसके बाद से जेनेटिकली मॉडिफाइड किस्मों की तकनीक और जीन एडिटिंंग जैसी तकनीक में कितना बदलाव आ चुका है। इसके साथ ही टीईसी की सिफारिशों और उसके लिए तय टर्म ऑफ रेफरेंस (टीओआर) को भी साथ रखकर देखना चाहिए। वहीं टीईसी की रिपोर्ट के अलावा डॉ. आर.एस. परोदा की अलग से सौंपी गई रिपोर्ट को भी देखा जाना चाहिए।
क्या है मामला
उत्पादन बढ़ाने के लिए दुनिया भर में अनुवांशिक रूप से संशोधित फसलों (जीएम) की खेती की जा रही है। दिल्ली यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर और जेनेटिक्स के प्रोफेसर दीपक पेंटल के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की टीम ने साल 2002 में सरसों की जीएम किस्म डीएमएच-11 को विकसित किया था। दावा किया जा रहा है कि इससे देश के किसानों को फायदा होगा और देश में सरसों के तेल की उपलब्धता भी बढ़ेगी।