गन्ना सीजन आधे से अधिक चला गया लेकिन यूपी में अब तक एसएपी घोषित नहीं होने से किसानों में मायूसी
अगर सरकार गन्ने का एसएपी नहीं बढ़ाती है तो भी पिछले सीजन की कीमत को ही चालू सीजन में लागू रखने के लिए भी नया नोटिफिकेश जारी किया जाना जरूरी है। राज्य सरकार द्वारा अभी तक नोटिफिकेशन भी जारी नहीं किया गया है। इससे किसान ऊहापोह में हैं।
आपको अपनी फसल बेचनी है और आपको पता ही न हो कि उसकी कीमत क्या होगी, फिर भी आप अपनी फसल इस उम्मीद में बेचने को मजबूर हैं कि शायद पहले से अच्छी कीमत मिलेगी या फिर कुछ नहीं तो पिछले साल की कीमत तो मिल ही जाएगी। देश के प्रमुख ग्न्ना उत्पादक राज्यों में से एक उत्तर प्रदेश के करीब 45 लाख गन्ना किसानों की स्थिति कुछ ऐसी ही है। राज्य सरकार ने अभी तक चालू सीजन (2022-23) के लिए गन्ने का राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) घोषित नहीं किया है। गन्ने का चालू सीजन मार्च में खत्म होने वाला है और किसान 70 फीसदी से ज्यादा गन्ना चीनी मिलों को बेच चुके हैं। 2021-22 के लिए गन्ने का एसएपी 350 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया था।
एसएपी घोषित नहीं होने से गन्ना किसानों में भारी निराशा है। शामली जिले के भैंसवाल गांव के किसान विनय कहते हैं कि हमें अभी तक पिछले सीजन का भी पूरा गन्ना भुगतान नहीं हुआ है जबकि चालू सीजन के लिए अभी तक एसएपी घोषित नहीं किया है जबकि करीब 70 फीसदी गन्ना मिलों को चला गया है। उनके साथ ही भैंसवाल के ही किसान देवराज पवांर कहते हैं कि हमें तो उम्मीद रखनी ही हैकि राज्य सरकार चालू सीजन के लिए एसएपी में बढ़ोतरी करेगी लेकिन जिस तरह गन्ना किसानों कि अनदेखी हो रही है वह हमारे लिए बहुत बड़ी मुश्किलें पैदा कर रही है। वहीं वैधानिक रूप से स्थिति यह है कि अगर सरकार गन्ने का एसएपी नहीं बढ़ाती है तो भी पिछले सीजन की कीमत को ही चालू सीजन में लागू रखने के लिए भी नया नोटिफिकेश जारी किया जाना जरूरी है। राज्य सरकार द्वारा अभी तक नोटिफिकेशन भी जारी नहीं किया गया है। इससे किसान ऊहापोह में हैं। गन्ना किसानों के हक के लिए जमीन से लेकर अदालत तक लड़ाई लड़ने वाले किसान नेता और राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के अध्यक्ष वीएम सिंह रूरल वॉयस से कहते हैं, “गन्ना सीजन खत्म होने वाला है और अभी तक उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा एसएपी घोषित नहीं किए जाने से किसान भ्रमित हैं। ऐसा क्यों है ये तो सरकार ही जाने। एसएपी में बढ़ोतरी होगी भी या नहीं, कुछ नहीं कहा जा सकता है।”
वहीं गन्ना भुगतान को 14 दिन की तय अवधि के बाद देने पर शुगरकेन कंट्रोर आर्डर के तहत ब्याज भुगतान का प्रावधान है। लेकिन चीनी मिलें ब्याज का भुगतान नहीं कर रही हैं। इसे लेकर मामला न्यायालय में गया है। जिसमें किसानों के पक्ष में उच्च न्यायालय का फैसला पहले आ चुका है। लेकिन यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट में है। वी. एम. सिंह कहते हैं कि उम्मीद है जल्दी ही सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई होगी और जल्दी ही ब्याज भुगतान का मुद्दा हल हो सकेगा।
वैसे भी इस मामले में मौजूदा राज्य सरकार का रिकॉर्ड बहुत अच्छ नहीं है। पांच साल में गन्ना मूल्य में केवल 35 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी हुई है। जबकि डीजल, फर्टिलाइजर, कीटनाशक, बिजली, मजदूरी की लागत बढ़ने से खेती की लागत में बेतहाशा वृद्धि हो चुकी है। पड़ोसी राज्य हरियाणा में किसानों के आंदोलन के बाद चालू पेराई सीजन के लिए गन्ने के एसएपी में 10 रुपये प्रति क्विटंल की बढ़ोतरी कर उसे 372 रुपये प्रति क्विटल कर दिया है। वहीं पंजाब में गन्ने का एसएपी 380 रुपये प्रति क्विंटल है। हरियाणा में गन्ने का एसएपी उत्तर प्रदेश से 22 रुपये प्रति क्विंटल ज्यादा है। 2017 में जब भाजपा प्रदेश की सत्ता पर काबिज हुई थी तो योगी आदित्यनाथ सरकार के पहले साल 2017-18 में गन्ने के एसएपी में 10 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की गई थी। उसके बाद तीन साल तक एसएपी को जस का तस रखा गया। योगी सरकार के पहले कार्यकाल के अंतिम साल 2021-22 में एसएपी में 25 रुपये प्रति क्विटंल की बढ़ोतरी कर इसे 350 रुपये प्रति क्विंटल किया गया था। तब चुनावी साल था इसलिए सीजन शुरू होने के पहले ही 26 सितंबर, 2021 को एसएपी की घोषणा कर दी गई थी। चालू सीजन (2022-23) अक्तूबर 2022 को शुरू हो गया और फरवरी 2023 का पहला हफ्ता बीतने ही वाला है, राज्य के गन्ना किसानों के साथ-साथ चीनी उद्योग भी एसएपी की घोषणा का इंतजार कर रहे हैं।
जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा है इस बात की भी संभावना बढ़ती जा रही है कि शायद चालू सीजन के लिए एसएपी में बढ़ोतरी न हो और पिछले सीजन के एसएपी को ही लागू रखा जाए। वैसे भी 2024 में लोकसभा का चुनाव होना है और सीटों के लिहाज से उत्तर प्रदेश अहम है। ऐसे में अगले सीजन 2023-24 में गन्ने का एसएपी बढ़ाकर उसका चुनावी फायदा उठाने की कोशिश करने की पूरी संभावना बनती दिख रही है। गन्ने को लेकर हमेशा से राजनीति होती रही है और सभी सरकारें इसका पूरा फायदा उठाने की कोशिशें करती रही हैं। ऐसा नहीं है कि चीनी मिलें अधिक दाम नहीं दे सकती हैं। उन मिलों को छोड़ दें जिनकी वित्तीय हालत दूसरे कारणों से खराब है, तो बाकी मिलें समय से भुगतान कर रही हैं। कुछ चीनी मिलें तो गन्ना आपूर्ति के एक सप्ताह बाद ही भुगतान कर रही हैं। निजी चीनी मिलों का मुनाफा बढ़ा है और स्टॉक मार्केट में इनके शेयरों के दाम पिछले दो साल में काफी बेहतर हुए हैं। देश से पिछले साल 110 लाख टन चीनी का निर्यात हुआ और उसके लिए मिलों को औसतन 40 रुपये प्रति किलो की कीमत मिली है। चालू सीजन के लिए भी सरकार ने 60 लाख टन चीनी के निर्यात की अनुमति दी है जिसमें से करीब 18 लाख टन चीनी का निर्यात हो चुका है और 55 लाख टन के सौदे हो चुके हैं। उद्योग सूत्रों के मुताबिक अभी भी चीनी मिलों को निर्यात पर करीब 40 रुपये प्रति किलो का दाम मिल रहा है।
जहां तक घरेलू कीमतों की बात है तो उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों को 36 से 37 रुपये प्रति किलो की एक्स फैक्टरी कीमत मिल रही है। पिछले सीजन में औसत कीमत 34 रुपये किलो रही थी जो महाराष्ट्र की चीनी मिलों के लए 32.50 रुपये प्रति किलो रही थी। केंद्र सरकार ने चीनी का न्यूनतम बिक्री मूल्य 31 रुपये प्रति किलो तय कर रखा है और बाजार में कीमतें उससे अधिक ही हैं। फिर भी उत्तर प्रदेश के किसानों को इसका फायदा नहीं मिल पा रहा है। इसके साथ ही एथेनॉल चीनी मिलों के लिए कमाई का नया स्रोत बनता जा रहा है। सरकार ने पिछले दिनों एथेनॉल के मूल्य में बढ़ोतरी की थी। चीनी मिलों द्वारा एथेनॉल आपूर्ति के 21 दिन के भीतर तेल विपणन कंपनियां (ओएमसी) भुगतान कर रही हैं।