भारत ने कैसे लिखी दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा चीनी निर्यातक बनने की इबारत
पिछले चार साल में भारत ने चीनी निर्यात के मामले में एक नई इबारत लिखी है। लगातार बढ़ते उत्पादन के चलते निर्यात में भारी बढ़ोतरी हुई और चीनी उद्योग ने कई मार्केट खड़े किये, जिनमें एशियाई और अफ्रीकी देश शामिल हैं। भारत द्वारा खुद को भरोसेमंद चीनी निर्यातक के रूप में स्थापित करने से यह कामयाबी मिली है
पिछले चार साल में भारत ने चीनी निर्यात के मामले में एक नई इबारत लिखी है। लगातार बढ़ते उत्पादन के चलते निर्यात में भारी बढ़ोतरी हुई और चीनी उद्योग ने कई मार्केट खड़े किये, जिनमें एशियाई और अफ्रीकी देश शामिल हैं। भारत द्वारा खुद को भरोसेमंद चीनी निर्यातक के रूप में स्थापित करने से यह कामयाबी मिली है। चालू साल के अंत 31 मार्च, 2023 तक भारत का चीनी निर्यात 5.5 अरब डॉलर यानी करीब 45 हजार करोड़ रुपये को पार कर सकता है। इस चीनी सीजन (अक्तूबर 2022 से सितंबर 2023) के लिए सरकार ने 61 लाख टन चीनी निर्यात का कोटा जारी किया है। जिसमें से करीब 55 लाख टन निर्यात हो चुका है और बाकी मात्रा भी जल्दी ही निर्यात हो जाएगी। उद्योग को करीब 80 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति मिलने की उम्मीद थी लेकिन सरकार ने अभी अतिरिक्त कोटा जारी नहीं किया है। जिसके चलते वैश्विक बाजार में चीनी कीमतें काफी बेहतर बनी हुई हैं।
चीनी उद्योग एक पदाधिकारी ने रूरल वॉयस को बताया कि इस समय लंदन व्हाइट शुगर की एफओबी (फ्री ऑन बोर्ड) कीमत 586 डॉलर प्रति टन पर चल रही है जो भारत के लिए 4510 रुपये प्रति क्विटंल की एफओबी कीमत है। रॉ शुगर के लिए न्यूयॉर्क रॉ की कीमत 20.76 सेंट है जो भारत के लिए 3935 रुपये प्रति क्विंटल है। कीमतों के इस स्तर से अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारतीय चीनी उद्योग को निर्यात से कितना फायदा हो रहा है।
चीनी उद्योग से रूरल वॉयस को मिली जानकारी के मुताबिक सूचना के मुताबिक घरेलू बाजार में महाराष्ट्र की चीनी मिलों को एस ग्रेड चीनी के लिए 3215 से 3255 रुपये प्रति क्विंटल का एक्स फैक्टरी दाम मिल रहा है। वहीं उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों को एम ग्रेड चीनी के लिए 3410 से 3510 रुपये का एक्स मिल दाम मिल रहा है। कर्नाटक की चीनी मिलों को एस ग्रेड के लिए 3180 से 3220 रुपये प्रति क्विंटल, गुजरात की मिलों को एम ग्रेड के लिए 3340 से 3400 रुपये प्रति क्विंटल और तमिलनाडु की चीनी मिलों को एस ग्रेड चीनी के लिए 3300 से 3350 रुपये प्रति क्विंटल का एक्स मिल दाम मिल रहा है। वहीं देश में चीनी की रिटेल कीमत 41.73 रुपये प्रति किलो है। ऊपर दिये आंकड़े साफ करते हैं कि चीनी मिलों को निर्यात का कितना बड़ा फायदा मिल रहा है।
निर्यात का यह बाजार चीनी मिलों के लिए तो सोने का अंडा साबित हो रहा है लेकिन देश के किसानों को इसका उतना फायदा नहीं मिल रहा। देश के दूसरे सबसे बड़े चीनी उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश के किसानों को पिछले छह साल में गन्ने के राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) में केवल 35 रुपये प्रति क्विटंल की बढ़ोतरी मिली है। बीते छह साल में से चार साल यहां गन्ने का एसएपी फ्रीज रहा और केवल दो बार इसमें बढ़ोतरी हुई है, जबकि उतपादन लागत में बढ़ोतरी के चलते किसान को घाटा झेलना पड़ रहा है।
भारत से साल 2017-18 में 81.09 करोड़ डॉलर चीनी का निर्यात हुआ था जो 2021-22 में बढ़कर 4.6 अरब डॉलर तक पहुंच गया। चालू वित्त वर्ष में चीनी के निर्यात के 5.5 अरब डॉलर पर पहुंचने की संभावना है। साल 2016-17 के चीनी सीजन (अक्तूबर से सितंबर) में 46 हजार टन चीनी का निर्यात हुआ था जो इसके अलगे साल 2017-18 में 6.2 लाख टन रहा। 2021-22 में यह बढ़कर 110 लाख टन पर पहुंच गया।
टेबल 1: भारत से होने वाले चीनी निर्यात की वैल्यू
वित्त वर्ष (अप्रैल से मार्च) |
मिलियन डॉलर |
करोड़ रुपये |
2017-18 |
810.90 |
5225.60 |
2018-19 |
1360.29 |
9523.14 |
2019-20 |
1966.44 |
13981.56 |
2020-21 |
2789.91 |
20668.57 |
2021-22 |
4602.65 |
34344.69 |
अप्रैल से जनवरी 2021-22 |
3570.34 |
26545.76 |
अप्रैल से जनवरी 2022-23 |
4689.97 |
37397.86 |
भारत रॉ शुगर और व्हाइट शुगर दोनों का निर्यात कर रहा है। रॉ शुगर को आयातक रिफाइनरी में रिफाइन कर व्हाइट शुगर तैयार करते हैं। रॉ शुगर का इकुम्सा वैल्यू 1200 या उससे भी अधिक होता है। जबकि व्हाइट शुगर का इकूम्सा वैल्यू 45 से कम होता है। इंटरनेशनल कमीशन फॉर यूनिफॉर्म मैथड ऑफ शुगर एनालिसिस (आईसीयूएमएसए) को ही इकूम्सा वैल्यू कहते हैं।
लंबे समय तक भारत व्हाइट शुगर का ही निर्यात करता रहा है और रॉ शुगर की निर्यात में हिस्सेदारी बहुत कम थी। दुनिया में निर्यात बाजार में रॉ शुगर की हिस्सेदारी अधिक है। इसे निर्यात किया जाना आसान है। इस विकल्प के लिए उद्योग और सरकारी अधिकारियों के एक प्रतिनिधिमंडल ने 2018 में शुरुआत की जब खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्रालय के संयुक्त सचिव और उद्योग के प्रतिनिधियों ने इंडोनेशिया, मलयेशिया, दक्षिण कोरिया, चीन और बांग्लादेश का दौरा किया। उस साल सितंबर में समाप्त सीजन का क्लोजिंग स्टॉक 105 लाख टन था। जिसके चलते देश में चीनी की उपलब्धता अधिक और कीमतें कमजोर थी। रॉ शुगर को 40 हजार से 70 हजार टन के बल्क वैसल के जरिये निर्यात किया जा सकता है जबकि व्हाइट शुगर को पैक कर कंटेनर के जरिये निर्यात किया जाता है। रॉ शुगर को इसे रिफाइन करने वाली कंपनियां आयात करती हैं। इसके साथ एक फायदा यह है कि भारत में नवंबर से अप्रैल के बीच ही अधिक उत्पादन होता है जबकि सबसे बड़े चीनी निर्यातक देश ब्राजील की चीनी अप्रैल से नवंबर के बीच ही निर्यात होती है। इसलिए भारत के पास ब्राजील के ऑफ सीजन में चीनी निर्यात करने का मौका था। उसी का फायदा उठाया गया। वहीं भारत के मुंद्रा, कांडला और जेएनपीटी न्वाहाशावा से इंडोनेशिया के सिवांडन बंदरगाह तक चीनी पहुंचने में करीब 15 दिन लगते हैं जबकि ब्राजील से चीनी आने में करीब 45 दिन का समय लगता है। वहीं रिफाइंनिंग के लिए भारत की चीनी की गुणवत्ता ब्राजील, थाइलैंड और आस्ट्रेलिया से बेहतर है।
चीनी उद्योग के एक पदाधिकारी के मुताबिक हमने भारत की रॉ शुगर के फायदों के बारे में आयातकों को जागरूक किया। जिसके चलते इस समय भारत की रॉ शुगर अंतरराष्ट्रीय बाजार की कीमतों से चार फीसदी प्रीमियम पर बिक रही है। वहीं दूसरी ओर रिफाइंड शुगर के मामले में स्थिति उलट है जिसके लिए भारत को 40 डॉलर प्रति टन कम कीमत मिलती है। रॉ शुगर के मामले में इंडोनेशिया ने दिसंबर, 2019 में अपने इक्यूम्सा मानकों में बदलाव कर भारत से इसके आयात का रास्ता साफ कर दिया है। जो पहले थाइलैंड से 1200 या इससे अधिक इक्यूम्सा की रॉ शुगर आयात करता था उसने भारत से 600 से 1200 इक्यूम्सा की चीनी आयात करने के मानकों को स्वीकृति दी ताकि वहां के रिफाइनर भारत से रॉ शुगर आयात कर सकें। इंडोनेशिया भारत को पॉम ऑयल का निर्यात करता है, उसके फेवर में उसने भारत की चीनी पर आयात शुल्क को 15 फीसदी से घटाकर पांच फीसदी कर दिया।
इन कदमों का नतीजा यह रहा कि 2021-22 के कुल 110 लाख टन चीनी निर्यात में रॉ शुगर की हिस्सेदारी 56.29 लाख टन पर पहुंच गई। यानी आधे से अधिक चीनी रॉ शुगर के रूप में निर्यात की गई। इसमें सबसे अधिक 16.73 लाख टन रॉ शुगर इंडोनेशिया ने खरीदा। उसके बाद 12.10 लाख टन बांग्लादेश ने, 6.83 लाख टन सउदी अरब ने, 4.78 लाख टन इराक ने और 4.15 लाख टन रॉ शुगर मलयेशिया ने आयात किया। वहीं देश से निर्यात की गई 53.71 लाख टन व्हाइट शुगर में से 7.54 लाख टन अफगानिस्तान, 5.17 लाख टन सोमालिया, 4.90 लाख टन दिजीबुती, 4.27 लाख टन श्रीलंका, 2.58 लाख टन चीन और 1.08 लाख टन चीनी सूडान ने आयात की।
टेबल 2: भारत से रॉ शुगर और व्हाइट शुगर का निर्यात (लाख टन)
चीनी सीजन (अक्तूबर से सितंबर) |
रॉ शुगर |
व्हाइट शुगर |
कुल चीनी |
2016-17 |
0.00 |
0.46 |
0.46 |
2017-18 |
0.47 |
5.73 |
6.20 |
2018-19 |
13.13 |
24.87 |
38.00 |
2019-20 |
17.84 |
41.56 |
59.40 |
2020-21 |
28.16 |
43.74 |
71.90 |
2021-22 |
56.29 |
53.71 |
110.00 |
2022-23* |
19.13 |
30.91 |
50.04 |
(चीनी सीजन अक्तूबर से सितंबर तक, *2022-23 के आंकड़े 15 मार्च तक)
इस कामयाबी के चलते भारत कुछ साल पहले मामूली निर्यातक से विश्व का दूसरा सबसे बड़ा चीनी निर्यातक बन गया। इंटरनेशनल शुगर ऑर्गनाइजेशन के मुताबिक साल 2021-22 में ब्राजील ने 255.40 लाख टन चीनी निर्यात की उसके बाद भारत ने 110.58 लाख टन चीनी निर्यात की जबकि थाइलैंड 79.86 लाख टन चीनी निर्यात कर भारत के पीछे रहा। इस साल आस्ट्रेलिया ने 25.67 लाख टन चीनी का निर्यात किया है।
देश में सबसे अधिक क्लोजिंग स्टॉक 2018-19 के चीनी साल में रहा जब यह 143 लाख टन पर पहुंच गया लेकिन 2021-22 के अंत में यह घटकर 70 लाख टन पर आ गया। वहीं चालू साल में चीनी का उत्पादन पिछले साल के 359.25 लाख टन के मुकाबले 334 लाख टन पर जाने का अनुमान है। इसके चलते ही सरकार ने चालू साल के लिए चीनी के निर्यात को 61 लाख टन तक सीमित कर दिया। इसमें से लगभग पूरी चीनी के सौदे हो चुके हैं और 50 लाख टन से अधिक चीनी का निर्यात किया जा चुका है।