उत्तराखंड के युवा को इंटीग्रेटेड फार्मिंग से मिली कामयाबी
इंटीग्रेटेड फार्मिंग के सफल मॉडल के लिए नरेश को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा भी सम्मानित किया जा चुका है।
कुछ साल पहले तक नरेश सजवाण पहाड़ के उन युवाओं में से एक थे जिन्हें आजीविका की तलाश में पहाड़ से पलायन करना पड़ा। इस बीच 2019 में, उन्हें पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते संविदा की नौकरी त्यागकर वापस गांव लौटना पड़ा। लेकिन सवाल फिर भी वही था कि गांव में करेंगे क्या?
नरेश ने आटा चक्की शुरू करने की सोची। उन्होंने कृषि विभाग की मदद से 80 प्रतिशत सब्सिडी पर गांव में आटा चक्की शुरू की और साथ ही खेती और पशुपालन से जुड़े कामों में संभावनाएं तलाशने लगे। आटा चक्की से शुरु करते हुए नरेश अब पॉलीहाउस, दुग्ध उत्पादन, मुर्गी और मत्स्य पालन के साथ ही आर्गेनिक सब्जियां उगाकर, इंटीग्रेटेड फार्मिंग का सफल मॉडल खड़ा कर चुके हैं। इस काम में उन्होंने उत्तराखंड सरकार की तमाम कल्याणकारी योजनाएं की मदद ली। इंटीग्रेटेड फार्मिंग के सफल मॉडल के लिए नरेश को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा भी सम्मानित किया जा चुका है।
नरेश सजवाण बताते है कि उन्होंने पशुपालन विभाग की मदद से गांव में मुर्गी पालन शुरू किया। इस काम पर उनकी कुल लागत तीन हजार रुपये ही आई, लेकिन दो साल के भीतर वो इससे करीब एक लाख रुपये कमाने में कामयाब रहे। इससे हौसला बढ़ा तो उन्होंने उद्यान विभाग की योजना के तहत 80 प्रतिशत सब्सिडी पर पॉलीहाउस भी बनवा लिया, इसमें वो सब्जियां उगाते हैं।
नरेश बताते हैं कि वो इस खरीफ के सीजन में ही करीब 40 हजार रुपये की सब्जियां बेच चुके हैं। वह उद्यान विभाग की मदद से 80 प्रतिशत सब्सिडी पर 500 पेड़ सेब भी लगा चुके हैं। अगले साल तक इन पड़ों से सेब उत्पादन शुरू होने की उम्मीद है। इसके अलावा इस समय उनके खेत में राजमा, पंचरंगी दाल, कुलथ की दालें भी लहलहा रही हैं। नरेश सजवाण ने इस बीच स्वजल और मनरेगा का लाभ लेते हुए अपने लिए गोबर गैस प्लांट भी लगा दिया है। नरेश बताते हैं कि इसके बाद उन्होंने सितंबर 2023 से रसोई गैस का सिलेंडर नहीं भराया है। घर में तीनों वक्त का खाना गोबर गैस से ही बनता है। गोबर गैस प्लांट से निकला वर्मी कम्पोस्ट युक्त गोबर पॉलीहाउस में काम आ जाता है।
नरेश बताते हैं कि उन्होंने अब प्रयोग के तौर पर मछली पालन भी शुरू किया है, साथ ही दुग्ध उत्पादन करते हुए इसके सहायक उत्पाद के रूप में पनीर भी नजदीकी बाजार में बेच रहे हैं। इन सब कामों से वो अपने गांव में रहकर ही नौकरी से ज्यादा कमा लेते हैं। नरेश कहते हैं कि यदि राज्य सरकार इन योजनाओं पर भारी भरकम सब्सिडी नहीं देती तो उनके जैसे किसान कभी भी इसका लाभ नहीं उठा पाते हैं।
नरेश पहाड़ के युवाओं को अपने गांव आकर, गांव को आबाद करने का सुझाव देते हैं। इसके लिए उत्तराखंड सरकार की तमाम योजनाएं चल रही हैं। इससे पलायन से खाली होते उत्तराखंड के गांवों में भी नया जीवन लौट सकता है। विदित है कि उत्तराखंड के गांवों में पलायन एक बड़ी समस्या है, पलायन आयोग के मुताबिक राज्य बनने के बाद 1800 से अधिक गांव निर्जन हो चुके हैं