सोयाबीन की कीमतों में गिरावट के बाद अब उत्पादन गिरने का खतरा, 'पीली मोजेक' ने बढ़ाई किसानों की चिंता

मध्य प्रदेश में सोयाबीन की फसल पर 'पीली मोजेक' रोग का खतरा मंडरा रहा है, जिससे किसानों की चिंता बढ़ रही है। नीमच, मंदसौर, धार और खरगोन सहित कई जिलों में फसल पीली पड़ रही है। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि यदि समय रहते इस रोग पर काबू नहीं पाया गया, तो फसल बर्बाद हो सकती हैं

सोयाबीन की कीमतों में गिरावट के बाद अब उत्पादन गिरने का खतरा, 'पीली मोजेक' ने बढ़ाई किसानों की चिंता

मध्य प्रदेश में सोयाबीन किसानों के सामने एक नई समस्या खड़ी हो गई है। पहले ही कम कीमतों से जूझ रहे किसानों की फसल पर अब 'पीली मोजेक' का खतरा मंडरा रहा है। नीमच, मंदसौर, धार, खरगोन और देवास सहित कई जिलों में सोयाबीन की फसल पीली पड़ने लगी है जबकि कुछ जगहों पर लाल और भूरे धब्बे भी दिखाई दे रहे हैं। सोयाबीन की फसल में पीलेपन ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है। अगर समय रहते 'पीली मोजेक' को कंट्रोल नहीं किया गया तो इससे पूरी फसल बर्बाद हो सकती है। वहीं, इस साल अच्छे उत्पादन की आस लिए बैठे किसान परेशान दिख रहे हैं क्योंकि इससे सोयाबीन के उत्पादन में गिरावट का सकती है।

रूरल वॉयस ने इस बारे में खरगोन कृषि विज्ञान केंद्र के प्रमुख एवं वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. जी.एस. कुल्मी से बात की। डॉ. कुल्मी ने बताया कि 'पीली मोजेक' एक कीट (वेक्टर) से फैलने वाला रोग है। यह व्हाइट फ्लाई के चलते सोयाबीन की फसल में फैलता है। इस रोग के कारण पौधों की पत्तियां पीली होने लगती हैं और ग्रोथ रुक जाती है। पीली मोजेक के चलते सोयाबीन के पत्तों पर पीले और भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते है। साथ ही फलियों का आकार छोटा हो जाता है और दाने सिकुड़ जाते हैं।उन्होंने कहा कि अगर इस रोग को शुरुआत में कंट्रोल कर लिया जाए तो ठीक है लेकिन इसके फैलने के बाद इस पर नियंत्रण करना काफी मुश्किल है। फसल पीली होकर गिरने लगती है और बर्बाद हो जाती है।   

डॉ. कुल्मी ने कहा कि फसल पर जो पीले पत्ते दिख रहे हैं उसकी एक वजह खेतों से पानी की निकासी नहीं होना भी हो सकती है। प्रदेश में इन दिनों भारी बारिश हो रही है। जिसके कारण खेतों में पानी भरने की समस्या आ रही है। यदि पानी ज्यादा समय तक भरा रहता है तो इससे फसल को नुकसान होगा और वह पीली पड़ने लगेगी। इसलिए किसान अपनी फसल को सुरक्षित करने के लिए मेड़ों से पानी निकासी का इंतजाम कर दें, जिससे फसलें सुरक्षित रहें।

सीहोर जिले के झालकी गांव के किसान जगदीश वर्मा ने रूरल वॉयल को बताया कि उन्होंने समय पर सोयाबीन की बुवाई की थी और फसल अच्छी स्थिति में थी, लेकिन अब पीला मोजेक फैलने से उनकी मेहनत पर पानी फिर गया है। जगदीश ने कहा कि उन्हें इस बार सोयाबीन की फसल से अच्छे मुनाफे की उम्मीद थी लेकिन रोग के कारण फसल कमजोर हो गई है। अगर स्थिति ऐसी ही रही तो उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। 

फसल में पीलापन दिखाई देने पर करें ये काम 

रोग से बचाव के लिए फसल में जब भी पीलापन दिखाई दे तो 1 मिलीमीटर पानी में 1 मिलीमीटर गंधक का तेजाब और 0.5 फीसदी फैसर सल्फेट का छिड़काव करना चाहिए। इसके अलावा मोजेक रोग से बचाव के लिए पौधों को उखाडकर नष्ट करें। इसमें मिथोएट, मेटासिस्टोक्स पांच सौ से छह सौ ग्राम दवा को पांच सौ से छह सौ लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। साथ ही पौधों पर नीम ऑयल का छिड़काव करें। सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिए खेत में 'पीला स्टिकी ट्रैप' लगाएं। 

मध्य प्रदेश कांग्रेस के किसान प्रकोष्ठ के अध्यक्ष केदार शंकर सिरोही ने रूरल वॉयस को बताया कि इस साल राज्य में सोयाबीन की अच्छी फसल की उम्मीद थी, लेकिन अब 'पीली मोजेक' ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है। प्रदेश के 5 से 6 जिलों में यह समस्या देखी जा रही है। इन जिलों के किसानों ने सोयाबीन की फसल के पीले पड़ने की शिकायत की है। सिरोही ने कहा कि इन जिलों में सोयाबीन की मुख्य खेती होती है। अगर 'पीली मोजेक' पर समय रहते नियंत्रण नहीं गया, तो इसका असर उत्पादन पर पड़ेगा। किसानों को जल्द से जल्द सावधानी बरतनी चाहिए, ताकि उनकी मेहनत बेकार न हो।

किसान सत्याग्रह मंच के सदस्य शिवम बघेल ने रूरल वॉयस को बताया कुछ जिलों में पीली मोजेक फैल रहा है, और इसे जल्द नियंत्रित करना जरूरी है। उन्होंने कहा कि 2018-19 में भी इस रोग से किसानों को भारी नुकसान हुआ था और लाखों की फसल बर्बाद हो गई थी। पीली मोजेक में सोयाबीन की पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं, जिससे कुछ ही दिनों में पूरी फसल नष्ट हो जाती है। उन्होंने कहा कि शुरुआत में इस रोग की पहचान करना मुश्किल है। जब फसल पीली पड़ती है, तब किसानों को इसका पता चलता है। इसलिए बुवाई के बाद ही कीटनाशकों का उपयोग जरूरी है, ताकि फसल सुरक्षित रहे।

सोयाबीन के दाम 10 साल पुराने स्तर पर

मध्य प्रदेश में सोयाबीन की कीमतें 10 साल पुराने स्तर पर पहुंच गई हैं। प्रदेश की मंडियों में सोयाबीन 3500 से 4000 रुपये प्रति क्विंटल में बिक रही है। सीजन शुरू होने से पहले ही कीमतों में आई गिरावट ने किसानों की चिंता बढ़ी दी है। सोयाबीन का भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से भी नीचे चला गया है। आगामी खरीफ मार्केटिंग सीजन के लिए केंद्र सरकार ने सोयाबीन का एमएसपी 4892 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है।

लगातार घट रहा सोयाबीन का उत्पादन 

सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) के आंकड़ों के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में सोयाबीन के उत्पादन में गिरावट आई है। मध्य प्रदेश में खरीफ सीजन 2023 में 524.70 लाख टन सोयाबीन का उत्पादन हुआ, जो खरीफ सीजन 2022 में 541.38 लाख टन, खरीफ सीजन 2021 में 522.92 लाख टन और खरीफ सीजन 2020 में 417.74 लाख टन था। 

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