उत्तर प्रदेश सरकार ने गन्ने का एसएपी बढ़ाकर 350 रुपये किया, पांच साल में केवल 35 रुपये की वृद्धि, पिछली दोनों सरकारों से कम
उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने आगामी पेराई सीजन (2021-22) के लिए गन्ने के राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) में 25 रुपये प्रति क्विटंल की बढ़ोतरी करने की घोषणा की है। इसके बाद राज्य में गन्ने की अगेती प्रजाति के लिए एसएपी 350 रुपये प्रति क्विंटल, सामान्य प्रजाति के लिए 340 रुपये प्रति क्विंटल और अस्वीकृत प्रजाति के लिए एसएपी 335 रुपये प्रति क्विटंल हो गया है। पांच साल के दौरान भाजपा की उत्तर प्रदेश सरकार ने गन्ने का एसएपी केवल 35 रुपये प्रति क्विटंल बढ़ाया है। वहीं इसकी पूर्ववर्ती अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी की सरकार के कार्यकाल में गन्ने का एसएपी 65 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ाया था वहीं उसके पहले मायावती के नेतृत्व वाली बसपा सरकार के कार्यकाल में गन्ने के एसएपी में अभी तक की सबसे अधिक 120 रुपये प्रति क्विटंल की बढ़ोतरी हुई थी
उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने आगामी पेराई सीजन (2021-22) के लिए गन्ने के राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) में 25 रुपये प्रति क्विटंल की बढ़ोतरी करने की घोषणा कर दी। सरकार ने यह घोषणा आगामी 1 अक्तूबर से शुरू होने वाले पेराई सीजन के लिए की है। इसके बाद राज्य में गन्ने की अगेती प्रजाति के लिए एसएपी 350 रुपये प्रति क्विंटल, सामान्य प्रजाति के लिए 340 रुपये प्रति क्विंटल और अस्वीकृत प्रजाति के लिए एसएपी 335 रुपये प्रति क्विटंल हो गया है। खास बात यह है कि राज्य सरकार ने आगामी पेराई सीजन समेत पांच पेराई सीजन में केवल दो बार गन्ने के एसएपी में बढ़ोतरी की है। सत्ता में आने के पहले साल 2017-18 सीजन के लिए 10 रुपये प्रति क्विंटल और आगामी सीजन 2021-22 के लिए 25 रुपये की वृद्धि एसएपी में की है। इस तरह से पांच साल के दौरान भाजपा की उत्तर प्रदेश सरकार ने गन्ने का एसएपी केवल 35 रुपये प्रति क्विटंल बढ़ाया है। वहीं इसकी पूर्ववर्ती अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी की सरकार ने अपने कार्यकाल में गन्ने का एसएपी 65 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ाया था जबकि उसके पहले मायावती के नेतृत्व वाली बसपा सरकार ने अपने कार्यकाल में अभी तक की सबसे अधिक 120 रुपये प्रति क्विटंल की बढ़ोतरी गन्ने के एसएपी में की थी।
मायावती की सरकार के आने के समय 2006-07 में गन्ने का एसएपी सामान्य प्रजाति के लिए 125 रुपये प्रति क्विटंल और अगेेती प्रजाति के लिए 130 रुपये प्रति क्विंटल था जो 2011-12 के पेराई सीजन में सामान्य प्रजाति के लिए 240 रुपये और अगेती प्रजाति के लिए 250 रुपये प्रति क्विटंल हो गया था। मायावती के कार्यकाल में गन्ने के एसएपी में 120 रुपये प्रति क्विटंल की बढ़ोतरी हुई थी। वहीं अखिलेश यादव की सरकार के समय में गन्ने की इन दो प्रजातियों का एसएपी 2011-12 के 240 और 250 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़कर 2016-17 में 305 और 315 रुपये प्रति क्विटंल पर पहुंच गया था और यह वृद्धि 65 रुपये प्रति क्विंटल की थी। वहीं मौजूदा योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने पहले साल 2017-18 में एसएपी में दस रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी कर इसे सामान्य प्रजाति के लिए 315 रुपये और अगेती प्रजाति के लिए 325 रुपये प्रति क्विंटल किया था। इसके बाद 2018-19, 2019-20 और 2020-21 पेराई सीजन के लिए गन्ने के एसएपी में कोई बढ़ोतरी नहीं की गई। आगामी सीजन के लिए की गई 25 रुपये प्रति क्विटंल की बढ़ोतरी के साथ मौजूदा सरकार के कार्यकाल में गन्ने का एसएपी मात्र 35 रुपये प्रति क्विटंल बढ़ेगा।
मौजूदा सरकार की इस घोषणा के बाद राज्य के 45 लाख से अधिक गन्ना किसानों की नाराजगी का कम होना संभव नहीं लगता है क्योंकि पड़ोसी राज्य हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने आगामी सीजन के लिए गन्ने का एसएपी 362 रुपये प्रति क्विटंल घोषित किया है। वहीं पंजाब की कांग्रेस सरकार ने गन्ने का एसएपी 360 रुपये प्रति क्विंटल घोषित कर रखा है। इस स्थिति में पहले से ही आंदोलनरत गन्ना किसानों की नाराजगी कम कैसे होगी क्योंकि वह 400 रुपये प्रति क्विटंल से अधिक दाम मांग रहे हैं। केंद्र सरकार के तीन नये कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन करने वाले किसानों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों की संख्या सबसे अधिक है। वहीं अभी भी उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों पर गन्ना किसानों का चालू पेराई सीजन (2019-20) का करीब चार हजार करोड़ रुपये का गन्ना मूल्य भुगतान बकाया है।
अहम बात यह है कि देश में चीनी की बिक्री का कारोबार काफी हद तक सरकार द्वारा नियंत्रित है और सरकार ने चीनी की बिक्री के लिए 31 रुपये प्रति किलो का न्यूनतम बिक्री मूल्य (एमएसपी) तय कर रखा है। सभी मिलों की बिक्री के लिए केंद्र सरकार बिक्री का मासिक कोटा तय करती है और निर्यात का कोटा तय करती है। वैश्विक बाजार में चीनी की कमी के चलते चालू साल में 60 लाख टन से अधिक चीनी का निर्यात हआ है। इसके पहले साल भी करीब इतनी मात्रा का निर्यात हुआ था और केंद्र सरकार ने चीनी मिलों को दो साल के लिए निर्यात पर सब्सिडी भी दी है। वहीं आगामी साल में भी ब्राजील व थाइलैंड में चीनी उत्पादन कम रहने के चलते भारत से 50 लाख टन से अधिक निर्यात होने की संभावना है। वैश्विक बाजार में चीनी की कीमतें चार साल के उच्चतम स्तर पर चल रही हैं। यही वजह है कि घरेलू बाजार में चीनी की खुदरा कीमतें 40 रुपये प्रति किलो को पार कर गई हैं। यानी चीनी मिलों के लिए कमाई का अच्छा मौका मौजूद हैं। उनका मुनाफा बढ़ रहा और इसी के चलते स्टॉक मार्केट में चीनी मिलों के सूचीबद्ध स्टॉक्स की कीमतों में भारी बढ़ोतरी हुई है। यह अनुकूल स्थिति पूरे देश की चीनी मिलों के लिए है इसलिए इसके बावजूद उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा गन्ने के एसएपी में पड़ोसी राज्यों से कम बढ़ोतरी करना सही नहीं माना जा सकता है और इससे किसानों की नाराजगी बढ़ सकती है।
राज्य सरकार ने दावा किया है कि एसएपी में इस बढ़ोतरी से राज्य के 45.44 लाख गन्ना किसानों को चालू सीजन के मुकाबले 2500 से 3000 करोड़ रुपये का अधिक भुगतान होगा और यह 38 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगा।
लेकिन सवाल है कि सरकार ने आठ फीसदी से कम की बढ़ोतरी की है जबकि पिछले तीन साल में किसानों के लिए बिजली करीब तीन गुना महंगी हुई और डीजल का दाम 20 रुपये प्रति लीटर से अधिक बढ़ा है। ऐसे में तीन साल के फ्रीज के बाद केवल 25 रुपये प्रति क्विटंल की बढ़ोतरी को तर्कसंगत ठहराया जाना मुश्किल है और वह भी चुनावी साल में। राज्य में आगामी फरवरी- मार्च माह में विधान सभा के चुनाव होने हैं। ऐसे में विपक्ष सरकार के खिलाफ गन्ना किसानों की नाराजगी को भुनाने की पूरी कोशिश करेगा।
वहीं सरकार के इस फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता और संयुक्त किसान मोर्चा के नेता राकेश टिकैत ने कहा है कि गन्ना के एसएपी में केवल 25 रुपये प्रति क्विटंल की बढ़ोतरी योगी सरकार द्वारा किसानों के साथ किया गया एक क्रूर मजाक है। जाति और धर्म के नाम पर वोट मांगने वाली भाजपा किसानों को कुचलने में लगी है और उसका संकल्प पत्र जुमला साबित हुआ है। पड़ोसी राज्य हरियाणा में गन्ने का एसएपी 362 रुपये प्रति क्विटंल है। उत्तर प्रदेश की गन्ना मूल्य परामर्शदात्री समिति ने गन्ने की लागत 350 रुपये प्रति क्विटंल बताई थी। भाजपा के खुद के सांसद वरूण गांधी ने पत्र लिखकर गन्ने का एसएपी 400 रुपये प्रति क्विंटल तय करने की मांग की थी। पिछले विधान सभा चुनाव के पहले भाजपा ने अपने घोषणापत्र में गन्ने का एसएपी 370 रुपये क्विटंल करने और 14 दिन के भीतर भुगतान करने का वादा किया था। इस वादाखिलाफी का जवाब किसान और मजदूर बिरादरी चुनावों में जरूर देगी।