तेलंगाना ने उत्तर प्रदेश से आलू आने पर लगाई रोक, इस फैसले के राजनीति रंग लेने की संभावना
तेलंगाना सरकार ने उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार की मुश्किलें बढ़ाने वाला फैसला लिया है। यह फैसला है तेलंगाना में उत्तर प्रदेश से जाने वाले आलू पर रोक लगाने का। उत्तर प्रदेश से हर रोज करीब 100 ट्रक आलू तेलंगाना में जाता है। इसमें से करीब आधे ट्रक आगरा से ही तेलंगाना जाते हैं
उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं और तेलंगाना की सरकार केंद्र की भाजपा सरकार से दूरी बना रही है। केंद्र सरकार के साथ धान की सरकारी खरीद को लेकर खींचतान के बाद अब तेलंगाना सरकार ने उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार की मुश्किलें बढ़ाने वाला फैसला लिया है। यह फैसला है तेलंगाना में उत्तर प्रदेश से जाने वाले आलू पर रोक लगाने का। उत्तर प्रदेश से हर रोज करीब 100 ट्रक आलू तेलंगाना में जाता है। इसमें से आधे ट्रक आगरा जिले से ही जाते हैं। तेलंगाना द्वारा उत्तर प्रदेश के आलू पर रोक लगाने का मतलब है उत्तर प्रदेश के आलू किसानों से एक बाजार का छिनना और उसका असर आलू की कीमतों में गिरावट के रूप में सामने आ सकता है। वहीं तेलंगाना सरकार का कहना है कि वह राज्य में आलू उत्पादन को बढ़ावा देना चाहती है इसलिए उत्तर प्रदेश से आलू आने पर प्रतिबंध लगाया गया है।
तेलंगाना में पिछले कुछ साल के अंदर सिंचाई परियोजनाओं पर तेजी से काम हुआ है। जिसका नतीजा यह हुआ कि वहां धान का उत्पादन बहुत तेजी से बढ़ा है और साथ ही वहां की सरकार की बेहतर व्यवस्था के चलते धान की सरकारी खरीद तेजी से बढ़ी है। जिसके चलते पांच साल के भीतर ही धान की सरकारी खऱीद मामले में तेलंगाना पंजाब के बाद केंद्रीय पूल में धान की खरीद करने वाला दूसरा सबसे बड़ा राज्य बन गया है। 2015-16 के मार्केटिंग सीजन में तेलंगाना में धान की सराकरी खरीद 23.57 लाख टन रही थी जो 2020-21 के मार्केटिंग सीजन में बढ़कर 141.09 लाख टन पर पहुंच गई। कपास खरीद के मामले में भी तेलंगाना ने सबसे अधिक हिस्सेदारी हासिल कर ली है। कपास उत्पादन में तीसरा राज्य होने के बावजूद कॉटन कारपोरेशन ऑफ इंडिया की खऱीद यहां सबसे अधिक हो रही है।
तेलंगाना सरकार का कहना है कि राज्य में आलू की नई फसल आ गई है इसलिए उत्तर प्रदेश से पिछले सीजन की फसल का कोल्ड स्टोरेज का पुराना आलू मंगाने का कोई तर्क नहीं है। इसका राज्य के आलू किसानों पर प्रतिकूल असर पड़ता है। तेलंगाना सरकार धान के बढ़ते उत्पादन के चलते किसानों को फसल विविधिकरण अपनाने पर जोर दे रही है। उसका कहना है कि तेलंगाना आलू उत्पादन के लिए बेहतर राज्य है। अभी यहां सांगारेड्डी जिले के जहीराबाद इलाके में करीब चार हजार एकड़ में आलू की खेती हो रही है। हमारा लक्ष्य इसका क्षेत्रफल एक लाख एकड़ तक ले जाने का है।
इस कहानी में एक दिलचस्प राजनीतिक ट्विस्ट भी है और वह एआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी का। औवेसी उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव लड़ना चाहते हैं वहीं मुख्य मंत्री के. चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली तेलंगाना राष्ट्र समिति पार्टी की सरकार में ओवैसी की पार्टी साझीदार है। ऐसे में तेलंगाना सरकार का उत्तर प्रदेश से आने वाले आलू पर रोक लगाने का फैसला उनके लिए मुश्किल खड़ी करेगा। अब देखना होगा कि ओवैसी इस स्थिति से कैसे निपटते हैं।
वहीं आगरा के एक बड़े आलू उत्पादन और कोल्ड स्टोरेज चलाने वाले उद्यमी का कहना है कि तेलंगाना सरकार का फैसला हमारे लिए नुकसान लेकर आयेगा। हर रोज उत्तर प्रदेश से करीब 700 ट्रक आलू दूसरे राज्यों को जाता है इसमें से करीब दोतिहाई ट्रक आलू महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु को जाता है। उत्तर प्रदेश में आलू की फसल आने के समय फरवरी और मार्च में केवल 20 से 25 फीसदी फसल की बिक्री होती है और बाकी फसल कोल्ड स्टोरों में भंडारण के लिए चली जाती है। अभी भी आलू की फसल का एक बड़ा हिस्सा कोल्ड स्टोरों में है। ऐसे में इस तरह की रोक आलू उत्पादकों और स्टोरेज मालिकों के लिए नुकसानदेह साबित होगी।
ऐसे में साल भर से अधिक समय तक चलेत और हाल ही में समाप्त किसान आंदोलन के चलते पैदा हुई नाराजगी को खत्म करने के लिए केंद्र की भाजपा के नेतृत्व वाली ससरकार ने तीन कृषि कानूनों को पिछले दिनों रद्द कर दिया था। वहीं तेलंगाना सरकार के इस कदम से उत्तर प्रदेश के आलू किसानों का अपने हितों के संरक्षण को लेकर दबाव बन सकता है।
वहीं बाजार में नवंबर में नया आलू भी आने लगता है जो 65 से 70 दिन की फसल का होता है लेकिन इसे स्टोरेज नहीं किया जा सकता है। फरवरी और मार्च के शुरू में आने वाली फसल ही कोल्ड स्टोरेज में रखी जाती है। इस स्थिति में स्टोर में रखे आलू की कीमतों पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।