यूपी सरकार ने नहीं बढ़ाया गन्ने का दाम, 370 रुपये ही रहेगा एसएपी, किसानों को बड़ा झटका
यूपी सरकार ने इस साल गन्ना मूल्य में कोई बढ़ोतरी नहीं की है। इस निर्णय का ऐलान भी अधिकांश पेराई सीजन बीतने के बाद किया। जबकि किसान खेती की बढ़ती लागत को देखते हुए गन्ने का भाव कम से कम 400 पार होने की आस लगा रहे थे।
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उत्तर प्रदेश सरकार ने चालू पेराई सीजन (2024-25) के लिए गन्ने के राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) में कोई बढ़ोतरी नहीं की है। राज्य में इस बार भी गन्ने का दाम पिछले साल के बराबर यानी 370 रुपये प्रति क्विंटल ही रहेगा। सोमवार को कैबिनेट बाई सर्कुलेशन में गन्ना मूल्य यथावत रखने का निर्णय लिया। हालांकि, इस बारे में आधिकारिक अधिसूचना का इंतजार है, लेकिन सूत्रों के मुताबिक, चीनी उद्योग एवं गन्ना विकास मंत्री ने गन्ना मूल्य को पिछले सीजन के बराबर रखने के फैसले की पुष्टि की है।
पिछले पेराई सीजन 2023-24 में यूपी सरकार ने गन्ना मूल्य 20 रुपये बढ़ाकर अगैती किस्मों के लिए 370 रुपये प्रति क्विंटल तय किया था। सामान्य प्रजाति के लिए 360 रुपये प्रति क्विंटल और अनुपयुक्त प्रजाति के लिए 355 रुपये प्रति क्विंटल का दाम तय किया गया था। लेकिन चालू पेराई सत्र 2024-25 में राज्य सरकार ने गन्ना मूल्य में कोई बढ़ोतरी नहीं की है। इस निर्णय का ऐलान भी अधिकांश पेराई सीजन बीतने के बाद किया गया। जबकि किसान खेती की बढ़ती लागत और रोगों से फसल नुकसान को देखते हुए गन्ने का भाव 400 पार होने की आस लगा रहे थे। सरकार के इस फैसले से किसानों में मायूसी है और किसान संगठन रोष जाता रहे हैं।
भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने रूरल वॉयस से बातचीत में गन्ना मूल्य में बढ़ोतरी न होने को दुर्भाग्यपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि सरकार ने किसानों को धोखे में रखा। पूरे सीजन में भाव बढ़ाया नहीं और जब सीजन लगभग निकल गया, तब कहा कि भाव नहीं बढ़ेगा। टिकैत का कहना है कि इतने किसान संगठन बन गये, लेकिन अब आंदोलन नहीं होते। सत्ता और किसान में किसी एक को चुनना पड़ेगा। किसान आंदोलन कमजोर हो गए, इसलिए गन्ने का दाम नहीं बढ़ा।
कभी जोरशोर से गन्ना किसानों के मुद्दे उठाने वाली राष्ट्रीय लोकदल के भाजपा से हाथ मिलाने के बाद गन्ना किसानों की आवाज कमजोर पड़ी है। राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री जयंत चौधरी ने मीरापुर उपचुनाव में गन्ने का भाव 400 पार की बात कही थी। लेकिन अब गन्ना मूल्य में कोई बढ़ोतरी न होने पर राष्ट्रीय लोकदल के नेता चुप्पी साध रहे हैं। यह यूपी में गन्ना पॉलिटिक्स के कमजोर होने का संकेत है।
समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और यूपी योजना आयोग के पूर्व सदस्य प्रो. सुधीर पंवार ने कहा कि यूपी की भाजपा सरकार ने किसानों को एक बार फिर धोखा दिया है। जो गन्ना मूल्य पेराई सत्र के शुरू में घोषित होता था, उसे पेराई सत्र समाप्त होने पर घोषित किया है। वो भी बिना किसी बढ़ोतरी के, ताकि किसान आंदोलन न कर सके। लागत मूल्य अधिक होने के बाद भी यूपी के किसानों को हरियाणा से 30 रुपये और पंजाब से 31 रुपये प्रति क्विंटल कम रेट मिलेगा। गौरतलब है कि हरियाणा में गन्ने का भाव 400 रुपये और पंजाब में 401 रुपये प्रति क्विंटल है।
जय किसान आंदोलन के राष्ट्रीय प्रवक्ता मनीष भारती ने कहा कि गन्ना मूल्य वृद्धि न होने से किसानों पर आर्थिक संकट आएगा और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। सरकार के इस गलत फैसले से किसान कर्ज में डूबेगा। उन्होंने कहा कि महंगाई और उत्पादन लागत लगातार बढ़ रही है, लेकिन किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य नहीं मिल रहा है। सरकार की यह नीति किसानों के साथ अन्याय है।
किसानों का घटता सियासी असर
चीनी, एथेनॉल सहित कई उत्पादों से चीनी मिलों के लाभ को देखते हुए इस साल गन्ने का भाव 400 रुपये तक पहुंचने की उम्मीद की जा रही थी। ऊपर से इस बार सूबे में गन्ने की फसल भी कमजोर थी।
लेकिन यूपी की राजनीति में किसानों के घटते असर और बदले राजनीतिक समीकरणों के चलते इस बार गन्ने का भाव नहीं बढ़ पाया। राष्ट्रीय लोकदल के भाजपा से गठबंधन के बाद पश्चिमी यूपी की गन्ना पॉलिटिक्स में एक खालीपान आया, जिसे भरने में विपक्षी दल और किसान यूनियनें नाकाम रही हैं। फिर ऐतिहासिक किसान आंदोलन के बाद किसान यूनियनों में आए बिखराव का असर भी रहा है। यही वजह है कि गन्ना मूल्य में बढ़ोतरी की मांग को लेकर कोई भी किसान संगठन सरकार पर दबाव नहीं बना पाया।
चीनी मिलों के तर्क से सरकार सहमत
चालू पेराई सीजन की शुरुआत से ही यूपी की चीनी मिलें गन्ना मूल्य में बढ़ोतरी के पक्ष में नहीं थीं। चीनी उद्योग का कहना है कि उनकी बढ़ती लागत और गन्ने से कम रिकवरी के चलते वे गन्ना का रेट बढ़ाने की स्थिति में नहीं हैं।
चीनी उद्योग से जुड़े संगठनों के पदाधिकारियों ने रूरल वॉयस को बताया कि अगर सरकार गन्ने का दाम बढ़ाती है तो उन्हें नुकसान होगा, क्योंकि चीनी की रिकवरी करीब 10 फीसदी कम है और सरकार चीनी के न्यूनतम बिक्री मूल्य (एसएमपी) में बढ़ोतरी नहीं कर रही है। साथ ही बी-हैवी मोलेसेज से बनने वाले एथेनॉल की कीमत में भी बढ़ोतरी नहीं हुई है। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा गन्ने मूल्य नहीं बढ़ाने के फैसले को देखते हुए लगता है कि वह चीनी मिलों के तर्क से सहमत है।
किसानों पर दोहरी मार
इस साल गन्ने की फसल में रोगों के प्रकोप के कारण पैदावार 10 से 15 फीसदी तक गिर गई है, जिसके चलते किसानों को नुकसान हुआ है। ऐसे में दाम न बढ़ने से किसान पर दोहरी मार पड़ेगी। क्योंकि दाम तो बढ़ा नहीं बल्कि पैदावार घटने व लागत बढ़ने का घाटा भी उसे उठाना पड़ रहा है। उसके लिए सरकार ने किसानों को कोई राहत नहीं दी है।
8 साल में 55 रुपये की बढ़ोतरी
यूपी में पिछले आठ साल में केवल तीन बार गन्ने का एसएपी 10, 25 और 20 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ा है और पांच बार इसे यथावत रखा गया। इस तरह आठ वर्षों में गन्ने का दाम कुल 55 रुपये बढ़ाया गया। अक्सर चुनावी साल में ही गन्ने का दाम बढ़ा है। इस लिहाज से अब 2027 में गन्ना मूल्य में वृद्धि की संभावना है।
वर्ष 2017-18 में गन्ने के एसएपी में 10 रुपये की बढ़ोतरी कर 325 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया था। इसके बाद अगले तीन साल इसमें कोई बढ़ोतरी नहीं हुई। फिर 2021-22 में गन्ना मूल्य 25 रुपये बढ़ाकर 350 रुपये प्रति क्विंटल किया गया था, क्योंकि फरवरी, 2022 में राज्य विधान सभा के चुनाव होने थे। वहीं, इसके अगले साल कोई बढ़ोतरी नहीं हुई। जबकि 2023-24 सीजन में गन्ना मूल्य 20 रुपये बढाकर 370 रुपये प्रति क्विंटल घोषित किया गया था। यह बढ़ोतरी भी 2024 के लोक सभा चुनावों में किसानों की नाराजगी के बचने के लिए की गई थी।
यूपी में पिछले 8 वर्षो में गन्ने का राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) (रुपये/क्विंटल) | |
पेराई सत्र | गन्ना मूल्य |
2016-17 | 315 |
2017-18 | 325 |
2018-19 | 325 |
2019-20 | 325 |
2020-21 | 325 |
2021-22 | 350 |
2022-23 | 350 |
2023-24 | 370 |
2024-25 | 370 |
गन्ने की अगैती किस्मों का एसएपी |