मध्य प्रदेश में 32 हजार टन सोयाबीन की खरीद, 13 लाख टन है लक्ष्य

केंद्रीय खरीद एजेंसी नेफेड के अनुसार, मध्य प्रदेश में 13.68 लाख टन सोयाबीन खरीद की स्वीकृति के विपरित राज्य में 18 नवंबर तक सिर्फ 32,929 टन सोयाबीन की खरीद हुई है।

मध्य प्रदेश में 32 हजार टन सोयाबीन की खरीद, 13 लाख टन है लक्ष्य

मध्य प्रदेश में सोयाबीन की सरकारी खरीद शुरू हुए लगभग एक महीना बीत चुका है लेकिन इसके बाद भी राज्य में बहुत कम खरीद हुई है। किसानों से सोयाबीन की खरीद कर रही केंद्रीय एजेंसी नेफेड के अनुसार, 18 नवंबर तक मध्य प्रदेश में 13.68 लाख टन सोयाबीन खरीद की स्वीकृति के मुकाबले सिर्फ 32,929 टन की खरीद हुई है, जो बहुत कम है। राज्य में 31 दिसंबर तक सोयाबीन की खरीद होगी। 

रूरल वॉयस से बातचीत में कई किसान नेताओं और व्यापारियों ने बताया कि खरीद शुरू होने से पहल ही राज्य के अधिकतर किसान नीजी व्यापारियों को अपनी उपज बेच चुके थे। रबी फसलों की बुवाई का समय पास था और खाद-बीज के लिए किसानों को पैसों की आवश्यकता थी, जिससे उनके पास उपज बेचने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं था।  

मध्य प्रदेश की मंडियों में सोयाबीन की कीमतें अभी भी 4892 रुपये के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे बनी हुई हैं। किसानों को मंडियों में 4000 से 4200 रुपये प्रति क्विंटल का भाव मिल रहा है, जो काफी कम हैं। केंद्र सरकार ने सितंबर में खाद्य तेलों पर सीमा शुल्क शून्य से बढ़ाकर 20 फीसदी करने का निर्णय लिया था ताकि कीमतों में सुधार हो और किसानों को सोयाबीन का उचित लाभ मिल सके। हालांकि, व्यापारियों को इसका अधिक लाभ हुआ।

केंद्रीय उपभोक्ता मामले विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, 13 सितंबर को जब आयात शुल्क बढ़ा, तब पैक्ड सोयाबीन रिफाइंड तेल का औसत खुदरा दाम 118.81 रुपये प्रति लीटर था, जो 21 नवंबर को बढ़कर 142.73 रुपये हो गया है। इस दौरान सोयाबीन तेल की कीमतें तो बढ़ीं लेकिन मध्य प्रदेश की मंडियों में किसानों को उचित दाम नहीं मिले। सोयाबीन की कीमतें 4000 से 4200 रुपये प्रति क्विंटल तक बढ़कर स्थिर बनी हुई हैं।   

मंदसौर जिले के किसान अमित पटेल ने रूरल वॉयस को बताया कि उन्होंने 5 एकड़ में सोयाबीन की फसल लगाई थी, जिससे उन्हें लगभग 40 क्विंटल पैदावार मिली। सोयाबीन भंडारण के लिए व्यवस्था नहीं होने के कारण उन्होंने 4100 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से अपनी आधी फसल पहले ही बेच दी थी। जब सरकारी खरीद शुरू हुई तो अधिकारियों ने नमी का हवाला देकर उनकी उपज नहीं खरीदी। जिस वजह से उन्हें बची हुई फसल भी नीजी व्यापारियों को बेचनी पड़ी। 

मध्य प्रदेश कांग्रेस किसान प्रकोष्ठ के अध्यक्ष केदार शंकर सिरोही ने कहा कि राज्य के सोयाबीन किसानों को सरकारी खरीद का कुछ खास लाभ नहीं मिला। उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश सोयाबीन का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है लेकिन इसके बाद भी राज्य के किसानों को कम कीमतों पर अपनी उपज बेचनी पड़ी। उन्होंने कहा कि रबी फसलों की बुवाई के लिए किसानों को पैसों की जरूरत थी और किसानों के पास भंडारण की भी कोई खास व्यवस्था नहीं थी। जिस वजह से अधिकतर किसानों ने खरीद शुरू होने से पहले ही अपनी फसल बेच दी थी।

किसान उत्पादक संगठनों से जुड़े मध्य भारत कंसोर्टियम ऑफ एफपीओ के सीईओ योगेश द्विवेदी ने रूरल वॉयस को बताया सोयाबीन की गिरती कीमतों में सुधार के लिए केंद्र सरकार ने खाद्य तेलों पर आयात शुल्क बढ़ाने का फैसला लिया था लेकिन किसानों को इसका उचित लाभ नहीं मिला। सोयाबीन की कीमतों में सुधार तो हुआ लेकिन कीमतें एमएसपी से बराबर भी नहीं पहुंच पाई। अभी भी प्रदेश की मंडियों में सोयाबीन की कीमतें एमएसपी से कम हैं। उन्होंने कहा कि सरकार के फैसले का ज्यादा फायदा व्यापारियों को हुआ क्योंकि व्यापारियों ने बिक्री दरें बढ़ा दीं लेकिन खरीद दर में कोई खास बढ़ोतरी नहीं की। जिससे सोयाबीन तेल की कीमतों में बढ़ोतरी हुई लेकिन अनाज मंडियों में सोयाबीन की कीमतों पर कोई खास असर नहीं पड़ा।  

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