उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों की गन्ना मूल्य भुगतान की अजब दास्तान, मलकपुर मिल का भुगतान शून्य लेकिन परसेंडी का 99.95 फीसदी
उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में मलकपुर स्थित मोदी समूह की चीनी मिल ऐसी है जिसने सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक चालू सीजन के लिए गन्ना किसानों को शून्य भुगतान किया है। वहीं राज्य की बहराइच जिले के परसेंडी स्थित चीनी मिल ने गन्ना किसानों को 99.95 फीसदी भुगतान कर दिया है।
उत्तर प्रदेश की चीनी मिलें गन्ना किसानों के लिए किस तरह से हीरो और विलेन साबित हो रही हैं यह जानने के लिए मिलों द्वारा किसानों को चालू पेराई सीजन 2020-21 के लिए 12 मई, 2021 तक किये गये भुगतान का ब्यौरा देखने की जरूरत है जो चौंकाने वाली तसवीर पेश करता है। रुरल वॉयस की गन्ना मूल्य भुगतान पर स्टोरी सिरीज की तीसरी स्टोरी में इसका विश्लेषण किया गया है। राज्य की बागपत जिले में मलकपुर स्थित मोदी समूह की चीनी मिल ऐसी है जिसने सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक चालू सीजन के लिए गन्ना किसानों को शून्य भुगतान किया है। वहीं राज्य की बहराइच जिले के परसेंडी स्थित चीनी मिल ऐसी भी है जिसने गन्ना किसानों को 99.95 फीसदी भुगतान कर दिया है। असल में इन आंकड़ों के मुताबिक राज्य की कई निजी चीनी मिलें और चीनी मिल समूह ऐसे हैं जिन्होंने 90 फीसदी या उससे अधिक भुगतान कर दिया है। लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जिन्होंने 12 मई तक केवल डेढ़ फीसदी से 20 फीसदी तक का ही भुगतान किया है। वहीं उक्त तिथि तक राज्य के भुगतान का कुल औसत 62.29 फीसदी है। इन आंकड़ों से समझा जा सकता है कि राज्य के कुछ किसानों के लिए भुगतान की स्थिति बेहतर है तो कुछ के लिए आर्थिक संकट का कारण बन रहा है और 11,872.70 करोड़ रुपये के गन्ना मूल्य भुगतान के बकाये में राज्य की सभी चीनी मिलें एक जैसी स्थिति में नहीं हैं। भुगतान के बकाया में राज्य की चीनी निगम की मिलें और सहकारी चीनी मिलें भी कम भुगतान वाली श्रेणी का हिस्सा हैं।
पहले उन चीनी मिंलों और समूहों की बात करते हैं जो गन्ना मूल्य भुगतान में सबसे फिसड्डी हैं। राज्य में यदु समूह की दो चीनी मिलें हैं और उसने 12 मई तक सबसे कम केवल 1.5 फीसदी भुगतान ही किया है। इसके उपर किसानों का 114.41 करोड़ रुपये का भुगतान बनता है। उसने केवल 1.72 करोड़ रुपये का भुगतान 12 मई के आंकड़ों के मुताबिक किया था। उसके बाद इस पर 112.69 करोड़ रुपये का बकाया है। वहीं उमेश मोदी समूह की दो चीनी मिंलें हैं और इस ग्रुप ने केवल 1.75 फीसदी भुगतान ही किया है। इस समूह पर 617.06 करोड़ रुपये का बकाया है। मोदी की मलकपुर मिल ने चालू सीजन के लिए कोई भुगतान नहीं किया है और शून्य का रिकॉर्ड इसके खाते में ही है। मलकपुर चीनी मिंल पर किसानों का 378.76 करोड़ रुपये बकाया है। मोदी की दूसरी चीनी मिल मोदीनगर में है। इस चीनी मिल ने अभी तक 4.41 फीसदी भुगतान किया है। बड़े समूहों में राज्य में सबसे अधिक 14 चीनी मिलों वाले बजाज समूह ने अभी तक केवल 12.59 फीसदी भुगतान ही किया है। इसके उपर गन्ना किसानों का 4385.09 करोड़ रुपये का भुगतान बनता था जिसमें से केवल 549.96 करोड़ रुपये का ही भुगतान किया है और इस समूह पर किसानों का 3835.12 करोड़ रुपये बकाया हैं। वहीं सिंभावली समूह की तीन चीनी मिलों पर गन्ना किसानों का 607.49 करोड़ रुपये का बकाया है और इसने केवल 21.24 फीसदी भुगतान ही 12 मई तक किया है।
अब बात उन चीनी मिलों और चीनी मिल समूहों की जो गन्ना किसानों के लिए बेहतर साबित हो रहे हैं। राज्य में सबसे अधिक भुगतान बहराइच के परसेंडी में स्थित आर एस नेवतिया की चीनी मिल ने किया है। इस चीनी मिल ने 12 मई तक किसानों को 99.95 फीसदी भुगतान कर दिया और उक्त तिथि तक इससे उपर किसानों का मात्र 10.47 लाख रुपये का बकाया था। यह दिलचस्प बात है इसी उत्तर प्रदेश में मलकपुर चीनी मिल है जो जिसने इस सीजन का गन्ना किसानों का कोई भुगतान नहीं किया है और दूसरी ओर बहराइच के परसेंडा स्थित मिल है जो लगभग पूरा भुगतान कर चुकी है।
बड़े चीनी मिल समूहों में भी कई बेहतर भुगतान स्थिति में हैं। दस चीनी मिल वाले बलरामपुर समूह ने 93.38 फीसदी भुगतान 12 मई तक कर दिया था। वहीं तीन चीनी मिल वाले डालमिया समूह ने 94.86 फीसदी भुगतान कर दिया है। डीएससीएल की चार चीनी मिलें हैं और 12 मई तक उसने 92.22 फीसदी भुगतान कर दिया था। तीन चीनी मिल वाले द्वारिकेश समूह ने 92.88 फीसदी और सात चीनी मिल वाले त्रिवेणी समूह ने 89.43 फीसदी भुगतान कर दिया है। वहीं पांच चीनी मिल वाले धामपुर समूह ने 88.2 फीसदी भुगतान कर दिया है।
लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि राज्य के गन्ना विकास और चीनी उद्योग मंत्री सुरेश राणा के गृह जिले शामली की तीन चीनी मिलों ने मात्र 23.24 फीसदी भुगतान किया है। शामली स्थित सर शादीलाल चीनी मिल ने केवल 17 फीसदी भुगतान किया है। जिले की इन तीन चीनी मिलों पर 12 मई तक गन्ना किसानों का 843.55 करोड़ रुपये का बकाया था।
इसके साथ ही एक और तथ्य सामने आ रहा है कि राज्य सरकार के नियंत्रण वाली सहकारी और राज्य चीनी निगम की मिलों के मुकाबले निजी क्षेत्र का भुगतान औसत अधिक है। राज्य चीनी निगम की चीनी मिलों ने 12 मई तक केवल 45.92 फीसदी ही भुगतान किया है जबकि राज्य सरकार के प्रबंधन में ही चलने वाली सहकारी चीनी मिलों का भुगतान भी केवल 37.71 फीसदी है। निजी चीनी मिलों का भुगतान 64.75 फीसदी है। इससे साफ होता है कि राज्य सरकार गन्ना किसानों के भुगतान को लेकर खुद भी गंभीर नहीं है।