गन्ने और धान की राजनीतिक अर्थव्यवस्था उत्तर प्रदेश के 2022 विधान सभा चुनावों के लिए अहम
किसानों का उत्तर प्रदेश में तेजी से फैलता आंदोलन भाजपा मोदी-योगी जादू के आधार पर फिर से चुनाव जीतने की उम्मीद कर रही है। उसकी संभावनाओं पानी न फिर जाय इसके लिए गन्ना और धान की राजनीतिक अर्थव्यवस्था पर योगी सरकार को सबसे अधिक ध्यान देना होगा। जिसके लिए राज्य सरकार को बकाया गन्ना मूल्य भुगतान में तेजी और धान की खरीद प्रकिया को सुविधाजनक बनाकर किसानों के उनके उपज के मूल्य का शीध्र भुगतान करके किसानों की नराजगी को कम कर उनको अपने पाले में लाने की रणनीति पर काम करना होगा । किसान आंदोलन और विपक्ष के हमलों के जवाब के रूप में सरकार किसानों को अपने साथ लेने की कोशिश कर सकती है
साल 2022 में उत्तर प्रदेश होने विधान सभा चुनावों के लिए पांच महीने से भी कम समय बचा है। राष्ट्रीय राजनीति को सबसे अधिक प्रभावित करने वाले राज्य उत्तर प्रदेश के सिंहासन के लिए राजनीतिक दलों ने बड़ी लड़ाई के लिए कमर कसनी शुरू कर दी है । चुनाव के पहले अभी से ही राज्य में राजनीतिक महौल चुनाव गतिविधियों से भर गया है। किसान नेता केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं। किसान नेता केन्द्र और राज्य में सत्ता चला रही भाजपा और विशेष रूप से प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को अगले साल होने वाले चुनावों के पहले ही किसानों के मुद्दे पर सरकार की कमियां दिखा कर उनको घेर रहे हैं। हाल ही में लखीमपुर खीरी में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष मिश्रा पर अन्य लोगों के साथ मिलकर चार किसानों की कथित तौर पर हत्या का आरोप लगा है, इस घटना ने उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन में उबाल ला दिया है ।
इस दौरान भी मोदी सरकार नए कृषि कानूनों पर अडिग रही है, जिन्हें भविष्य के कृषि 'फार्म टू फोर्क' आपूर्ति श्रृंखला के लिए अनिवार्य बताया गया है और किसानों को उनके उत्पाद का बेहतर मूल्य मिलने के लिए इनको लाने की बात कही गई है। वहीं आंदोलनकारी किसान नेता यूपी में भाजपा के खिलाफ चुनाव प्रचार का उपयोग कर उसे अपने शक्ति प्रदर्शन के अवसर के रूप में देख रहे हैं।
किसानों के एक बड़े नेता राकेश टिकैत न केवल यूपी के मुजफ्फरनगर जिले से ताल्लुक रखते हैं और इस आंदोलन शामिल होने वाले ज्यादातर किसान पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी यूपी के जिलों से ताल्लुक रखते है। योगी आदित्यनाथ सरकार यूपी के किसानों के एक वर्ग के बीच असंतोष से पूरी अवगत है जो राज्य के कई विधानसभा क्षेत्रों में मतदान को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं।
विपक्षी दल किसानों की नराजगी को लपकने के लिए बाजीगरी दिखा रहे है आज के वक्त में भाजपा इस मुद्दे पर अंसमजस में है और विपक्षी दल भगवा पार्टी पर हमला करने के लिए किसानों के आंदोलन और महामारी की सामाजिक आर्थिक चुनौतियों का अच्छी तरह से उपयोग कर रहे हैं। इस तरह चलता रहा तो चुनाव आयोग द्वारा यूपी चुनाव का बिगुल बजाए जाने के पहले ही राजनीतिक हमले कटु होते जाएंगे। योगी आदित्यनाथ के पास इस महौल में आंदोलनकारी किसानों को शांत करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
किसानों के उत्तर प्रदेश में तेजी से फैलते आंदोलन के बीच भाजपा मोदी-योगी जादू के आधार पर फिर से चुनाव जीतने की उम्मीद कर रही है। उसकी संभावनाओं पानी ना फिर जाय इसलिए योगी सरकार को इस मझदार से पार पाने के लिए किसानों का जल्द से जल्द पिछले सत्र का बकाया गन्ना मूल्य भुगतान और धान की खरीद प्रकिया को सुविधा जनक बनाना होगा। साथ ही किसानों को उनकी उपज के मूल्य का शीध्र भुगतान करके उनकी नराजगी को कम करने का सबसे मुख्यमंत्री के पास गन्ना और धान की संयुक्त राजनीतिक अर्थव्यवस्था का एक कारगर उपाय है। विपक्ष की तरफ से हो रहे हमले के जवाब के रूप में सरकार किसानों अपने साथ ले सकती है । इस साल यूपी में गन्ना और धान का उत्पादन अधिक होने के अनुमान है। इस सीजन में किसान फसलों से मिलने वाली बंपर उपज अपने खेतों से खरीद केंद्रों पहुंचाने में व्यस्त रहेंगे । आने वाले चुनाव को देखते हुए इस दौरान किसानों के जल्द से जल्द उनके उपज के मूल्य के भुगतान से राज्य सरकार के प्रति नराजगी के बदले किसान को अपने पाले में लाने की संभावना देख सकती है।
योगी सरकार ने पिछले महीने नए गन्ना पेराई सत्र (अक्टूबर-सितंबर) 2021-22 के लिए गन्ने का राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) 25 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ाकर 350 रुपये प्रति क्विंटल करने की घोषणा की थी। अनुमान है कि राज्य के किसानों को सीजन में 4,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त कमाई होगी और कुल भुगतान के 38,000 करोड़ रुपये के रिकॉर्ड स्तर को छूने की उम्मीद है।
संयोग से ब्राजील और थाईलैंड में गन्ना के कम उत्पादन के अनुमानों के कारण आने वाले सीजन में भी चीनी निर्यात बाजार में तेजी दिख रही है। यह चीनी मिलों को अपने स्टॉक को कम करने और किसानों के बकाया को तेजी से निपटाने के लिए बहुत सकारात्मक परिस्थिति तैयार करेगा।
पश्चिमी यूपी में गन्ने की खेती अधिक प्रमुख है, जो राज्य में कृषि आंदोलन का केंद्र है। इसके अलावा, यूपी सरकार ने मौजूदा खरीफ विपणन सत्र में एमएसपी के आधार पर धान (सामान्य और ग्रेड ए धान के लिए क्रमशः 1,940 रुपये और 1,960 रुपये प्रति क्विंटल) की 70 लाख टन सरकारी खरीद का लक्ष्य रखा गया है। यह खरीदारी 1 अक्टूबर से शुरू हुई है और 28 फरवरी, 2022 तक जारी रहेगी। यह मतदान से पहले यूपी के किसानों को 13,000 करोड़ रुपये से अधिक के प्रत्यक्ष भुगतान में तब्दील हो जाएगा।
अकारण ही नहीं मोदी और योगी दोनों कृषि क्षेत्र की उपलब्धियों जैसे अधिक एमएसपी, पीएम किसान भुगतान, फसल ऋण छूट, और फसल बीमा आदि के बहुआयामी दृष्टिकोणों के माध्यम से ग्रामीण आय को बढ़ावा देने की बात करते है और स्वयं की सत्तारूढ़ भाजपा सरकार की प्रंशसा करते है और सरकार की किसान समर्थक नीतियों के बारे में बात करते हैं ।
यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अनुसार उनकी सरकार ने मार्च 2017 में सत्ता संभालने के बाद किसानों और दलितों सहित समाज के विभिन्न वर्गों को कुल 5 लाख करोड़ रुपये के प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) हुआ है। 2017 के बाद से 1.42 लाख करोड़ रुपये का गन्ना भुगतान उनके किसान समर्थक रुख का प्रमाण है, साथ ही गेहूं और धान फसलों की रिकॉर्ड खरीद भी है।
हालांकि कृषि मुद्दे कुल राजनीतिक परिदृश्य का केवल एक हिस्सा हैं, फिर भी घरेलू अर्थव्यवस्था की प्रकृति, जो मुख्य रूप से कृषि प्रधान है उसके रोजगार और अन्य क्षेत्रों पर सामाजिक आर्थिक प्रभाव को देखते हुए चुनावों के दौरान यह एक महत्वपूर्ण विषय है।