अधिक तापमान के कारण मक्का किसानों को झेलना पड़ा भारी नुकसान
पूर्वांचल के किसानों के सामने अधिक तापमान के चलते एक और समस्या आ गई है। मार्च अप्रैल में बोई जाने वाली जायद मक्के की फसल में बालियों में दाने नही बने हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश के किसानों का कहना है कि मक्के फसल में बालियां बन गई लेकिन इन बालियों में दाने नही बने हैं । इससे भारी नुकसान हुआ है।
इस साल अचानक तापमान बढ़ने से फसलों को काफी नुकसान हो रहा है। इस साल बढ़ते तापमान से गेहूं की उपज में 15 से 20 फीसदी के गिरावट दर्ज की गई थी। अब पूर्वांचल के किसानों के सामने अधिक तापमान के चलते एक और समस्या आ गई है। मार्चऔर अप्रैल में बोई जाने वाली मक्का की जायद फसल में बालियों में दाने नहीं बनने के मामले सामने आये हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश के किसानों का कहना है कि मक्का की फसल में बालियां तो बन गई लेकिन इन बालियों में दाने नही बने हैं इससे उनको भारी नुकसान हुआ है।
किसानों के मुताबिक सरसों, मटर और चना इत्यादि फसलों की कटाई करके जायद वाली मक्का की बुवाई मार्च - अप्रैल में करते है और हर साल अच्छी फसल होती है। लेकिन इस फसल अच्छी हुई बालियां भी बनी लेकिन बालियों में दाने नहीं पड़े है। गांव पराना पट्टी जिला वाराणसी के किसान फौजदार यादव ने रूरल वॉयस को बताया कि उन्होंने 15 से 20 अप्रैल के बीच में ढाई एकड़ में भुट्टे वाले मक्के की बुवाई की थी। उनकी मक्के की फसल का बढ़वार भी अच्छा हुआ और पौधे में बालियां भी लगी । लेकिन मक्के की बालियों में दाने नहीं बने है। जिससे उनको काफी नुकसान हुआ है । उन्होंने बताया कि हम हर साल मक्के फसल बोते थे ।हमारी फसल बहुत अच्छी होती थी। लेकिन इस साल बीज का भी दाम नहीं निकल पाया है।
इस संबध में संबध में रूरल वॉयस ने रानी लक्ष्मी बाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के फसल विज्ञान के कृषि वैज्ञानिक और प्रसार निदेशक डॉ. एस. एस. सिहं के साथ बातचीत की तो उन्होंने बताया कि जायद मक्के की फसल के परागण के वक्त तापमान 35 डिग्री सेल्सियस से नीचे रहता है तो कोई ज्यादा दिक्कत नहीं होती है। अगर इससे ऊपर तापमान चला जाता है तो परागण में दिक्कत हो जाती है । लेकिन इस साल जिस एरिया में मक्के के परागण के वक्त तापमान 40 या उससे अधिक था। उस एरिया में मक्के की फसल के परागकण झुलस गये औऱ नष्ट हो गये । इस काऱण से मक्के फसल में परागण नहीं हो पाया है औऱ मक्के की बालियों मे दाने नहीं बन पाएं है।
ग्राम मनोलेपुर जिला वाराणसी के राममनोहर सिंह ने रूरल वॉयस को बताया की वह हर साल अप्रैल में भुट्टे वाली मक्के की खेती करते हैं और अच्छी पैदावार मिलती है। लेकिन इस साल दो एकड़ में मक्के की फसल लगाई थी। लेकिन अधिक तापमान के कारण मक्के बालियों में दाने नहीं बने जिससे उन्हें काफी नुकसान हो गया । उन्होंने आगे बताया कि इस साल आम बाग में फलत कम आने से पहले से काफी नुकसान में थेऔर अब मक्के की खेती से और अधिक आर्थिक नुकसान हो गया है।
गांव पांडे चौरा जिला आजमगढ़ के किसान राम बचन राय ने कहा कि उनके पास सिंचाई की सुविधा थी। इस साल हमने चना की कटाई कर जायद वाले मक्के बुवाई मार्च में करके ज्यादा लाभ कमाना चाहा औऱ हमारी फसल भी अच्छी थी। हर पौधे में तीन से चार बालियां लगी थी, लेकिन बालियों में दाने नहीं पड़े । उन्होंने बताया कि हमारे एरिया के बहुत से किसानों के मक्के के फसल में दाने नहीं बने हैं।इससे किसानों का बहुत ही नुकसान हुआ है।
इस संबध में संबध में रूरल वॉयस ने रानी लक्ष्मी बाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के फसल विज्ञान के कृषि वैज्ञानिक और प्रसार निदेशक डॉ. एस. एस. सिहं के साथ बातचीत की तो उन्होंने बताया कि किसी भी फसल की अच्छी या खराब पैदावार में मौसम के तापक्रम का बड़ा योगदान होता है। उन्होंने बताया कि मक्का का फूल निकलने के समय और ग्रेन सेटिंग के वक्त एक निश्चित तापमान का रहना जरूरी है, क्योंकि मक्का में दाने बनने के लिए परागण होना जरूरी है। लेकिन इस साल अचानक तापमान में बढ़ोतरी हो गई। इससे मक्का में परागण की क्रिया बाधित हुई और बालियों में दाने नहीं बन पाए ।
डॉ एस. एस. सिंह ने कहा कि किसी भी फसल के अंकुरण , बढ़वार, और परागण और दाना सेट होने के लिए एक निश्चित तापमान होता है और उस निश्चित तापमान पर ही बीज अंकुरित होते हैं, बढ़वार करते हैं , परागण होता है औऱ बालियों में दाने सेट होते है। इसमे भी परागण और दाना सेट होने की अवस्था तापमान के प्रति बेहद संवेदनशील होती है ।अगर इस अवस्था पर तामपान में अंतर आता है तो फसल में परागण नहीं होता है और दाने नहीं बनते हैं । इससे फसल की उपज में गिरावट होती है।