उत्तराखंड में सेब किसानों का संकट, मुआवजे से मुकर गई बीमा कंपनी

किसानों का आरोप है कि फसल बर्बाद होने के बाद बीमा भुगतान से बचने के लिए कंपनी बीमा पॉलिसी को निरस्त कर रही है जबकि बीमा कंपनी इसके लिए उत्तराखंड के जटिल भू-बंदोबस्त को जिम्मेदार ठहरा रही है। 

उत्तराखंड में सेब किसानों का संकट, मुआवजे से मुकर गई बीमा कंपनी

- देहरादून से संजीव की रिपोर्ट 

उत्तराखंड में उत्तरकाशी जिले के सेब उत्पादक किसानों के लिए अगस्त का महीना सामान्य तौर पर अपनी सेब की फसल मंडी तक पहुंचाने का समय होता है। लेकिन इस बार इसके बजाय यहां के सेब उत्पादक किसान, प्रदेश के उद्यान मंत्री से लेकर फसल बीमा कंपनी के चक्कर काट रहे हैं। बीमा कंपनी ने दिसंबर व जनवरी महीने में इन किसानों की सेब की फसल का बीमा किया था, लेकिन अब आठ महीने के बाद किसानों का बीमा तकनीकी आधार पर निरस्त किया जा रहा है। जबकि इस बीच अप्रैल माह में हुई ओलावृष्टि से किसान अपनी लाखों की फसल गंवा चुके हैं। किसानों का आरोप है कि फसल बर्बाद होने के बाद बीमा भुगतान से बचने के लिए कंपनी बीमा पॉलिसी को निरस्त कर रही है जबकि बीमा कंपनी इसके लिए उत्तराखंड के जटिल भू-बंदोबस्त को जिम्मेदार ठहरा रही है। 

हिमाचल प्रदेश से सटे उत्तरकाशी जिले में मोरी, पुरोला, नौगांव ब्लॉक को उत्तराखंड के सेब उत्पादक क्षेत्र के रूप में जाना जाता है। हिमाचल जैसी जलवायु और उद्यान संस्कृति होने के कारण यहां किसान सेब की खेती करते हैं। किसान अपनी उपज को सुरक्षित करने के लिए केंद्र और राज्य सरकार के सहयोग से चल रही फसल बीमा योजना के तहत बीमा करवाते हैं। उत्तरकाशी सहित उत्तराखंड के दस जिलों में इस साल फसल बीमा के लिए राज्य सरकार ने एसबीआई जनरल इंश्योरेंस कंपनी से अनुबंध किया हुआ है। 

इस साल ओलावृष्टि से सेब के बगीचों में हुआ नुकसान 

क्यों खारिज हुआ बीमा?

नौगांव ब्लॉक में तियां गांव के प्रगतिशील किसान संजय थपलियाल ने रूरल वॉयस को बताया कि क्षेत्र के किसानों ने दिसंबर महीने में सेब की फसल का बीमा करवाते हुए  कंपनी को पूरा प्रीमियम भी दे दिया था। लेकिन अब अगस्त महीने में कंपनी की तरफ से बहुत से किसानों की पॉलिसी या तो निरस्त कर दी गई या फिर उसमें 90 प्रतिशत तक कटौती करते हुए, शेष प्रीमियम वापस कर दिया है। थपलियाल कहते हैं कि इस बीच मार्च-अप्रैल में हुई ओलावृष्टि से किसानों की फसल को भारी नुकसान उठाना पड़ा था। अब किसान फसल बीमा से भरपाई की उम्मीद कर रहे थे, लेकिन कंपनी ने सात से आठ महीने बाद तकनीकी आधार पर बीमा खारिज कर दिया। किसानों को इस कारण तीन से चार लाख रुपए तक का नुकसान उठाना पड़ रहा है।

उद्यान स्वामियों ने देहरादून में प्रदेश के कृषि व उद्यान मंत्री गणेश जोशी से मुलाकात कर इस मामले में हस्तक्षेप की मांग की है। जिसके बाद जोशी ने सभी पक्षों की बैठक की और किसानों का पक्ष जायज करार देते हुए बीमा कंपनी को मुआवजा देने को कहा है। इस बारे में उन्होंने केंद्रीय कृषि मंत्री को भी पत्र लिखा है। 

बिखरी जोत से जटिल हुई समस्या

इस बारे में एबीआई जनरल इंश्योरेंस कंपनी के स्टेट हेड विपुल डिमरी ने बीमा निरस्त किए जाने या बीमा राशि में कटौती किए जाने की बात स्वीकार करते हुए कहा कि ऐसा मुख्य तौर पर किसानों के स्तर से जमीन के कागज पूरे नहीं लगाए जाने के कारण हुआ है। डिमरी ने बताया कि पहाड़ में किसानों की जमीनें अलग-अलग जगह बिखरी हुई हैं। फसल बीमा योजना के तहत कॉमन सर्विस सेंटर (सीएससी) से आवेदन के समय, यह लापरवाही बरती गई कि किसानों के सभी खसरे नंबर इसमें दर्ज नहीं किए गए। इस कारण सत्यापन के समय ज्यादातर किसानों की जमीन कम पाई गई। उदाहरण के लिए, यदि किसी किसान के पास पचास नाली जमीन है, लेकिन बीमा के लिए आवेदन के समय पांच नाली जमीन के ही दस्तावेज अपलोड किए गए। इस कारण उक्त किसान को प्रति नाली छह पेड़ के हिसाब से सिर्फ 30 पेड़ों पर ही बीमा कवर दिया गया। जबकि शेष बीमा प्रीमियम को लौटा दिया गया है।

उत्तराखंड में चकबंदी न होने और किसानों की जमीनें संयुक्त खातेदारी में होने की वजह से भी इस तरह की समस्याएं आती हैं। लेकिन सवाल यह है कि बीमा कंपनी को यह समस्या फसल बीमा का प्रीमियम लेते समय ध्यान में क्यों नहीं आई। जब खराब फसल का मुआवजा देने की बारी आई है, तब किसानों को बीमा क्यों खारिज किया जा रहा है।   

सेब किसानों की समस्या के बारे में अधिकारियों के साथ बैठक करते उत्तराखंड के कृषि मंत्री गणेश जोशी

इंटरनेट नेटवर्क की भी समस्या

किसान संजय थपलियाल बताते हैं कि सीएससी के जरिए 500 एमबी की फाइल ही अपलोड हो पा रही हैं। इस कारण बिखरी जोतों के सभी पेपर अपलोड ही नहीं हो पाए। थपलियाल सवाल उठाते हैं कि अगर जमीन के कागजात की समस्या थी तो बीमा कंपनी ने बीते तीन-चार साल से इस पर आपत्ति क्यों नहीं जताई। यह समस्या प्रीमियम जमा कराने के समय ही बतानी चाहिए थी। थपलियाल के मुताबिक, बीमा कंपनी सरकार द्वारा जारी उद्यान कार्ड के आधार पर खराब फसलों का मुआवजा दे सकती है। फिर बीमा खारिज क्यों किया जा रहा है?

तत्काल बीमा राशि जारी करने के निर्देश

उत्तराखंड के कृषि मंत्री गणेश जोशी ने विभागीय अधिकारियों और बीमा कंपनी को तत्काल बीमा राशि किसानों को जारी कराने के निर्देश दिए हैं। इस बाबत कृषि मंत्री ने कृषि महानिदेशक, उद्यान निदेशक तथा एसबीआई बीमा कंपनी के स्टेट हेड के साथ बैठक की। कृषि मंत्री ने महानिदेशक को तत्काल अपने स्तर से कार्यवाही करने और ब्लॉक, तहसील स्तर पर बीमा कंपनी द्वारा अधिकारी व कर्मचारी की तैनाती करवाने को कहा है। उनका कहना है कि किसानों ने अतिवृष्टि, सूखा या ओलावृष्टि से फसलों की सुरक्षा के लिए बीमा कराया है तो उन्हें इसका मुआवजा मिलना ही चाहिए। इस बारे में उन्होंने केंद्रीय कृषि मंत्री को भी पत्र लिखा है और केंद्र सरकार से सरकारी पोर्टल को पुनः खोलने का अनुरोध किया है ताकि सेब की फसल का बीमा पुनः हो सके।

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