आपदा की पूर्व चेतावनी तो दूर सीएम को भी सोशल मीडिया से पता चला!
जिस आपदा की चेतावनी पहले ही मिलनी चाहिए थी, उसके बारे में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री को भी सोशल मीडिया से पता चला।
रविवार सुबह करीब साढ़े 11 बजे देश को सोशल मीडिया के जरिये उत्तराखंड के चमोली जिले में आए सैलाब की जानकारी मिली। भयानक जल प्रलय के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने लगे। पता चला कि जोशीमठ के पास तपोवन रैणी क्षेत्र में संभवत: ग्लेशियर टूटने या हिम-स्खलन से नदी में पानी का बहाव अचानक बहुत तेज हो गया है। इससे ऋषिगंगा हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया। वहां कम से कम 30 मजदूर लापता हैं। धौलीगंगा पर एनटीपीसी के निर्माणाधीन तपोवन पावर प्रोजेक्ट को भी नुकसान पहुंचा है। आपदा में लगभग 125 लोग लापता बताये जा रहे हैं। कई लोगों के मलबे में दबे होने की आशंका है।
फिलहाल राहत व बचाव कार्य जारी हैं। आईटीबीपी के जवानों ने बड़ी मशक्कत के बाद 16 लोगों को तपोवन सुरंग से सुरक्षित बाहर निकाला। हालांकि, दोपहर बाद कर्णप्रयाग में पानी के बहाव और जलस्तर की स्थिति से बाढ़ की सम्भावना कम हो गई है। लेकिन इस आपदा ने चेतावनी प्रणाली की खामियों को उजागर कर दिया है। आपदा के बारे में प्रेस वार्ता करते हुए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बताया कि खुद उन्हें इसकी जानकारी सुबह 11.20 बजे सोशल मीडिया के माध्यम से मिली। मुख्यमंत्री का कहना है कि आपदा करीब 10.45 बजे आई और तुरंत राहत व बचाव का काम शुरू हो गया। वे खुद आपदा प्रभावित क्षेत्रों में पहुंचे और राहत कार्यों को देखा।
चमोली आपदा के बारे में सुबह सवा 11 बजे से ही सोशल मीडिया पर वीडियो और मैसेज आने लगे थे। लेकिन उत्तराखंड सरकार की ओर से इस बारे में सूचनाएं करीब 11.30 बजे से आनी शुरू हुईं। हालांकि, राज्य और केंद्र सरकार के दल तुरंत मौके पर पहुंचकर आपदा में फंसे लोगों को बचाने में जुट गये। लेकिन इतनी बड़ी आपदा की जानकारी सरकार को भी सोशल मीडिया से मिलना समूचे आपदा प्रबंधन पर सवाल खड़े करता है। जिस राज्य ने 2013 में केदारनाथ जैसी भीषण आपदा देखी है। जहां कई साल से आपदा पूर्व चेतावनी प्रणाली विकसित करने पर जोर दिया जा रहा है, वहां आपदा की पहले से चेतावनी न मिलना कई सवाल खड़े करता है।
उत्तराखंड में आपदा प्रबंधन और पब्लिक पॉलिसी के क्षेत्र में सक्रिय अनूप नौटियाल का कहना है कि हमें देखना चाहिए कि राज्य में आपदा पूर्व चेतावनी प्रणाली की क्या स्थिति है। ऐसी कोई प्रणाली है भी या नहीं। अगर है तो वह राज्य के किन क्षेत्रों और किस तरह की आपदाओं को कवर करती है। नौटियाल का कहना है कि आज जो एकमात्र चेतावनी प्रणाली कारगर रही वो सोशल मीडिया था, जिसने लोगों को अलर्ट किया। सैटेलाइट, राडार आदि से हमें कोई सूचना या चेतावनी नहीं मिली।
रविवार सुबह 11 बजे से ही चमोली आपदा के वीडियो सोशल मीडिया पर फैलने शुरू हो गए थे। लेकिन आपदा को लेकर उत्तराखंड सरकार की ओर से पहली सूचना सुबह 11 बजकर 29 मिनट पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के ट्वीट के रूप में आई। जिस चमोली में जिले आपदा आई, वहां के पुलिस-प्रशासन ने 11.42 बजे अलकनंदा नदी किनारे रहने वाले लोगों को सुरक्षित स्थानों पर जाने की सूचना दी। लगता है जिला प्रशासन भी सोशल मीडिया देखकर ही जागा। अगर राज्य सरकार की मानें तो आपदा 10.45 बजे आई, तब भी जिला प्रशासन सूचना देने में करीब एक घंटा लेट था। वैसे, कई स्थानीय लोगों का मानना है कि आपदा सुबह 10 बजे के आसपास आई। उत्तराखंड जनसंपर्क विभाग ने तो ट्विटर पर आपदा के बारे में पहली सूचना दोपहर 12.22 बजे जारी की।
चमोली आपदा के बारे में देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के पूर्व वैज्ञानिक और भूगर्भशास्त्री डॉ. डीपी डोभाल ने बताया कि ऐसा लगता है कि हिम-स्खलन (एवलांच) से का मलबा जमा होने के कारण नदी का पानी इकट्ठा हुआ, जो किसी वजह से टूटकर बह गया। क्योंकि वहां अभी न बारिश पड़ रही है और न ही बर्फबारी हो रही है, इसलिए यह पहले से जमा पानी हो सकता है। सटीक जानकारी पूरी जांच-पड़ताल के बाद ही सामने आएगी।
इस आपदा की जानकारी पहले से क्यों नहीं मिल पाई? इस बारे में डॉ. डोभाल का कहना है कि चेतावनी प्रणाली भी वहीं कारगर है, जहां लोग आते-जाते रहते हैं और लगातार मॉनिटरिंग होती है। चमोली जिले के जिस तपोवन-रैणी इलाके में यह संभावित हिम-स्खलन हुआ, वह बहुत दुर्गम क्षेत्र है। इसलिए जब पानी का तेज बहाव आया, तभी आपदा की जानकारी मिल पायी। केंद्रीय जल आयोग इस आपदा को ग्लेशियर आउटबर्स्ट का नतीजा मान रहा है। इसमें ग्लेशियर पर एक झील बन जाती है, जिसके टूटने या फैलने से बाढ़ और मलबा तबाही मचाते हैं। आयोग का कहना है कि जोशीमठ के पास अलकनंदा नदी का जलस्तर 2 घंटे में 16 मीटर तक उठा और फिर घंंटे भर में 11 मीटर तक आ गया।
चमोली आपदा के कारणों को लेकर भी अभी स्थिति पूरी तरह स्पष्ट नहीं है। राज्य सरकार इसे एवलांच या ग्लेशियर टूटने की घटना मान रही है। चमोली पुलिस-प्रशासन का कहना है कि तपोवन रैणी क्षेत्र में ग्लेशियर आने के कारण नदी का जलस्तर तेजी से बढ़ा। ग्लेशियर आने का क्या मतलब है? ग्लेशियर टूटना या फिर ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF)? ठंड में ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट के दावे से कई जानकार सहमत नहीं हैं। 2013 में केदारनाथ त्रासदी के लिए भी ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड को वजह माना गया था।
आपदा के कारणों के बारे में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का कहना है कि इस बारे में विशेषज्ञ ही बता सकते हैं। फिलहाल उनका पूरा ध्यान लोगों का जीवन बचाने पर है। इस बीच, राहत की बात यह है कि अलकनंदा में आया उफान थमता दिख रहा है। शाम 7 बजे के आसपास पौड़ी गढ़वाल के श्रीनगर में अलकनंदा नदी खतरे के निशान से काफी नीचे बह रही थी। केंद्रीय जल आयोग के अनुसार, ग्लेशियल लेक बर्स्ट का असर केवल जोशीमठ तक रहा।
आपदा के कारणों का पता लगाने के लिए डीआरडीओ के विशेषज्ञों का दल कल उत्तराखंड पहुंच रहा है। आपदा की वजह कुछ भी हो, मगर एक बात स्पष्ट है कि इस आपदा का पता लोगों को किसी चेतावनी प्रणाली से नहीं बल्कि सोशल मीडिया से चला। इससे आपदाओं में सोशल मीडिया की अहमियत और सरकारी सुस्ती का पता चलता है।