छत्तीसगढ: मंडी एक्ट में बदलाव कर भूपेश बघेल ने चला दांव, राज्यपाल के पाले में गेंद
छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार ने केंद्र के तीन कृषि कानूनों की काट के लिए अक्टूबर महीने में ही विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर मंडी संशोधन विधेयक लाकर किसानों का दिल जीतने और अपने पाले में करने की रणनीति अपना ली। राजभवन में विधेयक के अटकने से सरकार की मंशा पर सवाल भी उठाने लगे हैं।
रायपुर से रवि भोई
छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार ने केंद्र के तीन कृषि कानूनों की काट के लिए अक्टूबर महीने में ही विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर मंडी संशोधन विधेयक लाकर किसानों का दिल जीतने और अपने पाले में करने की रणनीति अपना ली। राजभवन में विधेयक के अटकने से सरकार की मंशा पर सवाल भी उठाने लगे हैं। वैसे भी राज्य के किसानों से सरकार समर्थन मूल्य से करीब साढ़े छह सौ अधिक मूल्य देकर धान की खरीदी कर रही है। 2500 प्रति क्विंटल की दर से धान खरीदने वाला छत्तीसगढ़ का देश में एकमात्र राज्य है। धान का अधिकतम मूल्य मिलने से किसान गदगद हैं , यही वजह है कि मोदी सरकार के कृषि कानूनों में बदलाव के खिलाफ किसानों के गुस्से की आंच दिखाई नहीं पड़ रही है। जरूर कुछ किसान संगठन और कम्युनिस्ट पार्टी के लोग राष्ट्रीय स्तर के किसान आंदोलन से जुड़कर बिगुल बजा रहे हैं।
कृषि वैज्ञानिक डॉ. संकेत ठाकुर का मानना है कि केंद्र के नए कृषि कानून लागू होते हैं तो उसका प्रभाव तो यहां निश्चित रूप से पड़ेगा , भले अभी किसानों को यह समझ में नहीं आ रहा है। भूपेश बघेल सरकार द्वारा लाए गए नए मंडी कानून से केंद्र के नए कृषि कानून निष्प्रभावी नहीं होने वाले हैं, उलटे भूपेश सरकार ने डीम्ड मंडी की बात कर मोदी सरकार के कृषि कानून का एकतरह से समर्थन कर दिया है। छत्तीसगढ़ सरकार ने कृषि उपज मंडी कानून में बदलाव कर विधानसभा में विधेयक पारित कर राज्यपाल को भेज दिया है। मगर राज्यपाल अनुसूईया उइके के पास विधेयक अटका हुआ है। राज्यपाल के हस्ताक्षर के बाद ही कानून बनेगा। छत्तीसगढ़ के कृषि मंत्री रविंद्र चौबे कहते हैं राज्य के मंडी कानून में प्रस्तावित संशोधन से गरीबों, मजदूरों और उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा हो सकेगी। उनका कहना है -केंद्र सरकार के नए कानूनों से कृषि व्यवस्था में पूंजीपतियों का नियंत्रण बढ़ जाएगा। इसकी वजह से महंगाई बढ़ने, समर्थन मूल्य में धान खरीदी और सार्वभौमिक वितरण प्रणाली के प्रभावित होने की आशंका है।
छत्तीसगढ़ में नए कानून में सरकार ने निजी मंडियों, गोदामों और खाद्य प्रसंस्करण कारखानों को डीम्ड मंडी घोषित करने का प्रावधान कर दिया है। इस नई व्यवस्था से निजी मंडियों पर सरकारी नियंत्रण बढ़ जाएगा। सरकार की कोशिश है कि जहां कहीं भी कृषि उपजों की खरीद बिक्री हो, वहां मंडी कानून लागू हो ताकि किसानों को धोखाधड़ी से बचाया जा सके। कृषि वैज्ञानिक डॉ. संकेत ठाकुर का कहना है छत्तीसगढ़ का विधेयक राज्य सरकार को निजी मंडियों से टैक्स वसूलने, जांच करने, रिकार्ड देखने, लेखा-जोखा की जांच करने के बहाने सरकारी छापा मारने का अधिकार देता है, लेकिन किसानों को किसी भी तरह के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर उपज विक्रय की कोई गारंटी नहीं देता। यह कांट्रैक्ट फार्मिंग को औपचारिक स्वरूप देता है। जिन तीन कानूनों की खिलाफत मुख्यमंत्री कर रहे हैं उन तीनों पर यह विधेयक मौन है और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर भी इसी तरह चुप्पी बरकरार है। इससे छत्तीसगढ़ के किसानों को कोई फायदा होता नहीं दिख रहा है। छत्तीसगढ़ किसान-मजदूर महासंघ के तेजराम विद्रोही, रूपन चंद्राकर, जुगनू चंद्राकर का कहना है छत्तीसगढ़ को पंजाब की तर्ज पर न्यूनतम समर्थन मूल्य में खरीदी को लेकर एक कड़ा कानून लाया जाना चाहिए था, पंजाब के कानून में एमएसपी से कम की खरीदी पर संबंधित व्यापारिक प्रतिष्ठान, कारपोरेट और मंडी अधिकारियों पर आपराधिक प्रकरण दर्ज करने का प्रावधान होता।
छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच के अध्यक्ष राजकुमार गुप्त का कहना है न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी न देकर सरकार ने किसानों की भावनाओं को आहत किया है। मंच ने न्यूनतम मूल्य की स्पष्ट गारंटी देने वाले कानूनी प्रावधानों की मांग की है। दूसरी तरफ मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का कहना है संसद में जो कानून पारित होता है तो समवर्ती सूची वाले विषयों पर केंद्र का कानून ही मान्य होगा, हम उसे टच नहीं कर रहे हैं। हमारी कोशिश है कि उन कानूनों से छत्तीसगढ़ के किसानों का नुकसान न हो। बहरहाल छत्तीसगढ़ में मंडी कानून संशोधन विधेयक लाए जाने केंद्र के कानून से हटकर चलने की मंशा सरकार ने जाता दी है। राज्य के भाजपा नेता केंद्र के कृषि कानून से किसानों को किसी तरह का नुकसान न होने की बात कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ राज्य सहकारी बैंक के पूर्व अध्यक्ष और भाजपा नेता अशोक बजाज का कहना है केंद्र के नए कृषि कानून लागू होने के बाद नई पीढ़ी खेती की तरफ आकर्षित होंगे। इस कानून से किसानों को किसी प्रकार की हानि नहीं होगी।
किसान नेता वीरेंद्र पांडे कहते हैं केंद्र सरकार नए कानून के जरिए लोगों को भ्रमित कर रही है। किसानों को न्यूनतम मूल्य की गारंटी मिलनी चाहिए। अभी भी किसानों को खुले बाजार में बिक्री की छूट है। श्री पांडे का कहना है कि भाजपा शासित हरियाणा और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री ही अपने राज्य में दूसरे राज्यों की फसल को लाने के खिलाफ बोल रहे हैं , तो फिर ओपन मार्केट का लाभ किसानों को कैसे मिलेगा ? किसान नेता ललित चन्द्रनाहू का कहना है राज्य के किसान अभी भले कुछ नहीं बोल रहे हैं, लेकिन कानून के लागू होने से समस्या आएगी। छत्तीसगढ़ किसान सभा के राज्य अध्यक्ष संजय पराते और महासचिव ऋषि गुप्ता का कहना है केंद्र के कृषि कानून के खिलाफ आंदोलन अलग-अलग रूपों में चलता रहेगा। दोनों का आरोप है कि कारपोरेट के कहने पर ही केंद्र सरकार ने यह कानून लाया है।
छत्तीसगढ़ में केंद्र के कृषि कानून को लेकर भले बवाल नहीं मचा है, पर कुछ संगठन और लोग राष्ट्रीय स्तर पर चल रहे आंदोलन के साथ खड़े दिख रहे हैं। आंदोलन के चलते जान देने वालों की याद और सम्मान में दीये और मोमबत्ती जलाने के अलावा जुलुस भी निकाला गया। छत्तीसगढ़ में किसान आंदोलन की नींव तो पड़नी शुरू हो गई , पर आम किसान की जगह राजनीतिक ज्यादा दिखती है। असल किसान खड़े होंगे तब वास्तविकता सामने आएगी।
मंडी संशोधन विधेयक में क्या है प्रावधान
- राज्य सरकार कृषि उपज के क्रय-विक्रय, प्रसंस्करण या विनिर्माण, कोल्ड स्टोरेज, साइलोज, भण्डागार, इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग तथा लेन-देन प्लेटफार्म और ऐसे अन्य स्थान अथवा संरचनाओं को डीम्ड मंडी घोषित कर सकेगी।
- मण्डी समिति का सचिव या बोर्ड या मण्डी समिति का कोई भी अधिकारी या सेवक और राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित अधिकारी या सेवक, किसी ऐसे व्यक्ति से, जो किसी भी किस्म की अधिसूचित कृषि उपज का व्यापार करता हो उसके रजिस्टर और व्यापार से जुड़े दस्तावेज मांग सकता है।
- ऐसे अधिकारी व्यापारी के कार्यालय, व्यापार के स्थान, भण्डागार, स्थापना, प्रसंस्करण या विनिर्माण इकाई या वाहनों का निरीक्षण कर सकेंगे।
- ऐसे अधिकारी को अगर संदेह है कि संबंधित व्यापारी ने निर्धारित प्रारूप में लेखे एवं दस्तावेज नहीं रखे हैं अथवा गलत लेखा रख रहा है तो दस्तावेजों को जब्त कर सकेगा।
- ऐसा अधिकारी किसी भी व्यापार के स्थान, भण्डागार, कार्यालय, स्थापना, गोदाम, प्रसंस्करण या विनिर्माण इकाई या वाहन में, जिसके संबंध में ऐसे अधिकारी या सेवक के पास यह विश्वास करने का कारण हो कि उनमें ऐसा व्यक्ति अपने व्यापार के लेखे, रजिस्टर या दस्तावेज, प्रारूप या अपने व्यापार के संबंध में अधिसूचित कृषि उपज के स्टॉक रखता है या उस समय रखा है में तलाशी ले सकेगा।
- अधिसूचित कृषि उपज के क्रय-विक्रय से संबंधित लेखा पुस्तकें या अन्य दस्तावेज, प्रारूप गलत पाए जाने पर संबंधित व्यक्ति के विरूद्ध सक्षम अधिकारी वाद दायर कर सकेगा।
- राज्य सरकार, अधिसूचित कृषि उपज के विक्रय में कृषकों को अपने उत्पाद को स्थानीय मंडी के साथ-साथ प्रदेश की अन्य मंडियों तथा अन्य राज्यों के व्यापारियों को गुणवत्ता के आधार पर पारदर्शी नीलामी प्रक्रिया के माध्यम से बेचकर बेहतर कीमत प्राप्त करने तथा समय पर आनलाईन भुगतान हेतु इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग प्लेटफार्म की स्थापना कर सकेगी।
- लेखा-पुस्तकें या अन्य दस्तावेज, प्रारूप में संधारित मात्रा से अधिक या कम अधिसूचित कृषि उपज रखता हो, तो वह दोष सिद्धि पर 3 महीने का कारावास अथवा पांच हजार रुपये तक का जुर्माना अथवा दोनों से दंडित होगा.दोबारा ऐसा होने पर छह महीने का कारावास और 10 हजार रुपये जुर्माने का प्रावधान होगा।