आयात शुल्क बढ़ने से मंहगा हुआ सोयाबीन तेल, सोयाबीन का भाव अभी भी एमएसपी से कम

केंद्र सरकार ने द्वारा खाद्य तेलों पर आयात शुल्क बढ़ाने के बाद भी सोयाबीन की कीमतें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे चल रही हैं। उल्टा इसका फायदा व्यापारियों और खाद्य तेल कंपनियों को हो रहा है, पिछले एक महीने में खाद्य तेलों की कीमतें 15 फीसदी बढ़ी हैं

आयात शुल्क बढ़ने से मंहगा हुआ सोयाबीन तेल, सोयाबीन का भाव अभी भी एमएसपी से कम

केंद्र सरकार द्वारा खाद्य तेलों पर आयात शुल्क बढ़ाने के बाद भी सोयाबीन किसानों को उपज का सही दाम नहीं मिल रहा है। मध्य प्रदेश की मंडियों में सोयाबीन का दाम अभी भी न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे बना हुआ है। मंडियों में किसानों को सोयाबीन का औसत दाम 4000 से 4600 रुपये प्रति क्विंटल मिल रहा है, जबकि केंद्र सरकार ने खरीफ मार्केटिंग सीजन 2024-25 के लिए सोयाबीन का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 4892 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। प्रदेश में 25 अक्टूबर से सोयाबीन की सरकारी खरीद शुरू होनी है, किसान कम कीमतों को लेकर लगातार अपनी नाराजगी जाहिर कर रहे हैं।  

दूसरी ओर, खाद्य तेलों पर आयात शुल्क बढ़ने के बाद पिछले एक महीने सोयाबीन तेल की कीमतें लगभग 15 फीसदी बढ़ गई हैं। पिछले महीने, 13 सितंबर को केंद्र सरकार ने खाद्य तेलों पर सीमा शुल्क शून्य से बढ़कर 20 फीसदी कर दिया था। केंद्रीय उपभोक्ता मामले विभाग के आंकड़ों के अनुसार, देश में 13 सितंबर को पैक्ड रिफाइंड सोयाबीन तेल का दाम 118.81 रुपये प्रति लीटर था, जो 18 अक्टूबर को बढ़कर 136.61 रुपये प्रति लीटर हो गया है। खाद्य तेलों के सस्ते आयात के कारण सोयाबीन जैसी फसलों की कीमतें इस साल अगस्त महीने में 10 साल के न्यूनतम स्तर पर गिर गईं थी, जिससे किसानों को सोयाबीन की उपज का दाम एमएसपी से भी कम मिल रहा था। 

सोयाबीन की कीमतों में गिरावट और सरकारी मदद न मिलने के कारण मध्य प्रदेश के सोयाबीन उत्पादक किसान लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। हालांकि, खाद्य तेलों पर सीमा शुल्क बढ़ाने के बाद भी सोयाबीन की कीमतें एमएसपी से कम हैं, जबकि इस फैसले के बाद खाद्य तेलों की कीमतों में बढ़ोतरी दर्ज की गई है। 

मध्य भारत कंसोर्टियम ऑफ एफपीओ के सीईओ योगेश द्विवेदी ने रूरल वॉयस को बताया कि मध्य प्रदेश की मंडियों में नई सोयाबीन की आवक शुरू हो गई है, लेकिन कीमतें अभी भी एमएसपी से कम हैं। सरकार ने पिछले महीने खाद्य तेलों पर आयात शुल्क बढ़ाने का फैसला किया था। इससे सोयाबीन की कीमतों में कुछ सुधार तो हुआ, लेकिन फिर भी दाम एमएसपी से कम हैं। इस फैसले का सबसे ज्यादा फायदा व्यापारियों को हो रहा है। व्यापारियों ने बिक्री दर तो बढ़ा दी है, जबकि खरीद दर में बढ़ोतरी नहीं की है। इससे सोयाबीन तेल की कीमतें तो बढ़ी हैं, लेकिन अनाज मंडियों में सोयाबीन की कीमतों पर कोई खास असर नहीं पड़ा है।

भारतीय किसान यूनियन (टिकैत), मध्य प्रदेश के नेता विजय सिंह मीणा ने कहा कि किसानों के लिए सोयाबीन की मौजूदा कीमतें इतनी कम हैं कि उनकी लागत निकालना भी मुश्किल हो रहा है। उन्होंने कहा कि आयात शुल्क बढ़ाने से किसानों को कोई राहत नहीं मिली है, बल्कि इसका फायदा व्यापारियों और खाद्य तेल कंपनियों को हो रहा है। वर्तमान में सोयाबीन के दाम 3800 से 4500 रुपये प्रति क्विंटल के बीच है, जो अभी भी एमएसपी से कम हैं। उन्होंने कहा कि जब तक सरकार सोयाबीन का दाम 6000 रुपये प्रति क्विंटल नहीं तय करती, तब तक किसान अपना आंदोलन जारी रखेंगे।

गौरतलब है इस साल मध्य प्रदेश में सोयाबीन की कीमतें पिछले 10 साल के निचले स्तर पर गिरकर 3500 से 4000 रुपये प्रति क्विंटल तक गिर गई थीं, जिसके चलते किसान विरोध-प्रदर्शन पर उतर आए थे। पिछले डेढ़ महीने से राज्य के किसान सोयाबीन का भाव 6000 रुपये प्रति क्विंटल करने की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं। किसानों के आक्रोश को देखते हुए सरकार को सोयाबीन की खरीद करने और खाद्य तेलों पर आयात शुल्क बढ़ाने का निर्णय लेना पड़ा। फिलहाल, सोयाबीन की कीमतें 4000 से 4600 रुपये प्रति क्विंटल के बीच आ गई हैं, लेकिन ये अभी भी एमएसपी से कम हैं।

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