पंजाब में धान की हाइब्रिड किस्मों पर प्रतिबंध से बीज कंपनियां मुश्किल में, जबकि कई राज्यों में रकबा बढ़ा
पंजाब सरकार की ओर से जारी आदेश के मुताबिक, पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (PAU) लुधियाना की सिफारिश के अनुसार खरीफ सीजन 2025 के दौरान धान की किस्म पीआर-44 और हाइब्रिड बीजों की बिक्री और बुवाई पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाया जाता है। हाइब्रिड किस्मों पर प्रतिबंध के पीछे इनके महंगे होने और इनकी गुणवत्ता एफसीआई मानकों के अनुरूप नहीं होने को वजह बताया गया है। हालांकि हरियाणा, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार में धान की हाइब्रिड किस्मों का रकबा बढ़ रहा है।

पंजाब सरकार ने एक आदेश जारी कर चालू खरीफ सीजन में धान की हाइब्रिड किस्मों के बीजों की बिक्री और बुवाई पर प्रतिबंध लगा दिया है। कृषि निदेशक द्वारा 7 अप्रैल, 2025 को जारी आदेश में धान की पीआर-44 किस्म के साथ ही धान की हाइब्रिड किस्मों की बुवाई और बीज की बिक्री पर रोक लगाई गई है। जबकि कई हाइब्रिड किस्मों को कड़े परीक्षणों के बाद भारत सरकार ने पंजाब में उगाने के लिए नोटिफाई किया था। हरियाणा, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार में धान की हाइब्रिड किस्मों का रकबा बढ़ रहा है।
पंजाब सरकार की ओर से जारी आदेश के मुताबिक, पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (PAU) लुधियाना की सिफारिश के अनुसार खरीफ सीजन 2025 के दौरान धान की किस्म पीआर-44 और हाइब्रिड बीजों की बिक्री और बुवाई पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाया जाता है। हाइब्रिड किस्मों पर प्रतिबंध के पीछे इनके महंगे होने और इनकी गुणवत्ता एफसीआई मानकों के अनुरूप नहीं होने को वजह बताया गया है।
गौरतलब है कि पिछले साल पंजाब में राइस मिलर्स ने धान की हाइब्रिड किस्मों में अधिक टूटन और कम रिकवरी का आरोप लगाते हुए इन किस्मों के धान को उठाने से से इंकार कर दिया था। इस मुद्दे के तूल पकड़ने के बाद इस साल पंजाब सरकार ने धान की हाइब्रिड किस्मों की बिक्री और बुवाई पर रोक लगा दी।
फेडरेशन ऑफ सीड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (FSII) ने पंजाब सरकार के मुख्यमंत्री, कृषि मंत्री और आला अधिकारियों को पत्र भेजकर धान की हाइब्रिड किस्मों के समर्थन में अपने तर्क दिए हैं। एफएसआईआई के अनुसार, अधिक पैदावार के लिए दुनिया भर में धान की हाइब्रिड किस्मों को अपनाया जा रहा है और पंजाब में प्रतिबंध का कोई आधार नहीं बनता है। नई किस्मों को जारी करने से पहले आईसीएआर द्वारा व्यापक परीक्षण कराए जाते हैं, जिसमें मिलिंग रिकवरी भी देखी जाती है।
सीड इंडस्ट्री की ओर से पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (PAU), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) और इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट (आईआरआरआई) जैसे अंतरराष्ट्रीय शोध संस्थानों की रिपोर्ट का हवाला देकर दावा किया जा रहा है कि धान की हाइब्रिड किस्मों में अधिक टूटन और कम मिलिंग रिकवरी के दावे गलत हैं। मिलिंग रिकवरी और चावल टूटना कटाई के समय नमी, अनाज की नमी और मिलिंग मशीनरी जैसे कई कारकों पर निर्भर करता है।
एफएसआईआई का कहना है कि धान की हाइब्रिड वैराएटी में मिलिंग रेट (70-72.5%) और हेड राइस रिकवरी (60-63.9%) सरकार द्वारा निर्धारित मानकों से बेहतर है। एफएसआईआई का यह भी तर्क है कि पंजाब में हाइब्रिड धान का क्षेत्र मात्र 5 फीसदी के आसपास है। वहीं हरियाणा, छत्तीसगढ़, यूपी और बिहार जैसे राज्यों में जहां हाइब्रिड किस्मों का रकबा काफी अधिक है, वहां चावल में टूटन और कम रिकवरी की शिकायत नहीं आई है। जबकि पंजाब में यह बड़ा मुद्दा बन गया। गौरतलब है कि पड़ोसी राज्य हरियाणा में लगभग 35% चावल क्षेत्र हाइब्रिड धान की खेती होती है।
इस मुद्दे को लेकर सीड इंडस्ट्री ने पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी की भूमिका पर भी सवाल खड़े किए हैं। पंजाब सरकार को लिखे पत्र में एफएसआईआई ने कहा कि इस मसले पर पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) का विरोधाभासी रुख देखना हैरान करने वाला है। एक तरफ पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी हाइब्रिड किस्मों के नोटिफिकेशन की प्रक्रिया में शामिल रहती है, वहीं दूसरी ओर पीएयू इन किस्मों के प्रदर्शन पर सवाल उठाती है जिससे किसानों में भ्रम की स्थिति पैदा होती है। एफएसआईआई का कहना है कि धान की हाइब्रिड किस्मों पर प्रतिबंध से पंजाब की अर्थव्यवस्था और किसानों को नुकसान उठाना पड़ेगा।
धान की पीआर-44 किस्म पर पंजाब में पिछले साल भी प्रतिबंध लगाया गया था। इसके पीछे पकने की लंबी अवधि और पानी की अधिक खपत को वजह बताया गया था। इस साल भी पीआर-44 पर प्रतिबंध को लेकर यही वजह बताई गई है। पंजाब और हरियाणा में किसान पीआर-44 किस्म को अधिक पैदावार के चलते उगाते रहे हैं क्योंकि अभी कोई दूसरी किस्म पैदावार में इसका मुकाबला नहीं कर पाई है। लेकिन कुछ बीज कंपनियों की हाइब्रिड किस्में उत्पादकता के मामले मे पीआर-44 के काफी करीब हैं। साथ ही इनकी पकने की अवधि भी कम है।
सीड इंडस्ट्री के मुताबिक, धान की हाइब्रिड किस्मों की फसल अवधि 120 से 130 दिन होती है। इनकी पैदावार 15-20 फीसदी अधिक है और उत्पादन 6-7 टन प्रति हेक्टेयर के आसपास रहता है। साथ ही इन किस्मों को उगाने से करीब 15-20 फीसदी पानी की बचत होती है। हाइब्रिड किस्मों के धान की डायरेक्ड सीडेड राइस (डीएसआर) प्रक्रिया से बुवाई करने पर 20 फीसदी तक कम पानी की जरूरत पड़ती है। इन किस्मों के बीज हर्बिसाइड टॉलरेंट होने से खरपतवार की समस्या दूर करने में भी किसानों को मदद मिलती है। इस तरह हाइब्रिड किस्में एक ओर अधिक पैदावार के चलते किसानों के लिए फायदेमंद हैं, वहीं कम पानी की जरूरत के कारण पर्यावरण के लिए भी अनुकूल हैं। लेकिन पंजाब सरकार ने इस सभी तर्कों को दरकिनार कर हाइब्रिड किस्मों पर प्रतिबंध लगा दिया है।
हालांकि, हाइब्रिड चावल की किस्मों की बुआई और बीज बिक्री पर प्रतिबंध का आदेश 7 अप्रैल, 2025 को आया है। लेकिन बीज कंपनियों और पंजाब सरकार के बीच इस मुद्दे पर बातचीत का दौर फरवरी से चल रहा था। सूत्रों का कहना है कि इस मुद्दे पर कहीं न कहीं आढ़ती लॉबी का दबाव भी रहा है। जिसके चलते पंजाब में धान की हाईब्रिड किस्मों को प्रोत्साहित किए जाने की बजाए, इन पर पाबंदी लगा दी गई।