जेनेटिक्स एक्सपर्ट प्रोफेसर के.सी. बंसल से जानिये जीएम सरसों की मंजूरी के क्या है मायने
पिछले दिनों जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेजल कमेटी (जीईएसी) ने जेनेटिकली मॉडिफाइड सरसों की किस्म डीएमएच-11 के इनवायरनमेंटल रिलीज की मंजूरी दी है। इसे मिली मंजूरी को लेकर समर्थन और विरोध भी शुरू हो गया है। जीएम सरसों के बारे में विस्तार से जानकारी के लिए जेनेटिक साइंस के प्रमुख वैज्ञानिक और नेशनल एकेडमी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज (नास) के सेक्रेटरी प्रोफेसर के.सी. बंसल से रूरल वॉयस के एडीटर इन चीफ हरवीर सिंह ने बात की
पिछले दिनों जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेजल कमेटी (जीईएसी) ने जेनेटिकली मॉडिफाइड सरसों की किस्म डीएमएच-11 के इनवायरनमेंटल रिलीज की मंजूरी दी है। इसे सरसों की भारतीय किस्म वरूणा के साथ पूर्वी यूरोपीय किस्म अर्ली हीरा-2 को क्रॉस करके तैयार किया गया है। दावा किया जा रहा है कि इसकी उपज सामान्य सरसों से लगभग 30 प्रतिशत ज्यादा है। हालांकि, अब इसे मिली मंजूरी को लेकर समर्थन और विरोध भी शुरू हो गया है। जीएम सरसों के बारे में विस्तार से जानकारी के लिए जेनेटिक साइंस के प्रमुख वैज्ञानिक और नेशनल एकेडमी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज (नास) के सेक्रेटरी प्रोफेसर के.सी. बंसल से रूरल वॉयस के एडीटर इन चीफ हरवीर सिंह ने बात की। रूरल वॉयस डायलाग के इस शो को आप ऊपर दिए गए वीडियो लिंक पर क्लिक करके देख सकते हैं। इस इंटरव्यू के कुछ अंश यहां दिये जा रहे हैं।
प्रोफेसर के.सी. बंसल ने जीएम सरसों को पर्यावरण रिलीज की मंजूरी मिलने पर कहा कि जीएम सरसों को मसला 20 साल से लटका हुआ था। सरकार ने ट्रायल के लिए जो मंजूरी दी वह किसानों के हित में है। उन्होंने कहा कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) की देखरेख में नए हाइब्रिड तैयार करने के लिए ट्रांसजेनिक सरसों हाइब्रिड डीएमएच -11 और बार्नेज, बारस्टार और बार जीन युक्त पैरेंटल लाइन्स के 'पर्यावरण रिलीज' को मंजूरी दी गई है। अब इसका उपयोग फसलों के हाइब्रिड किस्म विकसित करने के लिए किया जा सकता है।
डीएमएच-11 सरसों की उत्पादकता 30 फीसदी ज्यादा
प्रोफेसर बंसल ने बताया कि दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर दीपक पेंटल की टीम ने डीएमएच -11 को विकसित किया है। उन्होंने कहा कि फसलों की उत्पादकता में अंतर को पाटने के लिए जेनेटिकली मोडिफाइड (जीएम) टेक्नोलाजी आज की जरूरत है। सरसों की वैश्विक उत्पादकता हमारे देश की तुलना में दोगुना है। उन्होंने कहा, जहां सरसों की वैश्विक उत्पादकता 20 क्विंटल से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है, वहीं भारत में सरसों की उत्पादकता 13 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। अगर जीएम सरसों की खेती की मंजूरी मिल जाती है, तो हम देश में उत्पादकता बढ़ा सकते हैं। प्रोफेसर बंसल ने कहा कि हम अपने देश की खाद्य तेल जरूरत की पूर्ति के लिए हर साल एक लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का खाद्य तेल का आयात करते हैं। इस अंतर को सरसों की उत्पादकता बढ़ा कर हम कम कर सकते हैं।
डीएमएच-11 सरसों की तकनीक
प्रोफेसर बंसल ने बताया कि दो अलग-अलग किस्मों के पौधों को क्रास करके एक हाइब्रिड किस्म का बीज बनाया जाता है। ऐसी क्रासिंग से प्राप्त पहली पीढ़ी की संकर किस्म की उपज मूल किस्मों की तुलना में अधिक होने की संभावना रहती है। लेकिन सरसों की फसल के साथ ऐसा करना आसान नहीं है। सरसों स्व-परागित पौधा है इसके फूलों में नर और मादा दोनों प्रजनन अंग होते हैं। स्वपरागण वाले पौधे के फूल में मेल और फीमेल दोनों एक ही फूल में रहते हैं। सेंटर फॉर जेनेटिक मैनिपुलेशन इन क्राप प्लांट्स, दिल्ली विश्वविद्यालय ने ऐसी प्रणाली विकसित की है, जिसमें तीन ट्रांस जीन - बार्नेज, बारस्टार और बार का उपयोग किया गया है। । उन्होंने कहा कि सरसों की हाइब्रिड किस्म विकसित करने के लिए बारनेस-बारस्टार एक सफल जीएम टेक्नोलॉजी है। इस तकनीक से तैयार हाइब्रिड पौधे की उपज 30 प्रतिशत ज्यादा होती है।
जीएम टेक्नोलॉजी का दूसरे देशों में इस्तेमाल
प्रोफेसर बंसल ने बताया कि जीएम सरसों की किस्म डीएमएच-11 का परीक्षण भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के रेपसीड और सरसों निदेशालय भरतपुर ने अलग-अलग लोकेशन औऱ जलवायु में कराया था। उन्होंने बताया कि सरसों की वरूणा किस्म की तुलना में जीएम-डीएमएच-11 से प्रति हेक्टयर 30 फीसदी ज्यादा उत्पादन मिला था। उन्होंने कहा कि इसी तकनीक से कनाडा में कैनोला का हाइब्रिड कैनोला बीज 25 साल पहले तैयार किया गया था। आज के समय में वहां 90 फीसदी एरिया में कैनोला की खेती जीएम किस्म से की जाती है। इस तकनीक का उपयोग अमेरिका और आस्ट्रेलिया में किया जा रहा है।
दो साल में किसानों को जीएम सरसों उपलब्ध होगी
प्रोफेसर बंसल ने बताया कि इस समय जो बीज उपलब्ध है उससे 100 जगह ट्रायल किए जा सकते हैं। अगर सब कुछ ठीक रहा तो दो साल में किसानों को जीएम सरसों का बीज उपलब्ध हो जाएगा। उन्होंने कहा कि जीएम सरसों से मधुमक्खियों को कोई नुकसान नहीं होता है। पंजाब और पूसा में इसका परीक्षण किया गया है। कनाडा में इसका परीक्षण किया गया है और यह पूरी तरह से सुरक्षित है।