अमेरिकी रेसिप्रोकल टैरिफ व्यवस्था के बीच भारतीय कृषि क्षेत्र की भूमिका
हमें यह मान कर चलना होगा कि भविष्य में भी "ट्रेड वार" किसी न किसी रूप में चलती रहेगी। इसलिए उसका सामना करने के लिए कृषि क्षेत्र को अपनी क्षमताओं को विकसित करते रहना होगा। कृषि के क्षेत्र को अधिक उत्पादक व लाभप्रद बनाने के लिए सटीक खेती, नैनो तकनीक, वर्टिकल फार्मिंग, प्रोटैक्टिड कल्टीवेशन, ड्रोन तकनीक, आर्टीफिशियल इंटैलीजेंस, आधुनिक भंडारण, स्मार्ट पैकेजिंग, इलैक्ट्रोनिक राष्ट्रीय बाजार (ई-नाम) जैसी अनेकानेक तकनीकों का समावेश होने लगा है

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा दिए गए नारे "मेक अमेरिका ग्रेट अगेन" में इस विचार की स्पष्टता शुरू से ही थी कि व्यापारिक विसंगतियों को दूर करने के लिए अमेरिका अपनी टैरिफ प्रणाली में बदलाव करेगा। भारत इसके लिए पहले से ही सतर्क था और अमेरिका के साथ द्विपक्षीय अनुकूल व्यापार व्यवस्था के रास्ते खोजने में लगा था ताकि "विकसित भारत@2047" के लक्ष्य को निर्धारित समय सीमा में प्राप्त करने में बाधा उत्पन्न न हो। लेकिन अमरीकी प्रशासन द्वारा अप्रैल 2025 में घोषित नई रेसिप्रोकल टैरिफ प्रणाली फिलहाल एक गतिरोधक के रूप में आकर खड़ी हो गई है।
यद्यपि कई विशेषज्ञों /अर्थशास्त्रियों का ऐसा अनुमान है कि नई टैरिफ प्रणाली का भारत की विकास दर पर थोड़ा प्रभाव पड़ेगा परन्तु भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है। भारत से भी अधिक अन्य एशियाई देश रेसिप्रोकल टैरिफ से प्रभावित होंगे क्योंकि उन देशों पर अधिक टैरिफ लगाया गया है। जापान (24%) के बाद भारत (27%) पर ही सबसे कम टैरिफ लगाने की घोषणा की गई है। अब भारत सहित विभिन्न देश इस विमर्श में व्यस्त हैं कि भविष्य में विश्व बाजार का प्रारूप क्या होगा? अमेरिका को चीन द्वारा निर्यात की जाने वाली वस्तुओं पर ट्रंप प्रशासन द्वारा 145% टैरिफ घोषित करने के बाद चीन ने भी अमरीकी वस्तुओं पर 125% टैरिफ लगाकर एक तरह से "ट्रेड वार" की आधारशिला रख दी है। निश्चित ही इस ट्रेड वार से विश्व में "न्यू ट्रेड आर्डर" स्थपित होने की संभावना है। इन सभी आशंकाओं के बीच नोबल पुरस्कार विजेता अमेरिकी अर्थशास्त्री "माइकल स्पैंस" का मानना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने की ओर तेजी से आगे बढ़ सकेगी क्योंकि भारत में विभिन्न क्षेत्रों में विकास की अपार क्षमताएं हैं।
देश में जनमानस ने कृषि-क्रांति को आते देखा है, स्पेस रिसर्च में देश ने नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं, अब कनेक्टिविटी में भी आई क्रांति हमारे सामने हैं तथा साइंस व तकनीकी विकास में अनेकानेक उपलब्धियों को होते हुए हम देख रहे हैं। इन उपलब्धियों ने यह विश्वास जगा दिया है कि भारत में वो सभी क्षमताएं हैं जो विकसित देशों के पास हैं। इसलिए बदलती हुई विश्व व्यापार की परिस्थितियों का भी भारत सफलतापूर्वक सामना करने में समर्थ है ऐसा हमें विश्वास करना चाहिए।
अब भारत को अमेरिकी बाजार के साथ साथ संपूर्ण विश्व बाजार में अवसरों और विकल्पों को खोजने व उनका व्यावसायिक दोहन करने के लिए गतिशीलता दिखानी होगी ताकि नए व्यापारिक परिवेश में उत्पन्न होने वाली प्रतिस्पर्धा का सफलतापूर्वक सामना करते हुए हम विकसित भारत@2047 के लक्ष्य को हासिल करने के लिए तेजी से अग्रसर होते रहें।
भारतीय कृषि क्षेत्र हमारी अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख स्तंभ है। कुल सकल घरेलू उत्पाद में इसका लगभग 15 -18% का योगदान है और अकुशल, अर्द्धकुशल तथा कुशल तीनों तरह के मानव संसाधनों को रोजगार देने का सबसे बड़ा माध्यम है। अतः कृषि क्षेत्र के सशक्तिकरण के बिना विकसित भारत का लक्ष्य प्राप्त होना असंभव है। इसके लिए भारतीय कृषि क्षेत्र को कुशल व बाजारोन्मुखी बनाना भी अत्यंत आवश्यक है। भारत सरकार के वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के डाटा के अनुसार वित्त वर्ष 2023 में भारत से 52.5 बिलियन डॉलर के कृषि उत्पादों का निर्यात अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात, चीन, बंगलादेश, सऊदीअरब, वीयतनाम, ईराक, मलेरिया आदि अनेको देशों को हुआ। देखा जाय तो यह निर्यात हमारी कृषि की क्षमताओं से काफी कम है। हमें अपने कृषि उत्पादों के निर्यात मूल्य को 100 बिलयन डालर तक पहुंचाने के प्रयासों में तेजी लानी होगी। इसके लिए निर्यात किए जाने वाले परंपरागत उत्पादों के अलावा हमें अन्य कृषि उत्पादों जैसे कि बायोफ्यूल, सोयामील, ग्रेप वाइन, फल, फूल, मोजेरेला चीज़, बकरी व ऊंट का दूध, कृषि मशीनरी, पशु उत्पाद आदि के बाजारों में अपनी पकड़ बनाने के लिए सघन प्रयास करने होंगे।
जैसे जैसे हमारे कृषि सैक्टर का बाजारोन्मुखी दायरा बढ़ेगा तो संभावित "न्यू ट्रेड आर्डर" की चुनौतियों का सामना करने की शक्ति का भी विस्तार करना होगा। हमारे कृषि क्षेत्र को अकेले "टैरिफ" बदलाव से ही नहीं जूझना है बल्कि खाद्य पदार्थों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार में एक महत्वपूर्ण मुद्दा "सेनेटरी-फाइटोसेनेटरी" मानकों की अनुपालना का भी है। इन मानकों के पूरा न होने पर हमारे उत्पादों की विश्व बाजार में पकड़ कमजोर हो जाती है। अतः अब सक्षम किसानों व कृषि सैक्टर से जुड़े सभी हितधारकों को विश्व बाजार के गुणवत्ता मानकों पर आधारित कृषि उत्पाद पैदा करने, प्रतिस्पर्धात्मक कीमतें रखने और विश्वसनीय निर्यातक बनने की ओर ठोस कदम उठाने के लिए शिक्षित व जागरूक करना होगा।
इन कदमों को एकाकी रूप में या व्यक्तिगत रूप से उठा पाना लगभग असंभव है। इसके लिए किसान, वैज्ञानिक, सार्वजनिक क्षेत्र व निजी क्षेत्र के बीच पारस्परिक लाभप्रद संबंधों पर आधारित कार्ययोजना बनाने की आवश्यकता है। हमें यह समझना चाहिए कि उपरोक्त क्षेत्रों के अन्दर अलग अलग विशेषताएं व योग्यताएं होती हैं जो एक दूसरे की पूरक हैं। सामूहिक प्रयास घरेलू व विश्व बाजार के अवसरों का दोहन करने के लिए उत्पादन दक्षता बढ़ाने, अच्छी उत्पादन सामग्री उपलब्ध कराने, बाजार की मांग के अनुसार विविध प्रकार के उत्पाद पैदा करने, आपूर्ति श्रृंखला व मूल्य श्रृंखला बनाने तथा लाजिस्टिक व ऊर्जा खर्च को कम करने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। अतः विश्व बाजार पर बड़ी पकड़ बनाने के लिए सामूहिक प्रयासों को बढ़ावा देना होगा ।
नई बाजार व्यवस्था में हमारे देश में छोटे व मझोले किसान, जिनकी संख्या कुल किसानों की संख्या का 85-86% है, पीछे न छूट जाएं इसका हमें विशेष ध्यान रखना होगा क्योंकि उनकी देश व विदेश की मंडियों तक पहुंच बहुत ही कम है। ऐसे किसानों को अब "गुजर-बसर वाली खेती की सोच" से बाहर आकर सेकेंडरी एवं स्पेशलिटी कृषि कौशल को अपनाना होगा जिनसे राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर के सस्ते एवं अच्छी गुणवत्ता वाले उत्पाद पैदा कर सकें। इन किसानों की आर्थिक शक्ति को " किसान उत्पादक संगठन", सहकारिता समूह आदि बनाकर उभारने की अत्यंत आवश्यकता है ताकि उनको निजी व सरकारी क्षेत्रों से आसानी से जोड़ा जा सके और उनके उत्पाद भी घरेलू व अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक पहुंच सकें। किसानों व उनके समूहों को उन भ्रांतियों से बाहर निकालना होगा जिनमें निजी क्षेत्र को सिर्फ किसानों के शोषण करने वाले उद्यम के रूप में ही देखा जाता है। किसानों की यह भ्रांति तभी खत्म होगी जब ऐसी सरकारी नीतियां लागू हों जो किसानों व उद्योगों दोनों के हितों का संरक्षण करते हुए प्रगतिशील हों।
हमें यह मान कर चलना होगा कि भविष्य में भी "ट्रेड वार" किसी न किसी रूप में चलती रहेगी। इसलिए उसका सामना करने के लिए कृषि क्षेत्र को अपनी क्षमताओं को विकसित करते रहना होगा। कृषि के क्षेत्र को अधिक उत्पादक व लाभप्रद बनाने के लिए सटीक खेती, नैनो तकनीक, वर्टिकल फार्मिंग, प्रोटैक्टिड कल्टीवेशन, ड्रोन तकनीक, आर्टीफिशियल इंटैलीजेंस, आधुनिक भंडारण, स्मार्ट पैकेजिंग, इलेक्ट्रॉनिक राष्ट्रीय बाजार (ई-नाम) जैसी अनेकानेक तकनीकों का समावेश होने लगा है। अतः खेती से जुड़े युवाओं को इन तकनीकों के बारे में साक्षर व कौशलयुक्त होना होगा।
भारत के पास दुनिया की सबसे बड़ी युवा शक्ति है। इस युवा शक्ति का सृजनात्मक उपयोग करने के लिए हमें कौशल विकास को प्राथमिकता देनी होगी ताकि कृषि क्षेत्र में आधुनिक तकनीकों का समावेश हो, कम कीमत पर अधिक उत्पादन हो, अधिक रोजगार पैदा हों, नवाचारों के लिए युवा आगे आएं और विश्व बाजारों से जुड़ें। ऐसे युवा कृषि की प्रगति में बड़ी सहभागिता करके इस क्षेत्र से देश की अर्थव्यवस्था में एक ट्रिलियन अमरीकी डालर का योगदान सुनिश्चित कर सकते हैं और भारत की अर्थव्यवस्था को पांच ट्रिलियन अमरीकी डालर की बनाने के लक्ष्य को जल्दी प्राप्त कराने में सहायक हो सकते हैं।
इसी के दृष्टिगत "डा० आरएस परोदा कमेटी रिपोर्ट 2019" में एक महत्वपूर्ण अनुशंसा की गई है कि "देश भर के सभी कृषि विज्ञान केन्द्रों व कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन केन्द्रों को "ज्ञान-कौशल-नवाचार" केन्द्रों के रूप में परिवर्तित किया जाए ताकि ये केन्द्र ऐसा मानव संसाधन पैदा कर सकें जो आत्मविश्वासी हो और भारतीय कृषि क्षेत्र को अधिक प्रगतिशील व विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने में तथा "राष्ट्रीय कृषि नीति 2000" में निहित 4% कृषि विकास दर के लक्ष्य को प्राप्त करने में अपनी बड़ी भूमिका निभा सकें।
कृषि के क्षेत्र में स्टार्टअप्स दस्तक दे चुके हैं लेकिन इस क्षेत्र में अपेक्षाकृत बहुत कम "स्टार्टअप" हैं। इनमें से ज्यादातर इंजीनियरिंग या प्रबंधन से संबंधित स्नातकों के द्वारा स्थापित किए गए हैं। उनकी सफलताएं कृषि को नई दिशा दिखा रही हैं तथा यह विश्वास भी पैदा कर रही हैं कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित "सतत विकास लक्ष्य" प्राप्त करने में स्टार्टअप्स बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। यह एक अच्छी शुरुआत है लेकिन अब कृषि स्नातकों को भी इस संदर्भ में कौशल विकास करके अपनी उद्यमशीलता से कृषि क्षेत्र को सशक्त बनाने में भूमिका निभाने के लिए आगे आना होगा। इसके लिए हमारे शिक्षा व अनुसंधान के संस्थानों को उद्यमशील स्नातकों की पहचान करके उनकी उद्यमशीलता को निखारने के लिए प्रारंभिक सहायता, तकनीकी समर्थन, प्रशिक्षण व निगरानी तब तक करनी व करानी होगी जब तक वो सक्षम नहीं हो जाते।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के संस्थानों, राज्यों के कृषि विश्वविद्यालयों, नाबार्ड आदि के द्वारा कृषि को बाजारोन्मुखी बनाने के प्रयासों को और अधिक प्रभावी बनाना होगा ताकि हमारा कृषि क्षेत्र अपनी दक्षता व क्षमताएं बढ़ाकर उच्च गुणवत्ता मानकों के उत्पाद पैदा करके विश्व बाजार में अपनी बड़ी साझेदारी अर्जित सके। इन प्रयासों को बल देने के लिए लम्बी अवधि की ऐसी "आयात-निर्यात नीति" बनाने की ओर त्वरित कदम उठाने की भी आवश्यकता है जो भारतीय कृषि उत्पादों की परंपरागत व नए बाजारों में हिस्सेदारी बढ़ाने में सहायक हो।
(डॉ. आरएस परोदा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के पूर्व महानिदेशक, पूर्व सैक्रेटरी, कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग (डेअर), भारत सरकार और ट्रस्ट फॉर एडवांसमेंट इन एग्रीकल्चरल सांइसेज (तास) के चैयरमैन हैं।)
(डॉ. राम श्रीवास्तव , रिटायर्ड प्रोफेसर और ट्रस्ट फॉर एडवांसमेंट इन एग्रीकल्चरल सांइसेज (तास) के सलाहकार हैं)