किसानों की आय बढ़ाने के लिए कृषि क्षेत्र में सुधार जरूरीः प्रो. रमेश चंद
आज उपभोक्ताओं की प्रेफरेंस बदल रही है इसलिए किसान उस दिशा में जाएं जहां मांग ज्यादा तेजी से बढ़ रही है। इससे उन्हें अच्छी कीमत मिलने की संभावना बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि कुछ किसान इस बात को अपना रहे हैं लेकिन ऐसा चुनिंदा क्षेत्रों में ही हो रहा है। हरित क्रांति की तरह बड़े पैमाने पर किसानों ने अभी तक इसे नहीं अपनाया है
नीति आयोग के सदस्य प्रो. रमेश चंद ने कहा है कि किसी भी अर्थव्यवस्था में मांग सबसे महत्वपूर्ण निर्धारक तत्व होता है। उपभोक्ता क्या चाहता है इसी से समूचा परिदृश्य तय होता है। आज उपभोक्ताओं की प्रेफरेंस बदल रही है इसलिए किसान उस दिशा में जाएं जहां मांग ज्यादा तेजी से बढ़ रही है। इससे उन्हें अच्छी कीमत मिलने की संभावना बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि कुछ किसान इस बात को अपना रहे हैं लेकिन ऐसा चुनिंदा क्षेत्रों में ही हो रहा है। हरित क्रांति की तरह बड़े पैमाने पर किसानों ने अभी तक इसे नहीं अपनाया है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि अधिक कीमत वाले क्षेत्र में जोखिम भी अधिक होगा, लेकिन ग्रोथ की संभावना भी वही अधिक होगी। उन्होंने सुझाव दिया कि किसान अपनी जोत के कुछ हिस्से में जोखिम ले सकते हैं। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि अगर किसानों की आय बढ़ानी है तो उसके लिए सुधार जरूरी है। प्रोफेसर रमेश चंद ने किसान चेंबर ऑफ कॉमर्स के चौथे वार्षिक सम्मेलन को संबोधित करते हुए यह बातें कहीं।
उन्होंने बताया कि बीते 10 साल में फिशरीज क्षेत्र में सालाना 8 से 10 फ़ीसदी वृद्धि दर्ज हुई है। मवेशी क्षेत्र में यह 5 से 6 फ़ीसदी, बागवानी में 3.5 से 4 फ़ीसदी है। अनाज के क्षेत्र में सिर्फ 2 फ़ीसदी की सालाना वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा, अनुमान है कि 4 साल में फिशरीज और मवेशी क्षेत्र में उत्पादन की कीमत अनाज उत्पादन से अधिक हो जाएगी।
उन्होंने कहा कि नीति आयोग का आकलन है कि 12 से 15 वर्षों में जनसंख्या वृद्धि की दर घटकर एक फ़ीसदी रह जाएगी। इसलिए खाद्य पदार्थों की मांग पर बढ़ती आबादी का दबाव आने वाले वर्षों में अधिक नहीं होगा। लेकिन प्रति व्यक्ति खपत बढ़ रही है। फिर भी अगले 15 वर्षों में औसत कृषि उत्पादन 3 फ़ीसदी की दर से बढ़ेगी जबकि मांग बढ़ने की दर अधिकतम 2 फ़ीसदी रहने की संभावना है। इसलिए आने वाले समय में एक तिहाई कृषि उत्पादन निर्यात करने की नौबत आएगी।
मार्केट इंटेलिजेंस की जरूरत पर जोर देते हुए प्रो रमेश चंद ने सुझाव दिया कि अगर किसानों को फसल की बिजाई के समय यह बताया जाए कि उनकी उपज की संभावित कीमत क्या मिलेगी, तो उन्हें यह अंदाजा होगा कि कौन सी फसल कितने क्षेत्र में बोनी है। इसी तरह अगर उन्हें फसल की कटाई के समय यह पता चले कि आने वाले समय में क्या कीमत रहने वाली है तो वे यह तय कर सकते हैं कि उपज को कब बेचना है। इसी तरह मार्केट इंटेलिजेंस के आधार पर किसानों को यह भी बताया जाना चाहिए कि अगले सीजन में किसी फसल की क्या कीमत रह सकती है।
ग्रामीण रोजगार की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि पहले इंडस्ट्री श्रम सघन हुआ करती थी लेकिन अब वह पूंजी सघन हो गई है। इसलिए ग्रामीण क्षेत्र में निवेश हाल के वर्षों में 14 फ़ीसदी बढ़ा लेकिन वहां रोजगार में सिर्फ 0.7 फ़ीसदी वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा कि कृषि को अगर 'फार्म एज ए फैक्ट्री' के तौर पर विचार किया जाए तो इससे रोजगार मिलेगा।
कृषि क्षेत्र की चुनौतियों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि आज दुनिया के सामने सबसे बड़ी समस्या सस्टेनेबिलिटी की है। उन्होंने कहा कि भारत हर साल दो करोड़ टन चावल का निर्यात करता है। दुनिया में चावल का जितना व्यापार होता है उसका 40 फ़ीसदी भारत निर्यात करता है। लेकिन एक किलो चावल उत्पादन करने में 4000 लीटर पानी की जरूरत होती है। इस तरह अधिक चावल निर्यात करके हम अपने प्राकृतिक संसाधनों का भी निर्यात कर रहे हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिए हमें नई टेक्नालॉजी को अपनाना जरूरी है।
एमएसपी व्यवस्था में सुधार की जरूरत बताते हुए उन्होंने कहा कि बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि एमएसपी का भुगतान कैसे दिया जाता है। यह खरीद के जरिए होता है या कीमत में कमी को पूरा करके। उन्होंने बताया कि सरकार को किसी फसल की एमएसपी के तौर पर रुपए 2000 देने में 700 रुपए का खर्च आता है, लेकिन अगर सरकार घोषित एमएसपी और किसान के बिक्री मूल्य के अंतर का भुगतान करती है तो उसमें खर्च बहुत कम आता है। उन्होंने कहा कि खेती को एग्री-बिजनेस के रूप में बदला जाना चाहिए ताकि किसान पैसेज के बजाय एक्टिव पार्टनर बन सके।