गेहूं के उत्पादन और निर्यात की संभावनाएं, भारत कैसे बनेगा ग्लोबल लीडर
गेहूं की उत्पादकता और गुणवत्ता पर ध्यान दिया जाए तो भारत अपनी खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ-साथ गेहूं के निर्यात में अग्रणी बन सकता है।
भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक देश है। देश में सालाना लगभग 11 करोड़ टन गेहूं का उत्पादन होता है जबकि करीब 8-9 करोड़ टन गेहूं की आवश्यकता घरेलू खपत को पूरा करने के लिए होती है। अगर उन्नत किस्मों और तकनीक के जरिए गेहूं की पैदावार बढ़ाई जाए तो भारत गेहूं के मामले में ग्लोबल लीडर बन सकता है। इससे जुड़ी विभिन्न संभावनाओं और चुनौतियों को लेकर ट्रस्ट फॉर एडवांसमेंट ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज (तास), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) तथा भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान (आईआईडब्ल्यूबीआर) द्वारा संयुक्त रूप से एक परिचर्चा का आयोजन किया गया जिसमें गेहूं पर शोध से जुड़े देश के प्रमुख कृषि वैज्ञानिक और नीति-निर्माता शामिल हुए।
इस अवसर पर तास के चेयरमैन तथा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के पूर्व महानिदेशक डॉ. आर एस परोदा ने बढ़ती जनसंख्या की चुनौती को देखते हुए गेहूं के उत्पादन और उत्पादकता में उल्लेखनीय वृद्धि की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने गेहूं की उच्च उपज देने वाली किस्मों को विकसित करने के लिए नए नवाचारों और अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी को अपनाने की वकालत की। उन्होंने कहा कि देश को न केवल अपनी खाद्य आवश्यकताओं को पूरा करना है, बल्कि वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धी कीमतों पर भारतीय गेहूं उपलब्ध कराने की संभावनाओं को भी पूरा करना है। इससे भारत में गेहूं उगाने वाले किसानों की आय में भी उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है।
कार्यक्रम के प्लेनरी सत्र के मुख्य अतिथि नीति आयोग के सदस्य कृषि अर्थशास्त्री डॉ. रमेश चंद ने कहा कि कृषि से जुड़ा परिदृश्य बहुत तेजी से बदल रहा है। बदलती आवश्यकताओं के अनुरुप गेहूं के साथ-साथ गेहूं से बने उत्पादों के निर्यात की भी बहुत संभावनाएं हैं। वैल्यू एडिशन पर जोर दिया जाए तो किसानों को भी बेहतर दाम मिल सकता है। हमें किसानों को मदद करने के वैकल्पिक तरीके निकालने होंगे। अभी गेहूं का सरप्लस कम होने की वजह से बहुत अधिक निर्यात नहीं होता है। पिछले दस वर्षों में भारतीय कृषि ने चीन से बेहतर प्रदर्शन किया है। गेहूं में भी हम उत्पादन बढ़ा सकते हैं। तेजी से बदलती जलवायु परिस्थितियों में राजनीतिक व सामाजिक व्यवधानों को संबोधित करने के लिए अभी भी एक बफर बनाने की आवश्यकता है।
विश्व में भारत को गेहूं के प्रमुख उत्पादक के तौर पर देखा जाता है और बहुत से देश खाद्य सुरक्षा के लिए भारत पर निर्भर हैं। ऐसे में अगर देश में गेहूं का उत्पादन बढ़ता है तो निर्यात की अच्छी संभावनाएं हैं। करनाल स्थित भारतीय गेहूं एंव जौ अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ. ज्ञानेंद्र सिंह ने निर्यात के मद्देनजर उच्च प्रोटीन कंटेंट वाले डूरम गेहूं के उत्पादन को प्रोत्साहित करने का सुझाव दिया। निर्यात के मामले में प्रोसेसिंग क्वालिटी के अलावा पोषण गुणवत्ता का महत्व भी बढ़ता जा रहा है। प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स के लिए गेहूं के निर्यात को बढ़ावा दिए जाने की भरपूर संभावनाएं हैं। इसके लिए गेहूं को कीट व रोगों से बचाने रखने के लिए विशेष उपाय करने होंगे।
दिन भर के कार्यक्रम में ब्रेकआउट सत्र के दौरान तीन ग्रुप बनाये गये और इन ग्रुप की सिफारिशों को सभी प्रतिभागियों के सामने रखा गया। यह ग्रुप के विषय थे इको-रीजनल प्रॉडक्शन ऑप्शंस, एक्सपोर्ट ऑप्शंस एंड वे फॉरवर्ड और क्वेरेंटाइ एंड एसपीएस कंसीडरेशन। पहले ग्रुप के कनवीनर आईआईडब्लूबीआर के डायरेक्टर डॉ. ज्ञानेंद्र सिंह थे। दूसरे ग्रुप के कनवीनर एफएमसी के पब्लिक एंड इंडस्ट्री अफेयर, डायरेक्टर राजू कपूर और तीसरे ग्रुप के कनवीनर डीपीपीक्यूएस में प्लांट प्रोटेक्शन एडवाइजर जे पी सिंह थे।
गेहूं का उत्पादन बढ़ाने की रणनीति भविष्य में विविध और बहुविध आनुवंशिक सुधारों की आवश्यकता के साथ-साथ फसल वृद्धि चक्र को छोटा करने की संभावना है। फिलहाल भारत में करीब 3.17 करोड़ हेक्टेअर क्षेत्र में गेहूं की खेती होती है और गेहूं की औसत पैदावार औसतन 3.5 टन प्रति हेक्टेअर है। वर्ष 2010-11 और 2021-22 के बीच गेहूं की उत्पादकता में 17.94 फीसदी की वृद्धि हुई है। कृषि वैज्ञानिकों को मानना है कि अगर यूपी जैसे प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्यों में जल्द बुवाई वाली किस्मों को अपनाया जाए तो गेहूं की उत्पादकता प्रति हेक्टर 5.5 से 6 टन तक पहुंचाई जा सकती है। हालांकि, गेहूं की उत्पादकता बढ़ाने के लिए जलवायु परिवर्तन, घटते प्राकृतिक संसाधन, कीट और रोग पैटर्न और एबायोटिक स्ट्रेस (गर्मी, सूखा और लवणता) जैसी चुनौतियों से निपटना होगा।
एफएमसी के डायरेक्टर राजू कपूर का मानना है कि अभी भारत में निर्यात के लिए बहुत कम सरप्लस गेहूं है। निर्यात को बढ़ावा देने के लिए गेहूं का उत्पादन बढ़ाने के साथ-साथ एक्सपोर्ट कलस्टर बनाने होंगे जहां और ग्लोबल पैरामीटर के हिसाब से गेहूं की टेस्टिंग, ग्रेडिंग और क्लीनिंग की सुविधा हो। निर्यात को बढ़ावा देने के लिए रीजनल मैपिंग और गेहूं निर्यात केंद्र स्थापित करने की आवश्यकता है। साथ ही व्यापार नीतियों में स्थायित्व पर भी जोर दिया।
प्लांट प्रोटेक्शन एडवाइजर जेपी सिंह ने गेहूं के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए पेस्ट फ्री प्रोडक्टशन, पेस्ट फ्री एरिया, पेस्ट स्कैनर समेत और प्रभावी निगरानी तंत्र को महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने इस दिशा में किए जा रहे कार्यों और प्रगति के बारे में भी बताया। परिचर्चा के दौरान इको रीजनल प्रोडक्शन, निर्यात की संभावनाओं और उपायों तथा क्वारंटाइन से जुड़े मुद्दों पर तीन विशेषज्ञ समूहों से सुझाव प्राप्त किए।
परिचर्चा में डॉ. हिमांशु पाठक, डीजी आईसीएआर एवं सचिव डेयर, डॉ. भाग मल, सचिव तास, डॉ. आरबी सिंह, पूर्व अध्यक्ष नास, डॉ. पीएल गौतम, चांसलर आरसीपीएयू, एमएस सहारन, हेड पैथोलॉजी आईएआरआई तथा आरके त्यागी वरिष्ठ सलाहकार तास सहित कई कृषि वैज्ञानिक, एग्रीबिजनेस एक्सपर्ट, एफपीओ प्रतिनिधि और नीति-निर्माता शामिल हुए।