राजनीतिक संकट से खतरे में बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था
बांग्लादेश में महीनों तक चली हिंसा के बाद शेख हसीना की 15 साल पुरानी सरकार जाने के साथ 53 वर्ष पुराना यह देश अपने अब तक के सबसे बुरे राजनीतिक संकट का सामना कर रहा है। कानून-व्यवस्था भंग होने के चलते देश की इकोनॉमी पर असर पड़ा है।
बांग्लादेश में महीनों तक चली हिंसा के बाद शेख हसीना की 15 साल पुरानी सरकार जाने के साथ 53 वर्ष पुराना यह देश अपने अब तक के सबसे बुरे राजनीतिक संकट का सामना कर रहा है। कानून-व्यवस्था भंग होने के चलते देश की इकोनॉमी पर असर पड़ा है। वर्ष 2009 में शेख हसीना के प्रधानमंत्री बनने के बाद बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था अच्छा प्रदर्शन कर रही थी। इन वर्षों में बांग्लादेश का सकल घरेलू उत्पाद हर साल औसतन 6.5% की दर से बढ़ रहा था। उससे पहले के एक दशक में सालाना औसत विकास दर 5% थी। इस घटनाक्रम के चलते देश 2026 में अल्प विकसित देश का दर्जा खोने के करीब पहुंच गया है।
आईएमएफ का आकलन बताता है कि इस दशक के अंत तक बांग्लादेश की प्रति व्यक्ति आय 4000 डॉलर से अधिक हो जाती। यह इस मामले में बांग्लादेश भारत से भी आगे निकल जाता। लेकिन राजनीतिक संकट से अर्थव्यवस्था को जो नुकसान हो रहा है, उससे शेख हसीना के कार्यकाल में हासिल की गई बढ़त बहुत जल्दी समाप्त हो जाएगी। हालांकि इन सब के बीच आशा की कुछ किरणें भी हैं। सरकार के नवनियुक्त सलाहकारों ने ढाका तथा देश के अन्य हिस्से में हालात जल्दी सामान्य करने की तत्परता दिखाई है।
हाल के वर्षों में बांग्लादेश की आर्थिक मजबूती से भारत को भी अनेक फायदे हुए हैं। इस पड़ोसी देश के साथ भारत का व्यापार बढ़ा है। भारत के निवेशक भी बांग्लादेश में पैसा लगाने में पीछे नहीं हैं। भारतीय निवेशकों ने वहां कई सेक्टर में निवेश किया है और अन्य कई क्षेत्रों में वे साझा उपक्रम स्थापित करने का मौका तलाश रहे हैं। दरअसल बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था में भारत का हमेशा बड़ा हिस्सा रहा है और हाल के वर्षों में इसमें काफी वृद्धि भी हुई है।
पिछले दशक के आखिरी वर्षों से भारत और बांग्लादेश के बीच व्यापार तेजी से बढ़ा है। वर्ष 2015-16 से 2021-22 के दौरान द्विपक्षीय व्यापार में लगभग 2.7 गुना की वृद्धि हुई है। वर्ष 2021-22 में भारत का निर्यात 16 अरब डॉलर से अधिक पहुंच गया जो 2015-16 में सिर्फ 6 अरब डॉलर था। इस दौरान बांग्लादेश को निर्यात और वहां से आयात, दोनों में लगभग एक समान वृद्धि हुई। हालांकि यहां यह ध्यान रखना जरूरी है कि आयात में इतनी वृद्धि कम आधार के कारण हुई।
बांग्लादेश से कम आयात दोनों देशों के बीच विवाद का विषय रहा है। बांग्लादेश की हमेशा यह शिकायत रही है कि भारत उससे अधिक सामान नहीं खरीदता है। बांग्लादेशी उत्पादों को ड्यूटी फ्री और कोटा फ्री एक्सेस देने के बावजूद यह स्थिति है। डब्लूटीओ समझौते में अल्प विकसित देशों को बाजार पहुंच बढ़ाने की शर्त के तहत भारत ने यह सुविधा दी है। वर्ष 2019-20 से पहले बांग्लादेश के शीर्ष निर्यात ठिकानों में भारत का स्थान नहीं था। तब बांग्लादेश भारत को एक अरब डॉलर से भी कम का निर्यात करता था। वर्ष 2018-19 में इस सीमा को पार करने के बाद 2022-23 में बांग्लादेश से भारत को निर्यात दो अरब डॉलर पहुंच गया।
भारत के निर्यात ठिकानों में बांग्लादेश की स्थिति बेहतर हुई है। वर्ष 2018-19 में भारत के लिए बांग्लादेश सातवां सबसे बड़ा निर्यात बाजार था जो 2021-22 में चौथा सबसे बड़ा बाजार बन गया। बांग्लादेश को होने वाला निर्यात चीन को भारत से होने वाले निर्यात की तुलना में थोड़ा ही कम है। भारत के लिए यह महत्वपूर्ण उपलब्धि थी क्योंकि यहां के निर्यातक रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण पड़ोसी देश के बाजार में पहुंचने में सफल रहे।
बांग्लादेश में भारत की मौजूदगी बढ़ाने में दो कमोडिटी ग्रुप का विशेष योगदान रहा है। पहला कृषि उत्पाद और दूसरा कॉटन तथा कॉटन यार्न। बांग्लादेश में रेडीमेड गारमेंट इंडस्ट्री हाल के वर्षों में काफी तेजी से फली-फूली है। उसके लिए इंटरमीडिएट गुड्स भारत उपलब्ध कराता रहा है। वर्ष 2021-22 में बांग्लादेश के कुल निर्यात में रेडीमेड गारमेंट का हिस्सा 80% से अधिक था। इस तरह वह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा रेडीमेड गारमेंट निर्यातक बन गया। भारत के कॉटन यार्न के लिए बांग्लादेश हमेशा महत्वपूर्ण बाजार रहा है। वर्ष 2021-22 में भारत का लगभग 42% कॉटन यार्न और 58% कच्ची कपास का निर्यात बांग्लादेश को हुआ।
दक्षिण एशियाई देशों में आर्थिक जुड़ाव के पक्षधर हमेशा यह तर्क देते आए हैं कि इस क्षेत्र में वैल्यू चेन की के विकास से पूरे क्षेत्र में आर्थिक इंटीग्रेशन मजबूत होगा। इससे इस क्षेत्र को अपने दम पर आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी। भारत और बांग्लादेश में टेक्सटाइल तथा गारमेंट इंडस्ट्री की वैल्यू चेन स्थापित होने से भविष्य में दूसरी इंडस्ट्री में भी इस तरह की संभावना बनने लगी। इसके साथ दक्षिण एशियाई क्षेत्र के दूसरे देशों में भी इस तरह की वैल्यू चेन बनने के आसार नजर आने लगे।
बांग्लादेश को भारत के निर्यात में कृषि कमोडिटी का बड़ा योगदान है। वर्ष 2021-22 में गेहूं का निर्यात लगभग तीन गुना बढ़ गया जबकि चीनी निर्यात में करीब 10 गुना की वृद्धि हुई। भारत से चावल का निर्यात भी लगभग दो गुना हो गया। कच्ची कपास को मिला लें तो कुल कृषि निर्यात भारत से बांग्लादेश को होने वाले निर्यात का 35% था। भारत भी इस दौरान कृषि निर्यात हब के रूप में अपने आप को स्थापित करने का प्रयास कर रहा था।
वर्ष 2021-22 में भारत और बांग्लादेश के बीच द्विपक्षीय व्यापार रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। इससे दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग के महत्व का भी पता चला। लेकिन उसके बाद के दो वर्षों में आपूर्ति की दिक्कतों के चलते द्विपक्षीय व्यापार में 30% की कमी आ गई। भारत में अनाज उत्पादन कम होने की आशंका तथा खाद्य महंगाई बढ़ने के कारण अनाज निर्यात पर पाबंदी लगा दी गई। दूसरी तरफ बांग्लादेश में विदेशी मुद्रा संकट के चलते आयात कम होने लगा। गारमेंट इंडस्ट्री के लिए महत्वपूर्ण इंटरमीडिएट वस्तुओं के आयात में भी कमी आई। हालांकि दोनों देशों के बीच व्यापार में अस्थायी तौर पर ही गिरावट आई है। आने वाले वर्षों में इसमें अनेक वृद्धि की संभावना है।
इस बात में संदेह नहीं कि दोनों पड़ोसी देशों के बीच आर्थिक संबंध ऐसे बिंदु पर पहुंच गए हैं जहां से लंबी छलांग लगाई जा सकती है। यह इस बात से भी पता चलता है कि भारत का निजी क्षेत्र अपने इस पड़ोसी देश की अर्थव्यवस्था के अनेक सेक्टर में निवेश की रुचि रखता है। इसलिए यह उम्मीद की जाती है कि बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के बावजूद दोनों देशों की सरकारें आपसी सहयोग की भावना को आगे बढ़ाएंगी। यही नागरिकों के बेहतर भविष्य के लिए जरूरी है।
(लेखक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के रिटायर्ड प्रोफेसर और काउंसिल फॉर सोशल डेवलपमेंट में विशिष्ट प्रोफेसर हैं)