धान की बुवाई का रकबा बढ़ा मगर पैदावार को लेकर आशंका अभी बरकरार
केंद्रीय कृषि मंत्रालय के 28 जुलाई तक के आंकड़ों के मुताबिक, धान की बुवाई का रकबा पिछले साल इसी अवधि के 233.25 लाख हेक्टेयर के मुकाबले 4.33 लाख हेक्टेयर बढ़कर 237.58 लाख हेक्टेयर पर पहुंच चुका है। खरीफ सीजन में देशभर में सामान्य तौर पर 399.45 लाख हेक्टेयर में धान की बुवाई होती है। देश के कुल चावल उत्पादन का 80 फीसदी हिस्सा खरीफ सीजन में ही होता है। धान की बुवाई का रकबा बढ़ने के बावजूद मानसून की बारिश का वितरण देशभर में ठीक से नहीं होने की वजह से पैदावार को लेकर चिंता बनी हुई है।
पूर्व और उत्तर पूर्वी राज्यों, पूर्वी और मध्य उत्तर प्रदेश, ओडिशा, पूर्वी मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ को छोड़कर देश के ज्यादातर इलाकों में मानसून की बारिश सामान्य से अधिक हुई है। इसकी बदौलत धान की बुवाई का रकबा पिछले साल के मुकाबले 4 लाख हेक्टेयर से ज्यादा बढ़ा है। खरीफ सीजन की इस प्रमुख फसल की 60 फीसदी बुवाई हो चुकी है। मगर पैदावार को लेकर अभी भी आशंका बरकरार है।
केंद्रीय कृषि मंत्रालय के 28 जुलाई तक के आंकड़ों के मुताबिक, धान की बुवाई का रकबा पिछले साल इसी अवधि के 233.25 लाख हेक्टेयर के मुकाबले 4.33 लाख हेक्टेयर बढ़कर 237.58 लाख हेक्टेयर पर पहुंच चुका है। खरीफ सीजन में देशभर में सामान्य तौर पर 399.45 लाख हेक्टेयर में धान की बुवाई होती है। देश के कुल चावल उत्पादन का 80 फीसदी हिस्सा खरीफ सीजन में ही होता है। धान की बुवाई का रकबा बढ़ने के बावजूद मानसून की बारिश का वितरण देशभर में ठीक से नहीं होने की वजह से पैदावार को लेकर चिंता बनी हुई है। एक तरफ, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ज्यादा बारिश की वजह से बाढ़ आ गई जिससे लाखों हेक्टेयर में बोई गई धान की फसल डूब गई, वहीं दूसरी तरफ, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, पूर्वी और मध्य उत्तर प्रदेश, ओडिशा, पूर्वी मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे प्रमुख धान उत्पादक इलाकों में अभी भी सामान्य से 10 फीसदी से लेकर 50 फीसदी तक कम बारिश हुई है।
भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के 28 जुलाई तक के आंकड़ों के मुताबिक, बिहार में सामान्य से 49 फीसदी कम बारिश हुई है। पिछले साल की तरह इस साल भी यहां सूखे की स्थिति बनी हुई है। इसी तरह, झारखंड में 48 फीसदी, पश्चिम बंगाल के गंगेटिक इलाके में 40 फीसदी, पूर्वी उत्तर प्रदेश में 35 फीसदी, ओडिशा में 12 फीसदी, पूर्वी मध्य प्रदेश में 7 फीसदी और छत्तीसगढ़ में सामान्य से 9 फीसदी कम बारिश हुई है। ये सभी धान उत्पादन के प्रमुख इलाके हैं। सामान्य से कम बारिश की वजह से इन क्षेत्रों में धान की पैदावार पर असर पड़ना तय है क्योंकि इन इलाकों में सिंचाई की व्यवस्था भी अच्छी नहीं है। यहां के ज्यादातर धान किसान सिंचाई के लिए मानसून की बारिश पर ही निर्भर हैं। यह साल अल-नीनो का है और इन इलाकों में इसका असर स्पष्ट तौर पर दिख रहा है।
पैदावार को लेकर चिंता वाली दूसरी बात यह है कि पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बाढ़ की वजह से बर्बाद हुई धान की फसल की दोबारा बुवाई पौध की कमी की वजह से ठीक से नहीं हो पा रही है। साथ ही, इसके सटीक आंकड़े भी इन राज्यों की सरकारों ने उपलब्ध नहीं कराया है कि बाढ़ की वजह से कितने क्षेत्रफल में धान की फसल बर्बाद हुई और कितने में इसकी दोबारा बुवाई हुई है। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर इन क्षेत्रों में धान की दोबारा बुवाई में देरी हुई तो सितंबर के दूसरे पखवाड़े और अक्टूबर में इन फसलों में फूल आएंगे और उस समय तापमान ज्यादा रहता है। उस समय तक मानसून भी खत्म हो जाता है। इसकी वजह से पैदावार प्रभावित होने की आशंका बनी रहेगी। इसके अलावा, धान की कटाई में देरी से रबी सीजन की बुवाई भी प्रभावित होगी।
कृषि मंत्रालय के ताजा आंकड़ों में कहा गया है कि ओडिशा, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश जैसे बड़े धान उत्पादक राज्यों में धान की बुवाई पिछले साल के मुकाबले अभी कम है। 28 जुलाई तक ओडिशा में जहां बुवाई में 4 लाख हेक्टेयर की गिरावट आई है, वहीं कर्नाटक में 1.54 लाख हेक्टेयर और आंध्र प्रदेश में 1 लाख हेक्टेयर कम क्षेत्रफल में धान बोई गई है। झारखंड, पंजाब और तमिलनाडु के रकबे में भी गिरावट दर्ज की गई है।
खरीफ की बुवाई के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, खरीफ की बुवाई के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, दलहन फसलों की बुवाई का रकबा पिछले साल के 109.15 लाख हेक्टेयर की तुलना में 96.84 लाख हेक्टेयर रहा है। अरहर की बुवाई रकबे में 5.99 लाख हेक्टेयर, उड़द में 4.23 लाख हेक्टेयर और मूंग में 2.14 लाख हेक्टेयर की कमी आई है। जबकि मोटा अनाज की बुवाई का रकबा 2.28 लाख हेक्टेयर बढ़कर 145.76 लाख हेक्टेयर हो गया है। सोयाबीन के रकबे में वृद्धि की वजह से तिलहन फसलों का रकबा 3.42 लाख हेक्टेयर अधिक रहा है और यह 171.02 लाख हेक्टेयर पर पहुंच गया है। हालांकि, मूंगफली और सूरजमुखी के रकबे में क्रमशः 1.01 लाख हेक्टेयर और 1.12 लाख हेक्टेयर की गिरावट आई है।
नगदी फसलों में गन्ने का रकबा 2.66 लाख हेक्टेयर बढ़कर 56 लाख हेक्टेयर हो गया है। जबकि कपास का रकबा पिछले साल के 117.91 लाख हेक्टेयर से घटकर 116.75 लाख हेक्टेयर और जूट का रकबा 6.92 लाख हेक्टेयर की तुलना में 6.37 लाख हेक्टेयर रह गया है।