विश्व खाद्य दिवस: डॉ. एमएस स्वामीनाथन को देश का सलाम
प्रोफेसर स्वामीनाथन के सिखाए रास्तों पर चलते हुए कृषि अनुसंधान संस्थानों को वैज्ञानिक पद्धति को अपनाने के लिए किसानों तथा किसान उत्पाद संगठनों को मजबूत करने की दिशा में महत्वपूर्ण काम करना पड़ेगा। खाद्य सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए भारत में, विशेषकर संसाधनों की कमी वाले कृषि क्षेत्रों में, कृषि के वातावरण व कृषि की संपदाओं में काफी विविधताएं हैं, ये विविधताएं सीमित संसाधन तथा तकनीक के सीमित प्रसार के कारण कृषि उद्योग में आय-व्यय में काफी अंतर है। इस अंतर को कृषि विज्ञान, तकनीक और नवाचार से पाटना तथा सामान्य कृषि क्षेत्रों को और अधिक लाभदायक बनाना होगा। इसके साथ ही किसानों की आय में बढ़ोतरी और कृषि से जुड़े व्यवसाय के जरिये किसान कल्याण को प्राथमिकता देनी होगी। हमारा हर कदम कृषकों के कल्याण के लिए उठे, हम सब को मिल कर यही सुनिश्चित करना होगा।
इस वर्ष भारत जश्न की तिकड़ी मना रहा हैं। एक ओर संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा घोषित अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष 2023 मनाया जा रहा है, तो दूसरी ओर आजादी के 75वें अमृत महोत्सव में जी-20 की अध्यक्षता कर रहा है। आज (16 अक्टूबर) विश्व खाद्य दिवस के उपलक्ष में हम सब भारतवासी छोटे और सीमांत किसानों के परिश्रमी जीवन और उससे मिली समृद्धि तथा इस समृद्धि के जनक डॉ. एमएस स्वामीनथन के जीवन का भी जश्न मनाएं जिनका पिछले महीने निधन हो गया। सही मायने में यही डॉ. स्वामीनाथन को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
भारत छोटे किसानों और लघु उद्योगों का देश है, जो इसके आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक ताने-बाने का आधार है। यह देश की खाद्य सुरक्षा और पर्यावरणीय स्थिरता में किसानों का अहम योगदान है। 140 करोड़ भारतीयों के लिए खाद्य सुरक्षा सबसे बड़ी प्राथमिकता है। किसान, छोटे व्यवसाय और लचीली खाद्य आपूर्ति श्रृंखला देश में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जो राष्ट्रीय सुरक्षा का महत्वपूर्ण पूरक है। नोबल पुरस्कार विजेता कृषि वैज्ञानिक डॉ. नॉर्मन बोरलॉग ने 1970 में नोबल पुरस्कार स्वीकार करते हुए कहा था कि "आप भूखे पेट समाज में शांति का निर्माण नहीं कर सकते।“
इस कथन को ध्यान में रखते हुए भारत के हजारों कृषि वैज्ञानिकों ने डॉ. एम.एस स्वामीनाथन के मार्गदर्शन में देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में आपार योगदान दिया है। उनकी तीन सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक आजादी के बाद राजनीतिक और नीति निर्माताओं द्वारा कृषि विज्ञान, तकनीक और नवाचार को भारतीय कृषि में स्वीकार करवाना था। इसका सबसे बड़ा परिणाम यह रहा की राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रणाली (एनएआरएस) का निर्माण हो सका और देश के कोने-कोने में फसल आधारित और स्थानीय कृषि जलवायु परिस्थितियों के मुताबिक कृषि अनुसंधान संस्थाओं का बुनियादी ढांचा खड़ा हो सका। वर्तमान में भारत में कृषि शिक्षा, अनुसंधान और प्रसार संस्थानों जिसमे तकरीबन 113 आईसीएआर संस्थानों, 74 राज्य कृषि विश्वविद्यालयों, 4 मानद विश्वविद्यालयों, 3 केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालयों और 4 केंद्रीय विश्वविद्यालयों के साथ देश की राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रणाली दुनिया में सबसे बड़ी है।
प्रोफेसर स्वामीनाथन की दूसरी सबसे बड़ी उपलब्धि विश्व स्तर पर कृषि अनुसंधान और तकनीकी सहयोग को सफलतापूर्वक स्थापित करना और कृषि समृद्ध विकसित देशों से भारत में कृषि प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण करना था। उन्होंने यह भी सुनिश्चित किया कि अर्द्ध-बौनी और उच्च उपज वाली किस्मों का किसानों द्वारा स्थानीय स्थिति में सही मूल्यांकन करना ताकि किसानों को सही मायने में फायदा हो सके। गेहूं और चावल की अर्द्ध-बौनी और उच्च उपज वाली किस्मों के उत्पादन के परिणाम अभूतपूर्व थे। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के नेतृत्व में प्रो. एमएस स्वामीनाथन ने गेहूं में मेक्सिको की नोरिन-10 से प्राप्त अर्द्ध-बौनी आरएचटी जीन और विशेष रूप से ताइवान से प्राप्त डी-जियो-वू-जीन चावल की किस्म से प्राप्त अर्द्ध-बौनी एसडी-1 जीन ने भारत में पहली सबसे लोकप्रिय अर्द्ध-बौनी आईआर-8 चावल किस्म का विकास किया। इससे कृषि विज्ञान और अनुसंधान को गति मिली और अगले पांच दशकों तक देश में अर्द्ध-बौनी जीन आरएचटी और एसडी-1 का बड़े पैमाने पर उपयोग विभिन्न कृषि जलवायु क्षेत्रों के लिए आधुनिक गेहूं और चावल की किस्मों को विकसित करने के लिए किया गया। देश के किसानों ने गेहूं और चावल की अर्द्ध-बौनी और उच्च उपज वाली किस्मों को खूब अपनाया और इसके साथ सिंचाई, उर्वरक और मशीनीकरण जैसे कृषि उद्योगों के विकास की एक नई लहर खेतों और खलिहानों में दौड़ पड़ी।
(विश्व खाद्य पुरस्कार फाउंडेशन ने प्रो. एमएस स्वामीनाथन को भारत में उच्च उपज देने वाली गेहूं और चावल की किस्मों को विकसित करने के लिए पहला विश्व खाद्य पुरस्कार 1986 में दिया था। प्रो. नॉर्मन बोरलॉग के 2009 में देहांत के बाद प्रो. स्वामीनाथन कई वर्षो तक विश्व खाद्य पुरस्कार चयन समिति के अध्यक्ष रहे।)
प्रोफेसर स्वामीनाथन की तीसरी बड़ी उपलब्धि उनका सरल और सौम्य तरीके से जटिल कृषि तकनीकों पर समाज के विभिन स्तर पर संवाद करना, आसान भाषा में समझाना और तकनीकी ज्ञान और प्रोद्योगिकी को खेत खलिहान तक पहुंचना था।
उनकी इन्हीं खूबियों से अनाज की फसलों में कृषि विज्ञान और प्रौद्योगिकी का वो दौर आगे बढ़ा और 1980 के दशक में संकर पद्धति का उपयोग अधिक उपज वाले संकर बीजों के रूप में बाजरा, जवारी, कपास और सब्जियों में व्यापक स्तर पर होने लगा। 2002 के आते-आते जैव प्रौद्योगिकी के सही इस्तेमाल से देश में कपास की नई क्रांति आई और भारत कपास का सबसे बड़ा उत्पादक देश बना। उनके दिशा-निर्देशों और किसनों की मेहनत के परिणामस्वरूप आज देश में अन्न के भंडार भरे हैं। वर्ष 2022-23 में भारत ने खाद्यान्न और बागवानी फसलों के उत्पादन में क्रमशः 33 करोड़ और 34.2 करोड़ टन का रिकॉर्ड उत्पादन किया। अपनी खाद्य सुरक्षा को पूरा कर आज दुनिया भर में कृषि और खाद्य पदार्थों का भारत का निर्यात 50 अरब अमेरिकी डॉलर के पार कर चुका है।
हमारे गोदामों में पर्याप्त अनाजों की उपलब्धता के कारण कोविड-19 जैसी महामारी के दौरान भी भारत खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित कर सका। देश की आबादी को दो वक्त का भोजन सुनिश्चित करने के साथ ही दूसरे देशों को भी पर्याप्त मात्रा में खाद्य पदार्थ उपलब्ध करवा कर दुनिया के समक्ष भारत ने मिसाल कायम की। मगर ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के इस दौर में किसानों को खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अनगिनत चुनौतियां का सामना करना पड़ रहा है। ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों में खाद्य उत्पादन के वैज्ञानिक तरीकों पर ध्यान केंद्रित करने और खाद्य सुरक्षित राष्ट्र बनाने की दिशा में पुरजोर कोशिश करनी होगी। चाहे जैविक या प्राकृतिक खेती हो या निवेश गहन व्यावसायिक खेती, हमें खाद्य उत्पादन के लिए साक्ष्य और विज्ञान आधारित दृष्टिकोण अपनाना होगा। हमें अपने कृषक समुदाय को नए तरीकों और आधुनिक प्रणाली को अपनाने के लिए प्रेरित करना होगा ताकि उनकी आय तथा मूल्य प्राप्ति में वृद्धि हो सके। इस प्रकार किसान समुदाय देश की प्रगति का महत्वपूर्ण अंग बन सकेंगे। भारत की नीतियों और कार्यक्रमों में किसानो को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी होगी और उन्हें जैविक व अजैविक चुनौतियों से निपटने के लिए मजबूत बनाना होगा।
प्रोफेसर स्वामीनाथन के सिखाए रास्तों पर चलते हुए कृषि अनुसंधान संस्थानों को वैज्ञानिक पद्धति को अपनाने के लिए किसानों तथा किसान उत्पाद संगठनों को मजबूत करने की दिशा में महत्वपूर्ण काम करना पड़ेगा। खाद्य सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए भारत में, विशेषकर संसाधनों की कमी वाले कृषि क्षेत्रों में, कृषि के वातावरण व कृषि की संपदाओं में काफी विविधताएं हैं, ये विविधताएं सीमित संसाधन तथा तकनीक के सीमित प्रसार के कारण कृषि उद्योग में आय-व्यय में काफी अंतर है। इस अंतर को कृषि विज्ञान, तकनीक और नवाचार से पाटना तथा सामान्य कृषि क्षेत्रों को और अधिक लाभदायक बनाना होगा। इसके साथ ही किसानों की आय में बढ़ोतरी और कृषि से जुड़े व्यवसाय के जरिये किसान कल्याण को प्राथमिकता देनी होगी। हमारा हर कदम कृषकों के कल्याण के लिए उठे, हम सब को मिल कर यही सुनिश्चित करना होगा।
आधुनिक तकनीक और कृषि के ज्ञान को किसानों तक पहुंचाना जिसे हमारे किसान इसे अपनी आवश्यकताओं व जलवायु के लिए अनुकूल तकनीक को क्रियान्वित कर सकें। उचित कृषि ज्ञान, तकनीक और नवाचार के खेत-खलिहान में पहुंचने से खेती की पैदावार में बढ़ोतरी होगी, उत्पादकता में स्थिरता आएगी, उत्पाद गुणवत्ता से भरपूर होगा तथा निर्यात की कसौटी पर सही उतरेगा। ऐसे प्रयासों से कृषि क्षेत्र में समृद्धि आएगी, किसानों की आय बढ़ेगी और खाद्य सुरक्षा सुनिचित होना ही प्रोफेसर स्वामीनाथन के "हरित क्रांति' से 'सदाबहार क्रांति' की ओर बढ़ना मुमकिन हो पाएगा।
(लेखक जोधपुर स्थित साउथ एशिया बायोटेक्नोलॉजी सेंटर के संस्थापक निदेशक हैं।)