राष्ट्रीय ग्रामीण समृद्धि कोष की स्थापना की जरूरत इससे कृषि और ग्रामीण क्षेत्र में निजी पूंजी निर्माण बढ़ेगा
सरकार को ग्रामीण क्षेत्रों में निजी पूंजी निर्माण और संपत्ति निर्माण में सुधार के लिए "राष्ट्रीय ग्रामीण समृद्धि कोष" स्थापित करना चाहिए। यह फंड ग्रामीण और कृषि क्षेत्र में ग्रामीण शौचालयों के निर्माण, ग्रामीण आवास, किसान सम्मान निधि, और विभिन्न सब्सिडी और हस्तांतरण भुगतान योजनाओं जैसे रियायती ब्याज योजना, इनपुट के लिए सब्सिडी जैसी मदों के लिए आवंटित धन को इकट्ठा करके बनाया जा सकता है
ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले हर किसान की आय और उसके समूचे जीवन मे सुधार लाना ही सरकार का सबसे प्रमुख एजेंडा और मुद्दा होना चाहिए भले ही उस किसान के पास जमीन हो या ना हो । अगर ग्रामीण क्षेत्रों की बात की जाए तो कृषि न सिर्फ ग्रामीण क्षेत्रों की सभी प्रमुख गतिविधियों पर प्रभाव डालती है बल्कि उन गतिविधियों से प्रभावित भी होती है। गैर कृषि क्षेत्रों की उन्नति भी कृषि क्षेत्र के विकास पर सीधे तौर पर निर्भर करती है। इसलिए यह कहना पूरी तरह लाज़मी होगा कि किसान और उसके साथ पूरे देश का विकास तभी मुमकिन है जब कृषि क्षेत्र में निर्णायक बदलाव किए जाएं और आधुनिकता लायी जाए । कृषि का भारतीय अर्थव्यवस्था में सबसे अहम योगदान तो है ही साथ ही कृषि क्षेत्र देश के अधिकांश लोगों को रोज़गार भी देता है। भारत में कृषि योग्य प्रचुर मात्रा मे भूमि,कृषि के लिए उपयुक्त जलवायु, बदलते खपत पैटर्न, आय स्तर में हो रही वृद्धि आदि उचित परिस्थितियां मौजद हैं। इसलिए भारत में तेजी से कृषि विकास हो सकता है क्योंकि कृषि उपयुक्त परिस्थितियां भारत को इसके लिए सक्षम बनाती हैं।
कृषि विकास का किसान पर स्पष्ट तौर पर सकरात्मक प्रभाव होता है। इसके साथ ही किसान अतिरिक्त आय भी कमा सकते हैं जिस से उनका आत्मविश्वास बढ़ता है और एक खरीदार के तौर पर उन्हें सक्षम भी बनाता है । भारत में विविध और उपयुक्त जलवायु परिस्तिथियां होने के कारण भारत के पास ग्लोबल मार्केट में अन्य प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले में कृषि उत्पादन के नज़रिए से एक अतिरिक्त लाभ है। कुल मिलाकर देखा जाए तो इन परिस्थितियों के चलते भारत दुनिया का सबसे बड़ा खाद्य आपूर्तिकर्ता बन सकता है।
इसलिए मेऱा मानना है कि इसलिए मेऱा मानना है कि सरकार को ग्रामीण क्षेत्रों में निजी पूंजी निर्माण और संपत्ति निर्माण में सुधार के लिए "राष्ट्रीय ग्रामीण समृद्धि कोष" स्थापित करना चाहिए। यह फंड ग्रामीण और कृषि क्षेत्र में ग्रामीण शौचालयों के निर्माण, ग्रामीण आवास, किसान सम्मान निधि, और विभिन्न सब्सिडी और हस्तांतरण भुगतान योजनाओं जैसे रियायती ब्याज योजना, इनपुट के लिए सब्सिडी जैसी मदों के लिए आवंटित धन को इकट्ठा करके बनाया जा सकता है। इस फंड द्वारा किए गए निवेश से होने वाली आय का उपयोग ग्रामीण कृषि और गैर-कृषि क्षेत्र के ऋणों के लिए सार्वभौमिक ऋण डिफ़ॉल्ट गारंटी प्रदान करने के लिए किया जा सकता है। बिना किसी चूक या जोखिम के गाँव में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति ऋण के लिए योग्य हो जाएगा और बैंक उन्हें आवश्यक ऋण सुविधाएं देने में संकोच भी नहीं करेंगे। इसके अलावा, डिफ़ॉल्ट गारंटी के साथ ग्रामीण ऋण पोर्टफोलियो के लिए किसी जोखिम लागत की आवश्यकता नहीं होगी और बैंक अपने ग्रामीण उधारकर्ताओं को ब्याज दर कम करके लाभ भी दे सकेंगे । यह व्यवस्था ग्रामीण कृषि और गैर-कृषि क्षेत्र में निजी पूंजी निर्माण और संपत्ति निर्माण के उच्च स्तर की सुविधा प्रदान करेगी जिससे बेहतर रोजगार और कमाई के अवसर पैदा हों सकेंगे । ऋण सुविधाओं तक आसान और परेशानी मुक्त पहुंच के साथ किसानों के पास बाजार दरों पर इनपुट खरीदने , स्वच्छता और अपने आवास सहित अपने रहने की स्थिति में सुधार करने की क्षमता होगी।कृषि विकास के प्रति दृष्टिकोण हमेशा भागीदारी और समावेश पर केंद्रित होना चाहिए। इसलिए समूह आधाऱित दृष्टिकोण सबसे अच्छा माध्यम है जैसे कि सहकारी समितियां। इस तरह की सोच औऱ रणनीति के बल पर ही कृषि विकास के आंदोलन ने लंबी यात्रा तय की है । इसलिए कृषि विकास के लिए नए मॉडल बनाने में समूह आधारित संगठन एक मुख्य रूप में भूमिका निभा सकते हैं।
कृषि में निवेश को बढ़ाकर कृषि स्तर पर समूह संपत्ति का निर्माण करके किसानों की भूमि को अगर पूल किया जाए तो कृषि में निवेश में लगातार हो रही गिरावट की प्रवृत्ति को उल्टा किया जा सकता है। इसके लिए किसानों के ऋण भार को एक व्यक्ति से एक पूरे समूह में स्थानांतरित करना सबसे उपयुक्त उपाय होगा
मौजूदा वक़्त मे कृषि एक बड़ी चुनौती का सामना कर रही है। जहां पहले खेती निर्वाह के लिए की जाती थी वहीं अब खेती करने का मकसद ज्यादतर लाभ कमाना ही होता है। इसलिए अगर ऐसे हालात बने रहे तो करीब आधे किसान खेती के व्यवसाय से मुंह मोड लेंगे । पहले, व्यावसायिक पदानुक्रम में खेती को शीर्ष दर्जा दिया गया था पर आज इसका स्थान सबसे नीचे है। इसका मुख्य कारण यह है कि कृषि में पूंजी पर बहुत कम या फिर ज्यादातर मामलों में नकारात्मक रिटर्न मिलता है।
इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, इस स्थिति पर हमें जल्द से जल्द ध्यान देना होगा। इन समस्याओं से निजात पाने के लिए कई किसान आंदोलन पर बैठ जाते है जबकि कई किसान इन मुसीबतों से जूझते- जूझते आत्महत्या कर लेते हैं, जो बहुत ही दुखद है। कृषि और ग्रामीण क्षेत्र की समस्याओं के समाधान के लिए सभी हितधारकों यानी सरकार, उद्योग और नागरिक समाज संगठनों को एक साथ आना ही होगा। यहां कृषि क्षेत्र से लाभान्वित होने वाले उद्योग की भूमिका (फसल उगने से पहले और कटाई के बाद , इन दोनों चरणों में) बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण है ।
लगातार बढ़ रही जनसंख्या, लोगों की बढ़ती आय और बदलते आहार पैटर्न से भोजन और अन्य कृषि उत्पादों की मांग काफी बढ़ गई है। लेकिन इसके साथ ही, आनुवंशिक विविधता पर खतरा लगातार बढ़ रहा है । वहीं भूमि और जल संसाधनों के क्षरण के साथ प्राकृतिक-संसाधनों का आधार भी खतरे में है। जैविक और सूचना विज्ञान में लगातार हो रही प्रगति इन सभी संसाधनों की कमी को दूर करने के लिए काफी संभावनाएं प्रदान करती है। हालांकि, इससे होने वाले लाभ को छोटे पैमाने के किसानों को उपलब्ध कराना एक बड़ी चुनौती है।
घरेलू और अंतरराष्ट्रीय शहरी उपभोक्ता, विविध, उच्च गुणवत्ता और सुरक्षित खाद्य पदार्थों की मांग करके खेती में चल रही बदलाव की लहर को और तेज कर हैं। वहीं इन मांगों के जवाब में अंतरराष्ट्रीय व्यापार काफी तेजी से बढ़ रहा है। बढ़ता अंतरराष्ट्रीय व्यापार अपने साथ कई वैश्विक शासन संधियों और नियामक ढांचे का एक सेट भी ला रहा है जिसके कार्यान्वयन के लिए स्थानीय क्षमता की आवश्यकता होती है। लेकिन यहाँ सबसे बड़ी चुनौती यह है कि आखिर इन पारियों का लाभ कैसे उठाया जाए ताकि छोटे और गरीब किसानों को लाभ मिले।
हमारे देश के अधिकांश उच्च क्षमता वाले कृषि क्षेत्र अब भूमि और जल संसाधनों के प्रयोग की उस सीमा तक पहुंच गए हैं जहां से इन संसाधनों का दोहन इसके आगे नही किया जा सकता है। ऐसे भूमि के उपयोग को बंद करना , कई क्षेत्रों में हो रही पानी की कमी, कम रिटर्न और बाहरी इनपुट के कारण होने वाले नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभावों का उल्लेख नहीं करना ,आदि चुनौतियों का मतलब है कि इन क्षेत्रों में भविष्य का विकास काफी हद तक ज्ञान के साथ इनपुट के प्रतिस्थापन पर निर्भर करेगा। यानी कि इन क्षेत्रों में भविष्य में कृषि विकास तेजी से ज्ञान आधारित होगा और आने वाले दशकों में कुल कारक उत्पादकता में वृद्धि को अब विकास का प्रमुख स्रोत बनाने की आवश्यकता होगी। सरकार को कृषि उन्नति को विकास के एजेंडे में शीर्ष पर रखना होगा। लेकिन केवल व्यापार' विकास के लिए पर्याप्त नहीं होगा। कृषि उत्पादन, विविधीकरण और प्रतिस्पर्धात्मकता को प्रभावित करने वाले गतिशील परिवर्तनों के लिए मौजूदा कार्यक्रमों और योजनाओं के गहन, ईमानदार और निष्पक्ष विश्लेषण की आवश्यकता है ताकि भविष्य के कृषि का समर्थन करने के लिए बेहतर मार्ग विकसित किया जा सके।
कृषि क्षेत्र के पास भारत को विश्व की अग्रणी कृषि अर्थव्यवस्था में बदलने की क्षमता है। हालांकि, इस क्षेत्र में सतत विकास को प्राप्त करने के लिए एक समग्र और एकीकृत दृष्टिकोण की ज़रूरत है। साथ ही कृषि के प्रति दृष्टिकोण में भी एक आदर्श बदलाव की आवश्यकता है। कृषि के प्रति एक वैज्ञानिक और अभिनव दृष्टिकोण से ही हम वैश्विक स्तर पर लागत और गुणवत्ता के मामलों मे मुख्य प्रतिस्पर्धी के तौर पर उभर सकते हैं।
इस फंड का निवेश आय़ अर्जित करने के सभी प्रकार के ग्रामीण कृषि और गैर-कृषि क्षेत्र के ऋणों के लिए सार्वभौमिक ऋण डिफ़ॉल्ट गारंटी प्रदान करने के लिए उपयोग किया जा सकता है। इस तरह बिना किसी चूक और जोखिम के, गाँव में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति ऋण के योग्य हो जाएगा और बैंक भी उन्हें आवश्यक ऋण सुविधाएं देने में संकोच नहीं करेंगे। इसके अलावा, डिफ़ॉल्ट गारंटी के साथ ग्रामीण ऋण पोर्टफोलियो के लिए कोई जोखिम लागत नहीं होगी और बैंक अपने ग्रामीण उधारकर्ताओं को कम ब्याज दर लोन देकर लाभ दे सकते हैं। यह व्यवस्था ग्रामीण कृषि और गैर-कृषि क्षेत्र में निजी पूंजी निर्माण और संपत्ति निर्माण के उच्च स्तर की सुविधा प्रदान करेगी जिससे बेहतर रोजगार और कमाई के अवसर पैदा होंगे। इस तरह ऋण सुविधाओं में आसानी औऱ परेशानी मुक्त होगी साथ ही किसानों को खेती में लगने वाले लागत सामग्री को बाजार दरों पर खरीदने की क्षमता होगी,जीवन स्तर में सुधार होगा, उनके घर साफ सुथरे स्वच्छ होगे ।
( डॉ. डी.एन. ठाकुर एनसीडीसी के पूर्व डिप्टी मैनेजिंग डायरेक्टर हैं। सहकारी क्षेत्र और एग्रीकल्चर फाइनेंसिंग के एक्सपर्ट हैं, लेख में व्यक्त विचार उनके निजी विचार हैं )