अमृत काल में कृषि-खाद्य प्रणाली में बदलाव के लिए इनोवेशन

वैश्विक कृषि-खाद्य प्रणाली इस समय कई चुनौतियों का सामना कर रही है। दुनिया की आबादी वर्ष 2050 तक 980 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है। इसके लिए खाद्य उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि की आवश्यकता है। साथ ही प्राकृतिक संसाधनों में कमी, जलवायु परिवर्तन और उत्पादन की बढ़ती लागत की समस्या पर विचार करते हुए हासिल करने की जरूरत है।

अमृत काल में कृषि-खाद्य प्रणाली में बदलाव के लिए इनोवेशन

वैश्विक कृषि-खाद्य प्रणाली इस समय कई चुनौतियों का सामना कर रही है। दुनिया की आबादी वर्ष 2050 तक 980 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है। इसे खिलाने के लिए खाद्य उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि की आवश्यकता है। इसे प्राकृतिक संसाधनों में कमी, जलवायु परिवर्तन और उत्पादन की बढ़ती लागत की समस्या पर विचार करते हुए हासिल करने की जरूरत है। मौजूदा कृषि-खाद्य प्रणाली कई खामियों और खेती की गैर-टिकाऊ प्रथाओं से भी जूझ रही है। छोटे किसानों के पास नई प्रौद्योगिकी और संसाधनों तक पहुंच का अभाव है। प्रचलित कृषि पद्धतियां हमारे प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन कर रही हैं। इनसे बड़ी मात्रा में खाद्य अपशिष्ट पैदा होता है तथा ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन भी होता है। कोविड-19 महामारी के बाद गरीबी में और वृद्धि हुई है। जैसा कि संयुक्त राष्ट्र खाद्य प्रणाली सम्मेलन में बताया गया, 93 देशों में भोजन की गंभीर कमी के कारण स्थानीय खाद्य प्रणाली और पुनर्योजी (रिजेनरेटिव) कृषि पर अधिक निर्भरता की जरूरत महसूस हुई है। इसलिए, अब प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करते हुए कृषि में लचीलापन लाने का दबाव है, ताकि स्थानीय खाद्य प्रणालियों के माध्यम से निरंतर खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

2030 तक सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को प्राप्त करना एक और चुनौती है जिससे अधिकांश देशों को प्राथमिकता के आधार पर निपटना है। यह भी स्पष्ट है कि भारत के इन लक्ष्यों को प्राप्त किए बिना वैश्विक स्तर पर एसडीजी को हासिल नहीं किया जा सकता है। पेरिस समझौते में ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन को कम करने और 300 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड समकक्ष के स्तर तक कार्बन पृथक्करण (सीक्वेस्ट्रेशन) में कृषि की भूमिका बताई गई है। इसके लिए पशुधन, विशेषकर गोवंश के बेहतर प्रबंधन, उर्वरकों के कुशल उपयोग और चावल तथा गन्ना जैसी फसलों में पानी का इस्तेमाल कम करने की जरूरत है। इसके साथ रिजेनरेटिव कृषि के माध्यम से मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार की भी आवश्यकता है। इसमें कृषि वानिकी पर जोर देने (हर मेड़ पर पेड़) के साथ संरक्षण कृषि भी शामिल है। इसलिए 5 साल से कम उम्र के अल्पपोषित बच्चों (46%) पर ध्यान देने के साथ मौजूदा उच्च जनसंख्या वृद्धि और गरीबी (16.4%) के दुष्चक्र को तोड़ना अमृत काल की मुख्य प्राथमिकता होनी चाहिए।

साठ के दशक के उत्तरार्ध में हरित क्रांति की बदौलत हम जनसंख्या में साढ़े चार गुना वृद्धि के मुकाबले खाद्यान्न उत्पादन साढ़े छह गुना (32.35 करोड़ टन) बढ़ाने में सफल रहे हैं। भारत खाद्यान्न का आयात करने वाले देश से एक महत्वपूर्ण कृषि निर्यातक के रूप में उभरा है। भारत का सालाना कृषि निर्यात लगभग 55 अरब डॉलर पहुंच गया है। इसमें कोई संदेह नहीं कि इन उपलब्धियों की कीमत जलवायु परिवर्तन के अलावा प्राकृतिक संसाधनों पर प्रतिकूल प्रभाव के रूप में चुकानी पड़ी है। भारत ने बागवानी (34.15 करोड़ टन), दूध उत्पादन (21 करोड़ टन) और मछली उत्पादन (142 लाख टन) में भी उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं। देश में खाद्यान्न का बफर स्टॉक 2020 तक लगभग 950 लाख टन तक पहुंच गया। कृषि उत्पादन, उत्पादकता और गरीबी में कमी में ये उपलब्धियां खाद्य सुरक्षा और लाखों छोटे किसानों के लिए बेहतर आजीविका की दिशा में भारत की उल्लेखनीय प्रगति को उजागर करती हैं। विभिन्न क्रांतियों (हरित, श्वेत, नीली, इंद्रधनुष) की सफलता के आधार में राजनीतिक इच्छाशक्ति, संस्थानों की भूमिका, मानव संसाधन और भागीदारी के अलावा निवेश करने और नई प्रौद्योगिकी अपनाने के इच्छुक प्रगतिशील किसान शामिल हैं।

अमृत काल में प्रवेश करते समय हमें आनुवांशिक बेहतरी से प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन की ओर जाने की जरूरत है, विकास के लिए कृषि अनुसंधान (एआर4डी) से विकास के लिए कृषि अनुसंधान और इनोवेशन (एआरआई4डी) की ओर जाने की आवश्यकता है। नए विज्ञान का लाभ उठाने के मकसद से कृषि अनुसंधान पर निवेश दोगुना करने के लिए नीतिगत समर्थन की आवश्यकता है। इसके साथ ही आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) फसलों, जीनोम/जीन एडिटिंग, जैव सूचना विज्ञान, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रोबोटिक्स, ड्रोन, मशीनीकरण और संरक्षण कृषि जैसे इनोवेशन को भी बढ़ाने की जरूरत है। वैल्यू चेन के माध्यम से उत्पादन के बाद के प्रबंधन और किसानों को बाजार से जोड़ने (आंतरिक और वैश्विक दोनों) पर अधिक जोर देना होगा। बौद्धिक संपदा (आईपी) अधिकारों की रक्षा करते हुए तेज डिलीवरी और नई प्रौद्योगिकी को अपनाने के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) को मजबूत करने से इसमें तेजी आएगी। हर्बिसाइड सहिष्णु किस्मों के साथ डायरेक्ट सीडिंग वाले चावल (चित्र 1) जैसे कम पानी इस्तेमाल के तरीके नए अवसर प्रदान करेंगे।

हर्बिसाइड टॉलरेंट (एचटी) डायरेक्ट सीडेड राइस (डीएसआर), फोटोः ए के सिंह, आईएआरआई

इनोवेशन बढ़ाने पर अधिक ध्यान केंद्रित करने वाले देशों ने ज्यादा प्रगति की है। इस संबंध में हमें नए इनोवेशन की गति तेज करनी होगी और कृषि में नए पेटेंट दाखिल करने के लिए बौद्धिक संपदा व्यवस्था प्रदान करनी होगी। उदाहरण के लिए वर्ष 2022 में चीन ने 15.8 लाख पेटेंट दाखिल किए थे, जबकि अमेरिका में 5,05,539 और भारत में 55,718 पेटेंट दाखिल किए गए। अमेरिका और चीन में क्रमशः मक्का और चावल की संकर किस्मों और भारत में बीटी कपास की सफलता की कहानियां कृषि में तेज विकास के लिए इनोवेशन की क्षमता को प्रदर्शित करती हैं। इसलिए हमें अब विश्व स्तर पर सोचने और स्थानीय स्तर पर कार्य करने की आवश्यकता है ताकि सफलताओं को दोहराया जा सके और जहां अवसर हो वहां उत्कृष्टता हासिल करने के लिए तेजी से आगे बढ़ सकें। उदाहरण के लिए बीटी कपास प्रौद्योगिकी को अपनाना भारत में एक उल्लेखनीय सफलता की कहानी है (चित्र 2)। 

बीटी कपास के तहत खेती का क्षेत्र काफी बढ़ गया है। यह 70 लाख हेक्टेयर से 120 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया है। इसके परिणामस्वरूप कपास का उत्पादन लगभग दोगुना हुआ है। यह 2014 के 23 लाख टन से बढ़कर 40 लाख टन हो गया है। उल्लेखनीय रूप से कीटनाशकों का प्रयोग भी 40 प्रतिशत कम हुआ है, जिसका लाभ पर्यावरण और स्वास्थ्य में मिला। इस प्रक्रिया में लगभग 50 लाख कपास किसानों की आय तीन गुना बढ़ गई है। इसके अलावा, भारत से सालाना चार अरब डॉलर से अधिक का कपास निर्यात हो रहा है, जबकि बीटी कपास को अपनाने से पहले भारत आयातक देश था। एक अन्य उदाहरण सिंगल क्रॉस हाइब्रिड मक्का का है। पहला सिंगल क्रॉस मक्का हाइब्रिड 1995 में जारी किया गया था। सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों द्वारा विकसित इस नए हाइब्रिड ने रकबा को 60 लाख हेक्टेयर एक करोड़ हेक्टेयर तक बढ़ाने में मदद की है। सिर्फ दो दशक में उत्पादकता भी एक टन से बढ़कर 3.5 टन प्रति हेक्टेयर और कुल उत्पादन एक करोड़ टन से बढ़ कर 3.8 करोड़ टन (2022-23) हो गया है (चित्र 3)।

शुष्क भूमि क्षेत्रों (अब भी 45%) में संरक्षण (बिना जुताई) कृषि जैसे प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन में इनोवेशन, सूक्ष्म सिंचाई, फर्टिगेशन, जैव उर्वरक और अपशिष्ट से कमाई जैसे क्षेत्र भी अनेक अवसर प्रदान करते हैं। अंतर्राष्ट्रीय मिलेट वर्ष (2023) ने भविष्य की खाद्य सुरक्षा के लिए स्थानीय खाद्य प्रणालियों के महत्व को रेखांकित किया है। अमृत काल में इनोवेशन और प्रौद्योगिकीय हस्तक्षेप की एक लहर कृषि-खाद्य प्रणाली को बदलने, उन्हें अधिक उत्पादक, टिकाऊ और न्यायसंगत बनाने के लिए तैयार है (चित्र 4)। जो इनोवेशन और प्रौद्योगिकी प्रचलन में हैं, तथा जिन्हें उत्पादन प्रणाली में सुधार के लिए लागू करने की आवश्यकता है, उन्हें चित्र 4 में दिखाया गया है।

कृषि में लचीलेपन के लिए इनोवेशन
i) प्रिसीजन खेती: इसमें बेहतर निर्णय लेने के लिए डेटा और प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाता है। मिट्टी की नमी, पोषक तत्वों के स्तर और फसल के स्वास्थ्य पर रियल टाइम डेटा एकत्र करने के लिए खेतों में सेंसर नेटवर्क लगाने से सिंचाई, उर्वरकों प्रयोग और कीट नियंत्रण बेहतर होगा। इससे उपज अधिकतम और बर्बादी न्यूनतम होगी (चित्र 5)। इस संदर्भ में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग करके ड्रोन इमेजरी और उपग्रह डेटा का विश्लेषण जैसी तकनीक काफी मददगार होगी। इनसे किसान ज्यादा पैदावार के लिए उपलब्ध संसाधनों का श्रेष्ठतम उपयोग कर सकेंगे। छोटी जोत वाले किसानों के लिए सस्ती और सुलभ कृषि मशीनरी गेम-चेंजर साबित होगी, खासकर जब श्रम बहुत महंगा हो गया है।

(ii) कृषि जैव प्रौद्योगिकी: जीनोम/जीन संपादन जैसी उभरती जैव प्रौद्योगिकी (बायोटेक्नोलॉजी) कृषि उत्पादकता के साथ सस्टेनेबिलिटी बढ़ाने की भी संभावनाएं प्रदान करती हैं। ये तकनीक उन किस्मों/संकरों की ब्रीडिंग के लिए बेहतर होंगी जो कीटों, बीमारियों और जैविक-अजैविक कारकों के प्रति अधिक प्रतिरोधी हैं। इसके अलावा बायोफोर्टिफिकेशन से पोषण बढ़ाने और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी दूर करने में मदद मिलेगी।

(iii) वर्टिकल फार्मिंग और नियंत्रित वातावरण में कृषि (सीईए): वर्टिकल फार्मिंग और नियंत्रित वातावरण में खेती, कृषि के लिए एक क्रांतिकारी दृष्टिकोण उपस्थित करते हैं। वे खाद्य पदार्थों को अधिक कुशलतापूर्वक, सस्टेनेबल तरीके से और उन स्थानों पर उगाने का अवसर प्रदान करते हैं जिन्हें पहले खेती के लिए अनुपयुक्त माना जाता था। जैसे शहरों के सीमित स्थानों में, यहां तक कि रेगिस्तान या अत्यधिक विषम जलवायु परिस्थिति वाले क्षेत्रों में भी। वर्टिकल खेती से जमीन और पानी, दोनों की आवश्यकता कम होगी। नियंत्रित वातावरण में खेती में तापमान, प्रकाश और आर्द्रता पर सटीक नियंत्रण होता है। इससे ज्यादा उत्पादन के लिए बेहतर परिस्थितियां बनती हैं।

एक सतत उत्पादन प्रणाली के लिए इनोवेशन
(i) रिजेनरेटिव कृषि: लंबे समय में मिट्टी के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले पारंपरिक तरीकों के विपरीत पुनर्योजी (रिजेनरेटिव) कृषि जलवायु परिवर्तन की चुनौती को कम करती है तथा भविष्य में सस्टेनेबल खाद्य उत्पादन के लिए बड़ी संभावना पैदा करती है (चित्र 6)। पुनर्योजी कृषि के तहत कवर क्रॉपिंग, कम या बिना जुताई वाली संरक्षण कृषि और कंपोस्ट बनाने जैसे तरीकों को अपनाने की आवश्यकता है।

(ii) चक्रीय अर्थव्यवस्था: एक सस्टेनेबल प्रणाली के लिए अपशिष्ट कम करना महत्वपूर्ण है। सर्कुलर अर्थव्यवस्था का दृष्टिकोण कृषि में व्यापक बदलाव ला सकता है। खाद्य उत्पादन चक्र में अपशिष्ट कम किया जाए और संसाधनों का अधिकतम उपयोग हो तो यह पर्यावरण, अर्थव्यवस्था और खाद्य सुरक्षा के लिए एक तरह से जीत की स्थिति होगी। खाद्य अपशिष्ट कम करने की नीति के लिए तत्काल बेहतर भंडारण और परिवहन सुविधाओं, सह-उत्पादों को वैल्युएबल उत्पादों में बदलने और कंपोस्ट बनाने जैसे कुशल खाद्य अपशिष्ट प्रबंधन समाधान विकसित करने की आवश्यकता है।

उचित उत्पादन प्रणाली के लिए इनोवेशन
(i) डिजिटल प्लेटफॉर्म और ई-कॉमर्स: कृषि में डिजिटल क्रांति में छोटे किसानों को सशक्त बनाने और अधिक सस्टेनेबल खाद्य प्रणाली विकसित करने की क्षमता है। जैसे-जैसे ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल साक्षरता और प्रौद्योगिकी तक पहुंच बढ़ेगी, छोटे किसानों के जीवन पर अधिक सकारात्मक प्रभाव देख सकते हैं। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म किसानों को सीधे उपभोक्ताओं से जोड़ेंगे, बिचौलिये को खत्म करेंगे और किसानों का मुनाफा बढ़ाएंगे। ये प्लेटफॉर्म बाजार से संबंधित जानकारी, मौसम के पूर्वानुमान तथा अन्य आवश्यक कृषि सलाह दे सकते हैं, जिनसे किसान सशक्त होंगे।

(ii) छोटे किसानों पर फोकस के साथ वित्तीय समावेशन: ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे और डिजिटल साक्षरता के क्षेत्र में चुनौतियां होने के बावजूद छोटे किसानों के लिए वित्तीय समावेशन में क्रांति लाने में ब्लॉकचेन की क्षमता निर्विवाद है। जैसे-जैसे प्रौद्योगिकी और पहुंच में सुधार होगा, हम एक ऐसा भविष्य देखने की उम्मीद कर सकते हैं जहां छोटे किसान न केवल फसलें उगाएंगे, बल्कि सफल व्यवसायी भी बनेंगे। छोटे किसानों के लिए ऋण की पहुंच आसान बनाने में ब्लॉकचेन तकनीक क्रांतिकारी बदलाव लाएगी। सुरक्षित और पारदर्शी फाइनेंशियल रिकॉर्ड बनाकर ब्लॉकचेन छोटे ऋण और वित्तीय सेवाओं की सुविधाएं बेहतर कर सकता है।

(iii) जानकारी साझा करना और क्षमता निर्माण: जैसे-जैसे कृषि से संबंधित जानकारी और प्रौद्योगिकी विकसित होगी, कृषि एक्सटेंशन में इनोवेशन और उनका व्यापक इस्तेमाल अहम होता जाएगा। इसमें निजी एक्सटेंशन को बढ़ावा देने, जानकारी और सेवा दोनों के प्रसार के लिए प्रशिक्षित और कुशल युवाओं को शामिल करने की जरूरत है। किसानों को भी लगातार बदलती कृषि उत्पादन प्रणाली से निपटने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष
इनोवेशन में हमारी कृषि-खाद्य प्रणाली को बदलने की अपार संभावनाएं हैं, फिर भी अनेक चुनौतियां हैं। छोटी जोत वाले किसानों के कल्याण और उनकी आय बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकी तक समान पहुंच सुनिश्चित करना और ग्रामीण क्षेत्रों में जानकारी के अंतर को पाटना चुनौती बनी हुई है। इसलिए कृषि-खाद्य प्रणाली को बदलने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण चाहिए। एसडीजी हासिल करने और पेरिस समझौते के तहत की गई प्रतिबद्धताओं को पूरा करने की भी तत्काल आवश्यकता है, क्योंकि अब समय कम बचा है। इसके लिए विज्ञान में अधिक भरोसा और निवेश, नए इनोवेशन को बढ़ावा और सेकंडरी तथा विशिष्ट कृषि को अपनाने की जरूरत है। खाद्य प्रणाली के लिए एक समग्र दृष्टिकोण पर भी जोर दिया जाना चाहिए जिसमें उत्पादन और उत्पादन के बाद, दोनों पहलू शामिल हों। राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रणाली (एनएआरएस) और अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान केंद्रों (सीजीआईएआर के तहत एवं अन्य) के बीच सार्वजनिक-निजी जैसी मजबूत साझेदारियां बनाना अहम होगा। उद्यमशीलता, गुणवत्तापूर्ण इनपुट का उत्पादन और आपूर्ति तथा नई जानकारी और सलाह को साझा करने में प्राइवेट एक्सटेंशन की सफलता के लिए कृषि में युवाओं को प्रेरित और आकर्षित करना (माया) महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, बेहतर निर्णय लेने के लिए ट्रस्ट फॉर एडवांसमेंट ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज (तास) और नेशनल एकेडमी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज (नास) जैसे तटस्थ थिंक टैंक के लगातार प्रयासों के माध्यम से पॉलिसी एडवोकेसी और जन-जागरूकता की आवश्यकता होगी ताकि अमृत काल में विज्ञान-आधारित नीतिगत निर्णय सुनिश्चित किए जा सकें। 

अंत में, भविष्य में खाद्य, पोषण और पर्यावरण सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए वर्तमान राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रणाली को मजबूत बनाने और अधिक फंडिंग के लिए कृषि जीडीपी के कम से कम एक फीसदी राशि की जरूरत है। देश की लक्षित पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र की भागीदारी कम से कम एक ट्रिलियन डॉलर करने के लिए यह आवश्यक है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि अमृत काल में कृषि-खाद्य प्रणाली में बदलाव राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा और कृषि क्षेत्र में हमारे वैश्विक नेतृत्व की कुंजी हैं।

(लेखक पद्म भूषण से सम्मानित हैं। वे पूर्व सचिव डेयर तथा डीजी आईसीएआर और  ट्रस्ट फॉर एडवांसमेंट ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज  (तास) के चेयरमैन हैं)

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