खाद्य सुरक्षा के लिए कृषि नीति पर आम सहमति जरूरी
अपर्याप्त क्षमता और पारंपरिक रूप से खपत वाले राज्यों में चावल की अधिक खरीद से पंजाब में भंडारण संकट
पंजाब के किसान एक बार फिर आंदोलन पर उतर आए हैं। इस बार वे इसलिए परेशान हैं क्योंकि वे अपनी धान की उपज एपीएमसी मंडियों में सरकारी खरीद केंद्रों पर बेच नहीं पा रहे हैं। राज्य में चावल के लिए भंडारण क्षमता की कमी को इसका कारण बताया जा रहा है।
दशकों से पंजाब चावल और गेहूं की खरीद में अग्रणी रहा है। राज्य की एजेंसियों की खरीद के बाद गेहूं और चावल भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के नियंत्रण में आ जाते हैं। वहां से उन्हें उनका उपभोग वाले राज्यों को भेजा जाता है। आम तौर पर इन्हें रेलवे के जरिए भेजा जाता है, हालांकि हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर तक इसकी ढुलाई ट्रकों से होती है। इस तरह दूसरे राज्यों में अनाज भेजे जाने से अगले साल की खरीद के लिए भंडारण की जगह बनती है। चावल केवल ढंके हुए गोदामों में रखा जाता है, जबकि गेहूं को ढंके हुए गोदामों और प्लिंथ (सीएपी) स्टोरेज में भी रखा जाता है।
पंजाब में भंडारण समस्या क्यों
वर्ष 2023-24 के खरीफ मार्केटिंग सीजन (अक्टूबर-सितंबर) के अंत तक पंजाब में एफसीआई को 124 लाख टन चावल डिलीवर किया गया था। लेकिन इसमें से केवल सात लाख टन बाहर भेजा जा सका। इसका प्रमुख कारण ओडिशा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु जैसे राज्यों में चावल की अधिक खरीद है। पारंपरिक रूप से इन राज्यों में चावल की खरीद कम होती है। बिहार और पश्चिम बंगाल ने भी चावल की खरीद बढ़ाई है। नतीजतन, इन राज्यों में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के लिए खाद्यान्न की आवश्यकता स्थानीय खरीद से पूरी हो रही है। यह अलग बात है कि 2014 में केंद्र सरकार ने खुद राज्यों को गेहूं और चावल पर बोनस नहीं देने को कहा था। केंद्र की तरफ से कहा गया था कि यदि विकेंद्रीकृत खरीद (डीसीपी) वाले राज्य चावल और गेहूं के लिए एमएसपी से अधिक बोनस घोषित करेंगे, तो केंद्र उस राज्य के पीडीएस के लिए जरूरी मात्रा पर ही सब्सिडी देगा।
बाद के वर्षों में इस नीति में बदलाव आया है। अब छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और हाल में ओडिशा ने धान 3100 रुपये प्रति क्विंटल की दर से खरीदा है, जो एमएसपी से 700 रुपये प्रति क्विंटल अधिक है।
इस बोनस के अलावा कई राज्य कृषि के लिए बिजली पर बहुत अधिक सब्सिडी भी दे रहे हैं। प्रतिष्ठित थिंक टैंक काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरमेंट एंड वाटर (सीईईडब्लू) का अनुमान है कि 2022-23 में कृषि क्षेत्र के लिए बिजली पर लगभग 1,01,745 करोड़ रुपये की सब्सिडी दी गई। इन प्रोत्साहनों के कारण पीडीएस की जरूरत पूरी करने के लिए पंजाब से चावल की मांग कम हुई है।
दूसरे राज्यों में अधिक चावल उत्पादन के कारण पंजाब से उन राज्यों को चावल भेजना बहुत कम हो गया है। पंजाब में एफसीआई के पास चावल का स्टॉक 1 अक्टूबर 2023 के 60.65 लाख टन से बढ़कर 1 अक्टूबर 2024 को 119 लाख टन हो गया। पंजाब के स्टोरेज लगभग पूरी तरह भर गए, जिससे राज्य में खरीफ मार्केटिंग सीजन 2024-25 का चावल रखने के लिए बहुत कम स्थान बचा। पंजाब में भंडारण की जगह की कमी का एक अन्य कारण लगभग 45 लाख टन गेहूं को सीएपी स्टोरेज के बजाय ढंके हुए गोदामों में रखना है।
प्राइवेट आंत्रप्रेन्योर गारंटी स्कीम और स्टील साइलो से भंडारण क्षमता में वृद्धि
वर्षों से केंद्र सरकार ने खाद्यान्न भंडारण क्षमता निर्माण में निजी निवेश का समर्थन किया है। वर्ष 2008 में सरकार निजी उद्यमी गारंटी स्कीम (पीईजी) लेकर आई जिसके तहत भारत के हर जिले में स्टोरेज क्षमता में कमी का आकलन किया गया। पीडीएस के तहत उपभोग करने वाले जिलों में चार महीने की खाद्यान्न आवश्यकता और खरीद करने वाले जिलों में पिछले तीन वर्षों में स्टॉक के उच्चतम स्तर को इसका आधार बनाया गया। निजी उद्यमियों को दस वर्षों के लिए भंडारण किराये के भुगतान की गारंटी दी गई। सीडब्लूसी/एसडब्लूसी के लिए गारंटी अवधि नौ वर्ष निर्धारित की गई थी।
एफसीआई ने भंडारण क्षमता में कमी के आधार पर गोदाम बनाने के लिए निविदाएं आमंत्रित कीं। इस प्रकार केंद्रीय बजट से खर्च किए बिना भंडारण क्षमता बनाई गई। पीईजी के तहत 31 अगस्त 2024 तक 163.4 लाख टन भंडारण क्षमता को मंजूरी दी गई और इसमें से 146 लाख टन का निर्माण हो चुका है। इसमें से 132.4 लाख टन की क्षमता एफसीआई/राज्य एजेंसियों ने अपने कब्जे में ले ली है। पंजाब में ही एफसीआई ने 44.6 लाख टन की क्षमता अपने नियंत्रण में ली है।
वर्तमान संकट का कारण 2022-23, 2023-24 और 2024-25 के रबी मार्केटिंग सीजन (अप्रैल-मार्च) में गेहूं की कम खरीद है। वर्ष 2021-22 में 433 लाख टन गेहूं की खरीद हुई जो 2022-23 में घटकर 188 लाख टन रह गई। अगले दो वर्षों में औसतन लगभग 260 लाख टन की खरीद हुई। इसे देखते हुए एफसीआई और राज्य की एजेंसियों ने गोदामों को छोड़ दिया होगा, जिससे भंडारण क्षमता 31 मार्च 2022 के 788.3 लाख टन से घटकर 31 मार्च 2023 को 711.5 लाख टन रह गई। इस तरह क्षमता में 76.8 लाख टन की कमी आई है।
एफसीआई के अपने ढंके हुए गोदामों की क्षमता 31 मार्च 2022 के 426.6 लाख टन से घटकर 31 मार्च 2023 को 337.4 लाख टन रह गई। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने पहले किराये पर लिए गए गोदामों की अधिक क्षमता पर आपत्ति जताई थी। शायद ऑडिट के डर से गोदामों को छोड़ने का निर्णय लिया गया।
पारंपरिक गोदामों के अतिरिक्त सरकार ने सार्वजनिक-निजी साझेदारी (पीपीपी) मॉडल के तहत स्टील साइलो को भी मंजूरी दी है। वर्ष 2007 में सर्किट-आधारित मॉडल के तहत पंजाब, हरियाणा और कुछ उपभोग करने वाले राज्यों में 5.5 लाख टन की साइलो क्षमता बनाई गई थी। इसके अलावा एफसीआई ने 29.25 लाख टन की साइलो क्षमता का ठेका दिया है। इसमें से 10.75 लाख टन का निर्माण पूरा हो चुका है और एफसीआई ने इसे अपने कब्जे में लिया है। उदाहरण के लिए, बिहार के दरभंगा और समस्तीपुर, यूपी के बस्ती, धमोरा और कन्नौज, गुजरात के वडोदरा और पंजाब के साहनेवाल, छेहरटा और बटाला में साइलो परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं।
साइलो क्षमता के निर्माण से एफसीआई पंजाब और हरियाणा में खरीदे गए गेहूं को उपभोग करने वाले राज्यों तक भेज सकेगा। आदर्श रूप से गेहूं की ढुलाई जूट के बोरों के बजाय थोक में होनी चाहिए।
कम स्टॉक के कारण भंडारण क्षमता कम की गई
पिछले तीन वर्षों में गेहूं की कम खरीद के कारण गोदामों को छोड़ने से भंडारण क्षमता में कमी आई। अगस्त 2024 तक एफसीआई ने फिर से गोदामों को किराये पर लिया जिससे इसकी क्षमता 408 लाख टन हो गई। लेकिन यह अब भी 31 मार्च 2022 की तुलना में कम है और खरीफ मार्केटिंग सीजन 2024-25 में चावल की खरीद की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अपर्याप्त है।
शॉर्ट टर्म में आगे क्या
पंजाब में चावल की भंडारण और खरीद की वर्तमान समस्याओं का समाधान होगा क्योंकि सरकार राज्य में किसानों के एक और बड़े आंदोलन का सामना नहीं कर सकती। इसलिए भंडारण क्षमता बढ़ाने और केंद्रीय पूल के चावल का स्टॉक घटाने के लिए कदम उठाए जाएंगे। पंजाब और अन्य राज्यों में भंडारण क्षमता को किराये पर लिया जाएगा तथा रेलवे चावल को पंजाब से बाहर ले जाने के लिए अधिक रेल गाड़ियों की उपलब्धता सुनिश्चित करेगी। हो सकता है कुछ नए गोदाम भंडारण के क्वालिटी मानक पूरा नहीं करें, लेकिन आपात स्थिति में इसे नजरअंदाज किया जाएगा।
सरकार ने एथेनॉल बनाने के मकसद से एफसीआई द्वारा 23 लाख टन चावल की बिक्री के लिए 2,800 रुपये प्रति क्विंटल की दर निर्धारित की है, जबकि 2024-25 में चावल की आर्थिक लागत 3,975 रुपये प्रति क्विंटल होने का अनुमान है। सरकार को लग सकता है कि इससे चावल का स्टॉक घटाने में मदद मिलेगी, लेकिन ऐसा लगता है कि एथेनॉल बनाने वाली अनाज डिस्टिलरी टूटे हुए चावल कम कीमत पर खरीद रही हैं। इसलिए इस कीमत पर चावल की मांग नहीं है।
गैर-बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध हटा लिए गए हैं, तो उम्मीद है कि निर्यात पिछले वर्ष की तुलना में अधिक होगा। इससे चावल की खरीद की जरूरत कम हो सकती है। इससे सरकार को स्टॉक प्रबंधन में भी मदद मिलेगी।
2034 के लिए कुछ सवाल
सरकार को एक महत्वपूर्ण नीतिगत निर्णय लेना है कि क्या एमएसपी और पीडीएस की व्यवस्था अपने वर्तमान रूप में जारी रहेगी? क्या खाद्यान्न वितरण उन खाद्य सरप्लस वाले राज्यों में भी जारी रहेगा जो एमएसपी पर गेहूं और चावल खरीद रहे हैं? क्या सरप्लस वाले कुछ राज्यों में पीडीएस के लिए डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) की आवश्यकता है?
इस बात पर तो सहमति है कि पंजाब और हरियाणा में गैर-बासमती धान का रकबा कम करने की आवश्यकता है। लेकिन इसे हासिल करने का कोई रोड मैप नहीं है। पंजाब के कृषि मंत्री ने जुलाई 2024 में धान की जगह कम पानी की जरूरत वाली फसल अपनाने वालों को प्रति हेक्टेयर 17,500 रुपये के प्रोत्साहन की घोषणा की, लेकिन तब तक धान की रोपाई लगभग पूरी हो चुकी थी। यह स्पष्ट नहीं है कि क्या केंद्र सरकार भी इस प्रोत्साहन में योगदान देने पर सहमत है। भारतीय कृषि के हित में यह आवश्यक है कि पंजाब और केंद्र के बीच अगली खरीफ बुआई से पहले समय पर एक समझौता हो ताकि किसानों को इस बारे में स्पष्टता रहे।
पंजाब की कृषि में विविधता की कमी है। यह पड़ोसी राज्य हरियाणा की तुलना में भी कम विविध है। भारत की दीर्घकालिक खाद्य सुरक्षा के हित में आगे का रास्ता स्पष्ट करना समय की मांग है।
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संदर्भ
- https://www.tribuneindia.com/news/comment/paddy-procurement-crisis-due-to-lack-of-planning
- https://indianexpress.com/article/explained/how-paddy-variety-pr-126-became-a-victim-of-its-own-popularity-9625697
- https://www.financialexpress.com/policy/economy-food-subsidy-for-fy25-may-be-revised-upward-by-over-rs-35000-cr-3442219/
- https://www.financialexpress.com/policy/economy-food-subsidy-for-fy25-may-be-revised-upward-by-over-rs-35000-cr-3442219/
(सिराज हुसैन पूर्व केंद्रीय कृषि सचिव और जुगल महापात्रा पूर्व केंद्रीय ग्रामीण विकास एवं उर्वरक सचिव हैं।)