कृषि को भारतीय अर्थव्यवस्था का ग्रोथ इंजिन मानने का तर्क देता इकोनॉमिक सर्वे
आर्थिक सर्वेक्षण में न सिर्फ कृषि क्षेत्र को काफी महत्व दिया गया है बल्कि कृषि नीतियों पर नए सिरे से विचार करने और व्यापक सुधारों की जरूरत पर जोर दिया है।
आर्थिक उदारीकरण की स्थापित थ्योरी को आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 में उलटने की कोशिश के साथ एक ईमानदार स्वीकारोक्ति भी कहा जा सकता है। सर्वे में माना गया है कि कृषि भारत का ग्रोथ इंजिन बनने की क्षमता रखता है बशर्ते कि कुछ जरूरी नीतिगत बदलाव किये जाएं। इसके साथ ही इसमें यह बात भी स्वीकार की गई है कि मार्केट इकोनॉमी की जिस थ्योरी में इंडस्ट्रियल ग्रोथ के जरिये लोगों को कृषि से निकालकर उद्योगों और सर्विस सेक्टर में ले जाने का तर्क दिया जाता है वह मौजूदा परिदृष्य में संभव नहीं है। इसके उलट भारत के पास दुनिया को ग्रोथ का एक नया मॉडल देने का मौका है जिसमें कृषि की ग्रोथ से देश को विकसित देशों की श्रेणी में खड़ा किया जा सके। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा 22 जुलाई को संसद के दोनों सदनों रखे गये 2023-24 के इकोनॉमिक सर्वे में यह बातें कही गई हैं।
अब देश में 89.4 फीसदी किसान
सर्वे में दिये गये आंकड़े के मुताबिक अब देश में 89.4 फीसदी किसान दो हेक्टेयर से कम जोत वाले हैं। यानी लघु और सीमांत किसानों की संख्या अब करीब 90 फीसदी हो गयी है। एक महत्वपूर्ण बात कही गयी है कि जिस तरह चीन में कृषि की तरक्की से उत्पादों और सेवाओं की मांग बढ़ने से पूरी इकोनॉमी को फायदा हुआ था, वह मौका हम भी हासिल कर सकते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 2016 में छह साल में किसानों की आय को दोगुना करने की जो घोषणा की गई थी, लगता है उसे चीन के मॉडल से लिया गया था। वहां 1978 से 1984 के दौरान छह साल में किसानों की वास्तविक आय दो गुना हुई थी। छोटे किसानों से आने वाली उत्पादों की मांग के चलते ही वहां औद्योगिक क्रांति संभव हुई थी।
आर्थिक सर्वे में रोजगार के बारे में बहुत लंबी चर्चा की गई है और साथ ही बदलते मैन्युफैक्चरिंग, टेक्नोलॉजी और जियो पॉलिटिकल परिदृष्य के चलते मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में चुनौतियों बढ़ने की बात कही गयी है। कहा गया है कि अधिकांश नौकरियां निजी बिजनेस सेक्टर से आएंगी। लेकिन निजी क्षेत्र का निवेश उस तेजी से नहीं बढ़ रहा है जिस तेजी से बढ़ना चाहिए। निजी क्षेत्र को रोजगार सृजन के बारे में अधिक सक्रियता दिखानी होगी।
कृषि पर दारोमदार
आर्थिक सर्वेक्षण कृषि क्षेत्र पर बहुत भरोसा करता दिखता है। इसमें कहा गया है कि यह परिस्थिति हमें पारंपरिक ज्ञान की ओर जाने के लिए कहती है। कृषि क्षेत्र इसका रास्ता दिखा सकता है। अपनी जड़ों की ओर लौटकर हम कृषि उत्पादन प्रक्रिया और नीति निर्धारण में सुधार के जरिये किसानों की आय बढ़ा सकते हैं। अधिक मूल्य वाले उत्पादन, खाद्य प्रसंस्करण और निर्यात को बढ़ावा देकर कृषि क्षेत्र को आकर्षक और अधिक उत्पादक बना सकते हैं।
एमएसपी के फायदों का स्वीकारा
सर्वे में स्वीकार किया गया है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के फायदे हैं और इसके जरिये किसानों को फसल विविधिकरण के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है। जिन 23 फसलों के लिए एमएसपी की व्यवस्था है यह उसमें देखा जा सकता है। साथ ही राज्यों को भी इसके लिए अतिरिक्त इंसेंटिव दिये जा सकते हैं। सर्वे में स्वीकार किया गया है कि केवल फसलों के उत्पादन से किसानों की आय में बढ़ोतरी संभव नहीं है। बागवानी, डेयरी और पॉल्ट्री और मीट जैसे उत्पादन को बढ़ावा देना होगा।
उर्वरक सब्सिडी पर सवाल
आर्थिक सर्वेक्षण में कैमिकल फर्टिलाइजर के अधिक उपयोग की समस्या को उजागर करते हुए उर्वरक सब्सिडी के प्रावधानों पर सवाल भी उठाये हैं। मसलन पीओएस मशीन के साथ किसान की जोत का रिकॉर्ड का न जुड़ा होना। आधार कार्ड पर उर्वरकों की मात्रा का सीमित न होना जैसे मुद्दो का हल ढूंढने की बात कही गई है। इसके लिए एग्री स्टैक को एक विकल्प के रूप में देखने की बात कही गई है। साथ ही आर्गेनिक खेती की वकालत की गई है। रिसर्च पर निवेश बढ़ाने और निजी निवेश बढ़ाने की बात कही गई है।