पेटा विवाद निराधार : भारत में दूध उत्पादन और पशु कल्याण हैं एक दूसरे के पर्याय
पेटा ने अमूल को प्लांट बेस्ड डेयरी पर शिफ्ट करने का सुझाव दिया तो इस मसले पर अमूल की तीखी प्रतिक्रिया आई और उसने कहा कि देश के करीब आठ करोड़ डेयरी किसानों की आजीविका पर यह एक हमला है। असल में पेटा का सुझाव भारतीय संदर्भ में इसलिए बेतुका है क्योंकि यहां तो दूध उत्पादन और पशु कल्याण एक दूसरे के पर्याय हैं और भारत के डेयरी व्यवसाय की तुलना पश्चिमी देशों के बड़े कमर्शियल डेयरी फार्मों से नहीं हो सकती है
पीपुल फॉर एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (पेटा) ने सुझाव दिया है कि गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (जीसीएमएमएफ) यानी अमूल को प्लांट बेस्ड डेयरी (पौधों से तैयार होने वाला दूध) डेयरी चलानी चाहिए । पेटा के इस सुझाव के बाद पेटा और अमूल के बीच एक विवाद छिड़ गया। जाहिर सी बात है पेटा का जो सुझाव है उसका भारतीय संदर्भ में कोई अर्थ नहीं है और यह बेतुका है। प्रश्न उठता है कि पेटा ने प्लांट बेस्ड 'डेयरी' चालू करने के लिए आखिर कहा क्यों ? प्लांट बेस्ड प्रोडक्ट क्यों नहीं ? जाहिर है कि डेयरी शब्द उत्पाद की तुलना में अधिक प्रभावी है।
स्विच ओवर की अवधारणा
इस पूरे मसले की तह में जाने के लिए हमें 'स्विच ओवर' अवधारणा की उत्पत्ति को समझने की जरूरत हैं । साल 2017 में स्वीडन की एक ओट मिल्क कम्पनी ओटली ने एक डेयरी किसान को प्लांट बेस्ड डेयरी शुरू करने मे उसकी सहायता की । किसान ने प्लांट आधारित डेयरी शुरू की और उसने देखा कि उसका मुनाफा काफी बढ़ गया । यह जानकर उसे काफी आश्चर्य हुआ । धीरे –धीरे अन्य डेयरी किसानों भी प्लांट आधारित की ओर बढने लगे। इसके बाद प्लांट बेस्ड डेयरी को बढ़ावा देने के लिए अमेरिका के लॉग, काशी और मियोको की क्रीमरी द्वारा भी कुछ इसी तरह की पहल की गई थी। यहां गौर करने वाली बात यह है कि उन्होंने डेयरी उत्पादों की प्रतिस्पर्धा में अपने गैर डेयरी उत्पाद को लांच किया । लेकिन ध्यान देने योग्य बात यह है कि प्लांट आधारित डेयरी की शुरूआत किसानों और कम्पनियों ने शाकाहार (वेगन) के प्रति लगाव के लिए नहीं बल्कि मुनाफा कमाने के लिए की । वहीं कई डेयरी कंपनियों ने गैर डेयरी उत्पाद पर दूध शब्द का उपयोग कर उपभोक्ताओं को कथित रूप से भ्रमित करने के लिए ऐसे ब्रांडों के खिलाफ मुकदमा दायर किया ।
इस प्रकरण से दो मुद्दे उभर कर सामने आते हैं । पहला यह कि जिस किसान का ऊपर उल्लेख किया गया है, वह बड़े जोत वाला किसान था और उसने बड़ी संख्या में गाय पाल रखी थी । जाहिर है कि कंपनियां ऐसे ही किसानों का समर्थन करके अपने उत्पाद लांच कर सकती हैं। हो सकता है कि किसान ने अपनी गायों की स्लाटरिंग के बाद हासिल पूंजी का उपयोग कर प्लांट बेस्ड डेयरी और उसके लिए जरूरी खेती शुरू कर की।
भारतीय डेयरी क्षेत्र
भारत में स्थिति बहुत अलग है भारत में दूध उत्पादन अभी भी घरेलू गतिविधि है। अगर आंकड़ों की बात करें तो जहां तक मेरी जानकारी है उसके मुताबिक भारत में ऐसे 7.5 करोड़ डेयरी किसान हैं। उनके पास 10 या उससे भी कम मवेशी है और परिवार के लोग ही इस काम को खुद करते हैं। अमेरिका, यूरोप, इज़राइल, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड जैसे देशों के डेयरी फार्म की तुलना में यह किसान बहुत छोटे हैं। देश के इन किसानों के पास कुल 19.29 करोड़ पशु हैं। जिसमें 10.98 करोड़ भैंस हैं। देश का दूध उत्पादन वित्त वर्ष 2020 में 19.88 करोड़ टन रहा जो 2019 के 18.77 करोड़न टन की तुलना में 5.91 फीसदी अधिक था। भारत में उत्पादित दूध की वैल्यू करीब नौ लाख करोड़ रुपये सालाना है जो देश के सकल घरेलू उत्पाद की 4.2 फीसदी है। यह आंकड़े इस बात को स्पष्ट करते हैं कि भारत में दूध उत्पादन उन छोटे दूध उत्पादकों के लिए कितनी महत्वपूर्ण आर्थिक गतिविधि है जो वित्तीय सुरक्षा प्राप्त करना चाहते हैं । इसमें कोई दो राय नही है कि केवल फसल उत्पादन पर पूरी तरह से निर्भर रहना वित्तीय तौर से एक अच्छा विकल्प नहीं है। मौसम की बेरुखी जैसी गंभीर समस्याओं ने कुछ किसानों को आत्महत्या के लिए मजबूर कर दिया। इसलिए कुछ गायों या भैंसों को लेकर मिश्रित खेती करने वाले किसान सुरक्षित रहे हैं क्योंकि दूध से उन्हें दैनिक आय मिलती है।
तो इन हालात में कोई यह कैसे उम्मीद कर सकता है कि इतनी बड़ी संख्या में छोटे किसान प्लांट बेस्ड पदार्थों की ओर रुख करेंगे? इसके अलावा, दुनिया के कई देशों में मवेशियों को मांस के लिए मार दिया जाता है। ऐसी जगहों पर किसानों द्वारा पशुओं की स्लॉरिंग कर उससे हासिल पूंजी के जरिेये स्विच करना संभव बना सकता है । लेकिन भारत में यह सोचना भी असंभव है कि इतनी बड़ी संख्या में मवेशियों को मारा जा सकता है। क्या पेटा को यह पसंद होगा !
दूसरा मुद्दा यह है कि पौधे आधारित उत्पादों को दूध क्यों कहा जाता था ? आखिर दूध के अलावा कोई और नाम या ब्रांड क्यों नहीं खोज पाए और क्यों दूध और दूध उत्पादों के साथ ही प्रतिस्पर्धा की ? ऐसा इसलिए है क्योंकि उन सभी कंपनियों को यह अच्छे से पता है कि दूध अकेले ही सभी पोषक तत्वों का स्रोत है और पूरी दुनिया में इसका उपभोग किया जाता है। इसको सभी उपभोक्ताओं द्वारा अपनाया भी गया है। इसलिए उन्होंने पाया कि प्लांट बेस्ड उत्पादों को दूध का नाम देकर न सिर्फ ग्राहक को भ्रमित किया जा सकता है साथ ही दूध और दूध उत्पादों द्वारा प्राप्त ब्रांड लोकप्रियता का लाभ भी उठाया जा सकता है। इसका नजीजा यह भी हुआ कि प्लांड बेस्ड डेयरी उत्पादकों और प्रसंस्करण कंपनियों के खिलाफ गैर डेयरी उत्पादों पर दूध का टैग लगातार बेचने पर उपभोक्ताओं को भ्रमित करने के आरोप के तहत मुकदमें भी दर्ज किये गये।
वेगन बनाम डेयरी उत्पाद
यूरोपीय संघ ने ओटली और फ्लोरा जैसी वेगन (शाहाकारी खाद्य पदार्थों का उत्पादन करने वाली) कंपनियों द्वारा खाद्य पदार्थों की पैकेजिंग के लिए दूध के डिब्बों और दही की पैकेजिंग के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसका मकसद है कि गाय के दूध को एक सम्मानजनक दर्जा मिल सके । खाद्य मानकों और नामकरण के अधिनियम के संशोधन 171 के तहत बादाम दूध, सोया दूध, जई का दूध जैसे शब्दों का प्रयोग, शाहाकारी खाद्य पदार्थों के लिए प्रतिबंधित है। डेयरी जैसे पदार्थों का उत्पादन दाल, मटर, बीन्स और नट्स से होता हैं। शाकाहारी खाद्य निर्माता इस दिशा में एक और कदम बढ़ाते हुए आइस क्रीम, फ्लेवर्ड मिल्क, योगर्ट, मक्खन और अन्य डेयरी उत्पादों आदि जैसे उत्पाद बनाने के लिए प्लांट मिल्क का उपयोग करने लगे हैं ।
भारत में डेयरी उत्पादों की स्पष्ट तौर पर अलग पहचान के लिए लड़ाई लंबे समय से लड़ी जा रही है। अमूल, एनडीडीबी, एनडीआरआई और आईडीए जैसी बड़ी संस्थाएं उन आइसक्रीम जैसे उत्पादों का विरोध कर रही हैं जिनमें गैर-डेयरी पदार्थों का उपयोग होता है । इसका नतीजा यह हुआ कि आइसक्रीम की तरह दिखने वाले गैर- डेयरी खाद्य पदार्थ जिनमें खाद्य तेल जैसे गैर- डेयरी उत्पाद होते हैं उन्हें फ्रोजन डेसर्ट के रूप में एक अलग नाम दे दिया गया।
भारत में खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण ने स्पष्ट रूप से डेयरी खाद्य पदार्थ, मांसाहारी खाद्य पदार्थ और शाकाहारी गैर डेयरी खाद्य उत्पादों की परिभाषा तय की है। खाद्य सुरक्षा और मानक विनियन ( पैकेजिंग और लेबलिंग) , 2011 के सेक्शन 1.2.1 (7) में मांसाहारी खाद्य पदार्थों की परिभाषा विस्तार से दी गई है। उसमें डेयरी उत्पाद, मांसाहारी उत्पाद, और गैर डेयरी वेगन उत्पाद को साफ-साफ परिषाभित किया गया है। इसमें स्पष्ट है कि पशुओं से मिलने के बावजूद दूध और दूध के ऐसे उत्पाद जिनमें केवल दूध है, एक शाकाहारी उत्पाद है।
पेटा – एनजीओ
पेटा वर्जीनिया स्थित एक अंतरराष्ट्रीय एनजीओ है जिसकी स्थापना मार्च 1980 में एक अमेरिकी पशु अधिकार संगठन के रूप में की गई थी। इंग्रिड न्यूकिर्क इस संगठन के संस्थापक और अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। भारत में पेटा शाखा की स्थापना 2000 में हुई थी। इसका नारा है कि पशु हमारे लिए खाने, पहनने, मनोरंजन और उपयोग करने, या किसी अन्य तरीके से दुर्व्यवहार करने के लिए नहीं हैं। पेटा चार मुख्य मुद्दों पर काम करता है- फैक्टरी फार्मिंग, फर फार्मिंग, पशु परीक्षण और मनोरंजन के लिए जानवरों के उपयोग का विरोध करना । यह संगठन लोगों को एक शाकाहारी जीवन शैली के लिए को प्रोत्साहित करता है। और मांस खाने, मछली पकड़ने, कीटों के रूप में माने जाने वाले जानवरों की हत्या के सख्त खिलाफ है। यह संस्था कोशिश करती है कि फैक्ट्री फार्मिंग और बूचड़खानों में प्रथाओं में सुधार हो। यह उन कंपनियों के खिलाफ मुकदमा शुरू करता है जो जानवरों को कष्ट देने वाली प्रथाओं को बदलने से इनकार करते हैं।
पेटा और अमूल विवाद
शाकाहार को बढ़ावा देने के अपने सिद्धांत की वजह से पेटा इंडिया अमूल के साथ लड़ने के लिए मजबूर हुआ और अमूल के खिलाफ मैदान मे खडा हुआ । अमूल ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर एक कलाकृति पोस्ट की जिसमें अमूल की लड़की द्वारा जोकिन फीनिक्स को अमूल मक्खन खिलाते हुए दिखाया गया । जोकिन फीनिक्स इस कार्टून मे एक जोकर की वेष-भूषा मे थे। फीनिक्स को 92वें वार्षिक अकादमी पुरस्कारों में फिल्म 'जोकर' में सर्वश्रेष्ठ अभिनय के लिए ऑस्कर पुरस्कार मिला था। अपने भाषण के दौरान, फीनिक्स ने नस्लवाद से लेकर लैंगिक असमानता और रद्द संस्कृति तक कई मुद्दों को संबोधित किया था। अपने संबोधन के दौरान उन्होंने कहा “हम कृत्रिम रूप से एक गाय का गर्भाधान करने और उसके बच्चे को चुराने का खुद को हकदार मानते हैं भले ही वह गाय अत्यंत पीड़ा में लगातार रोती रहे । पेटा के कई उत्साही लोगों ने गायों में कृत्रिम गर्भाधान को गायों के 'बलात्कार' के रूप में दिखाया है। यह कार्य कितना असंवेदनशील है! क्या वह उन महिलाओं पर भी हमला करेंगे जो आईवीएफ के लिए जाती हैं और सरोगेसी के लिए कोख किराए पर लेती हैं। "पेटा इंडिया ने अमूल के कार्टून को टोन डेफ आर्टवर्क कहा। "द जोक ऑन यू," ट्वीट पढ़ें। फीनिक्स एक वेगन (शाकाहारी) है। सख्त शाकाहारी (वेगन) वे लोग हैं जो जानवरों से प्राप्त भोजन नहीं खाते हैं। शाकाहारी भोजन के पीछे विचार यह है कि यह पशु मूल के खाद्य पदार्थों को वस्तु का दर्जा देने से इनकार करता है। जाहिर है, एक शाकाहारी अंडे, मांस, दूध और दूध उत्पादों, पनीर और यहां तक कि शहद जैसे उत्पादों को खाने से मना कर देगा। इसके तुरंत बाद, पेटा इंडिया ने अमूल के विज्ञापनों का विरोध किया, जो डेयरी उत्पादों को बढ़ावा देने वाले हैं। पेटा ने सेल्फ रेगुलेटिग एड इंडट्रीज की यूनिट एडवरटाइजिंग स्टैंडर्ड काउंसिल ऑफ इंडिया (एएससीआई) में एक याचिका दायर की थी। एएससीआई ने पेटा की याचिका खारिज कर दी। याचिका खारिज होने के बाद पेटा ने अमूल को डेयरी उत्पादों के उत्पादन को वेगन उत्पादों में बदलने का सुझाव दिया है। प्रतिक्रिया में, भारत के सबसे बड़े डेयरी ब्रांड अमूल ने पेटा के 'प्लांट बेस्ड डेयरी पर बदलाव करने' के सुझाव का विरोध किया है। साथ ही सवाल भी किया है कि अगर ऐसा होता है तो डेयरी क्षेत्र में काम करने वाले करोड़ों लोगों को रोजगार कैसे प्रदान किया जा सकता है। अमूल ने कहा है कि "विदेशी वित्तपोषित एनजीओ जो अभियान चला रहा है वह भारतीय डेयरी उद्योग को कलंकित करने के लिए है"।
भारत का दुग्ध उत्पादन क्षेत्र पेटा के उद्देश्यों को पूरा करता है
इसके लिए संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोप, इज़राइल, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के डेयरी दिग्गजों द्वारा उत्पादित दूध के विपरीत भारत में दूध उत्पादन की प्रक्रिया को समझने की आवश्यकता है।
-भारत में दुग्ध उत्पादन पश्चिमी देशों की तरह फैक्ट्री पर आधारित नहीं है।
-दूध का उत्पादन बड़ी संख्या में छोटे किसान करते हैं। उनके पास भोजन, प्रबंधन, रोग नियंत्रण, प्रजनन आदि की कोई स्वचालित या रोबोटिक प्रक्रिया नहीं है। पशुओं का प्रबंधन व्यक्तिगत देखभाल, सुरक्षा और सेवा पर आधारित है।
-भारत में दूध उत्पादन एक घरेलू गतिविधि है। जबकि पश्चिम देशों में दूध देने वाली 300 गायों के झुंड का प्रबंधन करने के लिए दो व्यक्तियों की जरूरत होती है । जबकि इसकी तुलना में, भारत में एक पूरा परिवार 10 से कम गायों और भैंसों की देखभाल करता है।
-पेटा के कहने के अनुसार ही भारत में पशुओं को परिवार के सदस्यों की तरह देखभाल और चिंता, प्यार और स्नेह के साथ रखा जाता है । उन्हें सुरक्षित आश्रयों में रखा जाता है, जिससे उनको कोई नुकसान ना हो । यह सुनिश्चित किया जाता है कि पशु का कल्याण हो।
-पशुओं को जो चारा दिया जाता है वो घर का बना होता है या जंगल से इकट्ठा किया जाता है। उनके आहार में हार्मोन इनपुट नगण्य होते हैं।
-यहां दूध उत्पादन में वृद्धि पशुधन की संख्या में वृद्धि और प्रति पशु उत्पादकता में सीमित वृद्धि पर आधारित है।
-दुग्ध उत्पादन कृषि की तरह लाभप्रद और स्थिरता लाता है। सभी भूमि मालिक किसान केवल फसल उत्पादन की तुलना में मिश्रित खेती पसंद करते हैं।
-महिलाएं डेयरी फार्मिंग में बहुत सक्रिय हैं। वे इसे गरीबी उन्मूलन, महिला सशक्तिकरण, बाल पोषण, और पोषण सुरक्षा के लिए एक अच्छे अवसर के रूप में देखते हैं।
-डेयरी फार्मिंग भूमिहीन और सीमांत किसानों के लिए एक अच्छा अवसर है।
यदि ऊपर दी गई बातों पर ध्यान से विचार किया जाए तो भारत में डेयरी किसान पशु कल्याण मानकों को पूरा करते प्रतीत होते हैं।
क्या होगा अगर अमूल शाकाहारी हो जाए ?
अमूल गुजरात में 18 जिला स्तरीय सहकारी संघों का एक संघीय समूह है। 2018-19 तक इन संघों में 18600 गांवों में इनके 38 लाख दूध उत्पादक सदस्य शामिल थे। अमूल की कुल हैंडलिंग क्षमता 3.5 करोड़ लीटर दूध प्रति दिन की है और 2018-19 के दौरान दैनिक औसत दूध संग्रह 230 लाख लीटर था। 2018-19 के दौरान अमूल का बिक्री कारोबार 38,550 करोड़ रुपये ( 5.1 अरब अमेरिकी डॉलर) था। जिला दुग्ध संघ दूध की उपभोक्ता कीमत का 75-80 फीसदी दुग्ध उत्पादक किसानों को भुगतान करते हैं।
यदि अमूल को शाकाहारी डेयरी अवधारणा पर बदलाव करना है , तो उसे अपनी सभी प्रसंस्करण संपत्तियों को संशोधित करने की आवश्यकता होगी, जो शायद 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक है।
अगर बदलाव करना है तो इतनी बड़ी संख्या में गायो और भैंसों से छुटकारा पाना होगा । तो आखिर वे जायेंगे कहाँ? एक बात तो पक्की है कि शांतिप्रिय गुजराती किसानों द्वारा पशु हत्या करने पर विचार नहीं किया जा सकता।
दूध के समान शाकाहारी उत्पादन करने के लिए अमूल के पास पर्याप्त भूमि संपत्ति नहीं होगी क्योंकि इसका 70% दूध भूमिहीन और सीमांत दूध उत्पादकों से प्राप्त होता है।
अगर ऐसा होता है तो 70% दुग्ध उत्पादक सदस्य बेरोजगार हो जाएंगे , जिससे असहनीय सामाजिक अशांति पैदा होगी ।
दूध अमृत है
भारतीय सभ्यता लगभग 8000 सालो से, दूध उत्पादन और गायों पर आधारित अनूठी कृषि पद्धतियों के लिए गाय पालन करने वाली पहली सभ्यता है । भारत मे गायों को मां के रूप में पूजा जाता था । जब स्वामी विवेकानंद से एक बार यह सवाल पूछा गया कि किस पशु का दूध सबसे अच्छा है, तब उन्होने कहा भैंस का दूध सबसे अच्छा है । इस उत्तर पर प्रश्नकर्ता ने चुटकी लेते हुए कहा “लेकिन आप लोग तो गाय को माता कहते हो। स्वामी विवेकानंद ने उत्तर दिया कि गायें तो अमृत देती हैं ।
तो आइए हम सब मिल कर एक नई शुरुआत करें और शाकाहारी अमृत की तलाश करें ।
( आर.एस. खन्ना इंटरनेशनल डेयरी कंसल्टेंट हैं । लेख में व्यक्त विचार उनके निजी हैं। उनसे dr.rskrsk@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है)