किसानों को एमएसपी की कानूनी गारंटी मिले

जरूरत इस बात की है कि किसान को हर उत्पाद के लिए लाभकारी दाम और सही हिस्सेदारी मिलनी चाहिए। न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी अधिकार बनाने से जहां मौजूदा विवाद का हल निकालने का रास्ता बन सकता है वहीं दीर्घकालिक रूप से यह देश के किसानों और भारत के कृषि क्षेत्र के लिए भी हितकारी होगा।

किसानों को एमएसपी की कानूनी गारंटी मिले
उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में आयोजित एक किसान पंचायत

 केंद्र सरकार के तीन नये कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली की सीमाओं पर चल रहा किसान आंदोलन कई माह बीत जाने के बाद भी विवादों और जटिलताओं में उलझा हुआ है। कई दौर की बातचीत के बावजूद इसका ऐसा कोई हल नहीं निकल सका है जो आंदोलन के गतिरोध को तोड़ सके। इसको देखकर लगता है कि किसान संगठन और सरकार दोनों में से किसी भी पक्ष को आंदोलन को समाप्त करने का कोई रास्ता नहीं दिख रहा है।

मेरा विचार है कि जिन मुद्दों को लेकर आंदोलन चल रहा है उसका हल अर्थपूर्ण और सार्थक बातचीत के जरिये ही संभव है। दोनों पक्षों तो लचीला रुख अपनाते हुए देश के कृषि क्षेत्र के व्यापक हितों को ध्यान में रखते हुए बातचीत पर आपसी समझ से आगे बढ़ना चाहिए। इसके साथ ही देश के किसानों के मुश्किल हालात और उनकी चिंताओं  को स्वीकारते हुए एक ऐसा सर्व स्वीकार्य हल खोजना होगा जिसमें किसी तरह की राजनीति शामिल न हो। महत्वपूर्ण बात यह है कि सरकार इस बात को समझे कि किसानों को बिचौलियों और व्यापारियों के शोषण से बचाने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की किसानों की मांग को स्वीकार करे, ताकि उनको कृषि उत्पादों के वाजिब दाम मिल सके। इसे विडंबना ही कहा जा सकता है कि जब ब्रैड की कीमत 80 रुपये किलो और आटा की कीमत 35 से 40 रुपये किलो है, वहीं किसान को गेहं की कीमत केवल 19.25 रुपये किलो ही मिलती है। अधिकाश फसलों के मामले में यही कहानी दोहराई जाती है। जबकि जरूरत इस बात की है कि किसान को हर उत्पाद के लिए लाभकारी दाम और सही हिस्सेदारी मिलनी चाहिए। न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी अधिकार बनाने से जहां मौजूदा विवाद का हल निकालने का रास्ता बन सकता है वहीं दीर्घकालिक रूप से यह देश के किसानों और भारत के कृषि क्षेत्र के लिए भी हितकारी होगा।

इस तरह का कदम किसानों की अगली पीढ़ी के कृषि क्षेत्र में बने रहने की इच्छा को मजबूत करेगा जो अभी भी देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। जहां किसान तीन नये कृषि कानूनों को पूरी तरह खारिज कर चुके हैं, वहीं मेरा मानना है कि इन कानूनों के विवादास्पद प्रावधानों की समीक्षा की जरूरत है। उदाहरण के लिए किसी भी कृषि उत्पाद के असीमित भंडारण का कानूनी प्रावधान पहली नजर में ही अतार्किक है और यह किसानों के हितों के लिए हानिकारक है। एमएसपी की कानूनी गारंटी की स्थिति में भी इस विवादास्पद प्रावधान का प्रतिकूल असर होगा। इसके अतिरिक्त यह भी सच है कि जब तक सरकारी और निजी क्षेत्र में मंडियों और मार्केट कि संख्या नहीं बढ़ेगी तब तक एमएसपी की कानूनी गारंटी का वादा भी अधूरा ही साबित होगा क्योंकि इसके फायदे के लिए किसानों के नजदीक मंडियां होना जरूरी है। इसके साथ ही दीर्घकालिक उद्देश्यों को हासिल करने के लिए बड़े पैमाने पर वेयरहाउस और सड़कों जैसी ढांचागत सुविधाओं की भी जरूरत है। 

आंदोलन की समाप्ति एक ऐसे आपसी सहमति वाले समाधान के जरिये होनी चाहिए जिससे यह संदेश जाए कि भारत में किसी भी बड़े मसले को सुलझाने के लिए आपसी समझ और परिपक्कता है जो बड़े मकसद के लिए जरूरी है। अगली पीढ़ी को ऐसा अहसास होना चाहिए ताकि वह  कृषि  में अपना बेहतर भविष्य देख सके। जनवरी, 2021 में जब सरकार और किसानों के बीच अंतिम दौर की बातचीत हुई थी, उसके बाद से सरकार ने आंदोलन को लेकर जो रवैया अपनाया है वह संकेत देता है कि सरकार किसानों और उनकी मांगों को लेकर संवेदनशील नहीं है। इस रवैये में बदलाव की जरूरत है।
असल में जरूरत इस बात की है जहां देश का कारपोरेट जगत आगे आकर सहयोग करते हुए किसानों के उत्पादों को एमएसपी पर खरीदने की प्रतिबद्धता दिखाए। उसे यह यह तय करना चाहिए कि कच्चे माल और अंतिम उत्पाद के बीच की कीमतों को न्यूनतम स्तर पर लाया जाए। ऐसा करने से बिचौलियों के कई स्तरों को समाप्त करने के साथ ही सप्लाई चेन की कुशलता बढ़ाई जा सकेगी और टेक्नोलॉजी के उपयोग से बेहतर इनवेंटरी प्रबंधन को बढ़ावा मिलेगा।

किसान संगठनों और सरकार को खुले मन से बातचीत का नया दौर शुरू करना चाहिए। जिसके केंद्र में ऐसा दीर्घकालिक परिप्रेक्ष्य हो जहां युवा पीढ़ी कृषि के प्रति उत्साही, समर्पित और प्रेरित किसान के रूप में हों। यह सकारात्मक माहौल भविष्य में भी जारी रहे। यही वह रास्ता है जिसके जरिये हम आने वाले दशकों में देश के करीब डेढ़ अरब लोगों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कर सकेंगे।

(राहुल कुमार, लेक्टलिस इंडिया के मैनेजिंग डायरेक्टर हैं। दुनिया के सबसे बड़े डेयरी ग्रुप लेक्टलिस की 150 देशों में उपस्थिति है और इसका सालाना टर्नओवर 22 अरब डॉलर है। भारत में ग्रुप की तीन कंपनियां तिरुमला, अनिक और प्रभात हैं, इनमें प्रभात दूध और डेयरी उत्पाद बेचती है। लेख में व्यक्त विचार उनके निजी हैं )

 

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